यूट्यूब और फेसबुक पर लता मंगेशकर और सचिन तेंदुलकर के साथ कथित मजाकिया बातचीत वाला वीडियो सामने आने पर विवाद उठना स्वाभाविक है। यह वीडियो कॉमेडियन तन्मय भट्ट का रचा हुआ है, जो आॅनलाइन कॉमेडी समूह एआइबी के सदस्य भी हैं। वीडियो को लेकर आम राय यही है कि इसमें या इसके जरिए लता मंगेशकर और सचिन तेंदुलकर का मजाक उड़ाया गया है। यों तो कॉमेडियन के काम में नकल उतारना, व्यंग्यात्मक टिप्पणियां करना, हंसाने के मकसद से काल्पनिक दृश्य प्रस्तुत करना आदि शामिल रहता है। जिस तरह कार्टून में प्रसंगवश बहुत बार व्यक्ति-विशेष पर कटाक्ष रहता है, उस तरह की गुंजाइश या संभावना कॉमेडियन के काम में भी रहती है। पर ‘सचिन वर्सेस लता सिविल वार’ नाम से बनाया गया तन्मय भट््ट कावीडियो हास्य जगाने में भले नाकाम रहा हो, इसने बड़े पैमाने पर नाराजगी जरूर पैदा की है। लगता है तन्मय परिहास और उपहास में अंतर करने का बोध विकसित नहीं कर पाए हैं, या चर्चा में आने की गरज से उन्होंने जान-बूझ कर इस फर्क को अपने स्तर पर मिटा दिया है। उनके प्रति आक्रोश जताने वालों में सोशल मीडिया के वर्चुअल मंचों पर सक्रिय अनगिनत लोगों से लेकर बॉलीवुड के सितारे और राजनीतिक तक शामिल हैं। शिवसेना, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना और मुंबई भाजपा के कुछ नेताओं ने विवादित वीडियो बनाने वाले को गिरफ्तार करने की मांग की है। मनसे की फिल्म इकाई चित्रपट सेना ने तो तन्मय की पिटाई की धमकी भी दे डाली है। क्या शिवसेना और मनसे सबके साथ शालीनता से पेश आने वाले और मान-मर्यादा का ध्यान रखने वाले समूह के तौर पर जाने जाते हैं? यह सही है कि लता मंगेशकर और तेंदुलकर का मजाक उड़ाए जाने से औरों की तरह ये भी आहत होंगे। पर इनकी प्रतिक्रिया में एक मौके को भुनाने की चतुराई भी झलकती है।
गायिका के तौर पर लताजी और क्रिकेटर के रूप में सचिन की प्रसिद्धि व लोकप्रियता से सब वाकिफ हैं। दोनों भारत रत्न से विभूषित हैं। उनकी गरिमा के साथ खिलवाड़ नहीं होना चाहिए। पर पुलिस कार्रवाई की मांग करने का क्या औचित्य है? अधिकतर विशेषज्ञ मानते हैं कि संबंधित वीडियो कुरुचि और हास्य के नाम पर विकृति के कारण सामाजिक निंदा का विषय तो है, पर कानूनी कार्रवाई का नहीं। शायद यही वजह है कि पुलिस ने फेसबुक और यूट्यूब से इस वीडियो को ब्लॉक करने को कहा है, पर फिलहाल खुद कोई कार्रवाई नहीं की है। आइटी अधिनियम की धारा 66-ए को सुप्रीम कोर्ट द्वारा असंवैधानिक ठहरा दिए जाने के अनुभव के चलते भी पुलिस फूंक-फूंक कर कदम रखना चाहती होगी। दरअसल, इस मामले के कानूनी नुक्ते जो हों, पर यह मौका है कि इस वीडियो के बहाने सोशल मीडिया के व्यवहार पर चर्चा हो। सोशल मीडिया के मंचों पर चरित्र हनन और छवि बिगाड़ने का खेल दिन-रात चलता रहता है। बहुत-से मामलों में यह एक-दो व्यक्तियों की करामात होती है और बहुत-से मामलों में यह संगठित-सामूहिक अभियान जैसा रहता है। कीचड़ उछालने और नफरत फैलाने का कोई अंत नहीं दिखता। बगैर किसी का पक्ष जाने उसके खिलाफ फैसला सुना दिया जाता है, बगैर किसी की बात सुने उसके बारे में निष्कर्ष निकाले और प्रचारित किए जाते हैं। सुनियोजित रूप से लाइक्स की संख्या बढ़ाने-घटाने और इस तरह किसी का ग्राफ चढ़ाने-गिराने का खेल भी चलता रहता है। विवादित वीडियो ने बहुतों का दिल दुखाया है, पर इस विवाद की एक सार्थक परिणति हो सकती है अगर सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वालों में जिम्मेदारी और मर्यादा का अहसास बढ़े।