अहमदाबाद में पिछले सप्ताह एअर इंडिया का एक विमान उड़ाने भरने के तुरंत बाद दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इसके बाद बीते रविवार को केदारनाथ के पास श्रद्धालुओं को लेकर आ रहा हेलिकाप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसमें एक बच्ची समेत सात लोगों की मौत हो गई। उसी दिन 242 हज यात्रियों को लेकर जेद्दा से लखनऊ पहुंचे सऊदी एअरलाइंस के एक विमान के उतरते समय उसके पहियों से धुआं निकलने की घटना हुई। सोमवार को दिल्ली के लिए उड़ान भरने वाले एअर इंडिया के एक विमान को तकनीकी खराबी के कारण वापस हांगकांग जाना पड़ा।

इन सभी घटनाओं ने हवाई यात्रा की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या उड़ान परिचालन के नियमों और दिशा-निर्देशों में कहीं कोई खामी है या फिर इनका पालन करने में कोताही बरती जा रही है? इस तरह के हादसों पर अंकुश लगाने के लिए सरकार से लेकर विमानन कंपनियों की ओर से धरातल पर पुख्ता बंदोबस्त क्यों नहीं किए गए हैं?

हादसे ने सवालों को बना दिया है और गंभीर

उत्तराखंड में केदारनाथ के पास गौरीकुंड में हुए हेलिकाप्टर हादसे ने इन सवालों को और गंभीर बना दिया है। इस हेलिकाप्टर का संचालन कर रही कंपनी पर लापरवाही बरतने का आरोप लगाया गया है। पुलिस में दर्ज मामले में कहा गया है कि हेलिकाप्टर के संचालन के लिए सुबह छह से सात बजे तक का प्रथम स्लाट आबंटित किया गया था, जबकि यह दुर्घटना उससे पहले ही सुबह साढ़े पांच बजे हुई है। अगर यह दावा सही है, तो साफ है कि हेलिकाप्टर ने तय समय से पहले ही उड़ान भर ली थी।

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उस दिन सुबह से ही धुंध छाई हुई थी और उड़ान भरने से पहले मौसम की स्थिति को ठीक से नहीं जांचा गया। कोई दोराय नहीं है कि चारधाम यात्रा के लिए हेलिकाप्टर सेवाएं श्रद्धालुओं के लिए सुविधाजनक हैं। खासकर बच्चों व बुजुर्गों को, जिनके लिए यह यात्रा मुश्किल भरी होती है। मगर, हवाई यात्रा को सुरक्षित बनाने की जिम्मेदारी राज्य व केंद्र सरकार पर भी है। राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस हादसे के बाद कहा कि चारधाम में सेवा दे रहे पायलटों के हिमालयी क्षेत्रों में उड़ान अनुभवों की जांच होगी।

लगातार हो रही घटनाएं

मगर, सवाल यह है कि कोई बड़ा हादसा होने से पहले ही एहतियाती तौर पर इस तरह के इंतजाम क्यों नहीं किए जाते। इस साल चारधाम मार्ग पर हादसे या हेलिकाप्टर को आपात स्थिति में उतारने की यह पांचवीं घटना है। इससे पहले आठ मई को उत्तरकाशी के गंगनानी में निजी कंपनी का हेलिकाप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था, जिसमें छह लोगों की मौत हो गई थी।

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ऐसी ही एक भयावह घटना रविवार को महाराष्ट्र के पुणे में हुई, जहां इंद्रायणी नदी पर बना लोहे का एक पुल ढह गया। इस पुल को जिला प्रशासन ने खतरनाक घोषित किया था और चेतावनी बोर्ड भी लगाए गए थे। पर क्या सिर्फ चेतावनी बोर्ड लगाने से सरकार व प्रशासन की जिम्मेदारी पूरी हो जाती है? अगर वह जीर्णावस्था में था, तो पर्यटकों के वहां जाने पर पूर्ण रोक क्यों नहीं लगाई गई। किसी भी स्तर पर बरती जाने वाली लापरवाही के लिए जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए, ताकि भविष्य में कोई बड़ी अनहोनी न हो।