दिल्ली सरकार ने अपना एक साल पूरा कर लिया। शायद ही किसी अन्य राज्य सरकार का एक साल पूरा होने पर लोगों का इतना ध्यान गया हो। इसका एक सबब यह हो सकता है कि दिल्ली में मीडिया की भारी मौजूदगी है। पर ज्यादा बड़ी वजह दूसरी मालूम पड़ती है, वह यह कि आम आदमी पार्टी का उभार एक नई राजनीतिक परिघटना के रूप में हुआ था और इसने काफी उम्मीदें भी जगार्इं। अरविंद केजरीवाल को लोगों ने बदलाव की बयार के प्रतीक के रूप में देखा।
दिल्ली सरकार उन सपनों को पूरा करने की दिशा में कहां तक बढ़ पाई है? आप का एक प्रमुख वादा बिजली की दरों में कटौती करने तथा प्रत्येक परिवार को बीस हजार लीटर तक पानी की मुफ्त आपूर्ति और पानी के शुल्क में कोई बढ़ोतरी नहीं करना था। इस वादे को आप सरकार पहले ही पूरा कर चुकी थी। अपनी सरकार का एक साल पूरा होने के मौके पर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्लीवालों के पानी के पुराने बिलों को माफ करने की घोषणा की।
उम्मीद है कि करीब पच्चीस फीसद उपभोक्ताओं को इसका फायदा मिलेगा। यह लाभ उन उपभोक्ताओं को ही मिल पाएगा जिनके घर में पानी के मीटर लगे हों और ठीक से काम कर रहे हों। बिजली की दरें न बढ़ने देने में भी दिल्ली सरकार कामयाब रही है। उसके खाते में कुछ और भी सराहनीय बातें कही जा सकती हैं। मसलन, किसानों को पचास हजार रुपए प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मुआवजा मिला। शायद ही किसी अन्य सरकार ने किसानों को इतनी ऊंची दर से मुआवजा दिया हो। पर दिल्ली में किसानों की संख्या बहुत मामूली है। सम-विषम प्रयोग को लेकर बहुत अंदेशे थे, पर दिल्ली सरकार इसे लागू करने में सफल हुई, और इस बारे में कराई गई रायशुमारी के नतीजों से उत्साहित होकर वह इस फार्मूले को फिर से लागू करने की तैयारी कर रही है।
पर साल भर में आप सरकार के खाते में कुछ विवाद भी जुड़े हैं। कई विधायकों पर वित्तीय गड़बड़ी करने से लेकर बदसलूकी तक के आरोप लगे हैं। नगर निगमों की हड़ताल समेत बहुत सारे मामलों में केंद्र या उपराज्यपाल के साथ रह-रह कर टकराव उभरता रहा है। केजरीवाल का कहना है कि उन्हें काम नहीं करने दिया जा रहा, केंद्र ने उनके हाथ बांध रखे हैं। यह सही है कि उपराज्यपाल ने जिस तरह की अड़ंगेबाजी साल भर में की है वह निहायत अलोकतांत्रिक है। पर सीमित अधिकारों में ही जब केजरीवाल डीडीसीए पर लगे आरोपों के मद््देनजर जांच बिठा सकते हैं तो अपने मंत्रियों या विधायकों पर लगे आरोपों की बाबत क्यों नहीं?
आम आदमी पार्टी का गठन केवल इसलिए नहीं हुआ था कि दिल्ली के लोगों को पानी और बिजली के मामले में कुछ राहत मिल जाए। ऐसे दो-चार लोकलुभावन कदम हर राज्य सरकार के खाते में गिनाए जा सकते हैं। आम आदमी पार्टी का गठन देश की राजनीति को आमूल बदलने के मकसद से हुआ था। वैकल्पिक राजनीति का दावा करने वाली पार्टी अब खुद इस पैमाने पर कहां खड़ी है? इस लिहाज से देखें तो निराश होना पड़ा है। कुछ मामलों में केजरीवाल केंद्र पर दोष मढ़ सकते हैं। पर आप के जिन विधायकों की वजह से उन्हें किरकिरी झेलनी पड़ी, उन्हें टिकट किसने दिया था? उम्मीदवारों के चयन में जो प्रक्रिया और मापदंड पहले अपनाए गए थे उन्हें बाद में क्यों छोड़ दिया गया? अन्य दलों और आप के बीच फर्क क्यों लगातार घटता गया है? केजरीवाल सरकार के मूल्यांकन की एक कसौटी यह भी होनी चाहिए