ललिता जोशी

पाषाण युग का मनुष्य भी झुंड बनाकर यहां-वहां घूमा करता था। वह अपने मनोरंजन या फिर यह भी कह सकते हैं कि अपने भावाभिव्यक्ति के लिए अपने रहने के स्थान या फिर यों कहें कि अपनी गुफाओं में कुछ रेखाचित्र उकेर देता था। धीरे-धीरे आदिम मनुष्य ने विकास की राह पकड़ी और वह अपने लिए भीत्ति-चित्र बनाने लगा।

क्रमिक विकास के दौरान मनुष्य ने अन्य कलाओं- जैसे गायन, वादन, नृत्य, चित्रकारी आदि की ओर अपनी प्रतिभा को निखारा। इन कलाओं के साथ-साथ मानव ने अपनी जिज्ञासा और आवश्यकता को पूरा करने के लिए खोज भी आरंभ कर दी। अब वह विज्ञान और प्रौद्योगिकी की ओर चल पड़ा। उसने नए-नए ईजाद भी किए। बल्ब, हवाई जहाज, रेडियो, तार-बेतार, टेलीविजन, टेलीफोन, दवाइयां और जीवनरक्षक दवाएं, उपचार के नए-नए उपकरण आदि।

फिर आई सूचना क्रांति तो कंप्यूटर बना और उससे भी ज्यादा क्रांतिकारी आविष्कार हुआ मोबाइल फोन का। ये बेतार फोन कहीं भी बैठकर और घूमते-फिरते हुए सुना जा सकता था। मनुष्य भी कितना विचित्र प्राणी है। वह अपनी सुविधा के अनुसार अपनी ही ईजाद की गई चीजों में सुधार करता रहता है और अपनी ईजाद की गई चीजों या फिर उपकरणों का खुद ही गुलाम बन बैठता है। इन मोबाइल फोन में एफएम रेडियो, कैमरा, रिकार्डिंग और न जाने कितनी ही सुविधाएं उपलब्ध हो गई हैं।

सूचना का यह पुलिंदा हम जेब में लेकर घूम सकते हैं। एक क्लिक पर सारे संसार की सूचना सरलता से हासिल की जा सकती हैं। ये सूचनाएं सकारात्मक और नकारात्मक, दोनों ही हो सकती हैं। या फिर यों कहा जा सकता है कि सूचना का विस्फोट मोबाइल रूपी बम का अंतरंग हिस्सा है। हाथ का ये एटम बम बहुत ही घातक भी है तो दूसरी ओर ये ज्ञान का भंडार भी है। लेकिन आज इस मोबाइल का प्रयोग बहुविध प्रकार से किया जाता है। इसका सबसे बड़ा उपयोग है खुद की फोटो लेना या फिर इसे सेल्फी भी कहा जाता है, यह तो हम सभी को मालूम है।

लेकिन आज का मानव आत्ममुग्ध नायक का ही एक रूप है। हालात देखकर लगता है कि आत्ममुग्धता के विषाणु से पूरा विश्व पीड़ित है। कोरोना महामारी से संपूर्ण विश्व ग्रसित हुआ और उसके दुष्परिणाम भी हमारे समक्ष आए। जान-माल का नुकसान हुआ और बड़े-बड़े से देश की आर्थिक हालत खराब हो गई थी। पूर्णबंदी या तालाबंदी सुरसा की तरह पांव पसार कर बैठ गई थी। लेकिन इतना सब होने पर भी इससे भयंकर बीमारी सेल्फी हमदर्द की तरह साथ-साथ चलती रही। चाहे लोग भूख से बेहाल होकर पैदल मार्च कर रहे थे या फिर रेल की पटरियों पर सोए, इनमें से बहुतों ने अपनी सेल्फी अपने सोशल मीडिया पर भी डाला।

इस परमवीर मनुष्य की हालत चाहे जो भी हो, पर सेल्फी तो जरूर ली जाएगी, चाहे खुशी के समारोह हों या फिर गमी का मौका। यह विचित्र किंतु सत्य है कि सत पुरुष सब भेदभाव को भुला कर सेल्फी लेने और उसे सोशल मीडिया पर डालने का आनंद जरूर लेता है। जैसे व्यक्ति दूसरों को गरिया कर अपना दबदबा बनाए रखना चाहता है, वैसे ही सेल्फी लेना भी समाज में धाक जमाने का प्रतीक है। मजाल है कि इस विषानÞु की एक बूंद भी पृथ्वी पर छलक जाए और इससे किसी को घृणा हुई हो। बल्कि यह तो नस-नस में बसा हुआ है और इससे कोई मुक्त नहीं होना चाहता। यह वह खाज है जिसे करने में मजा तो आता है, लेकिन इसके लिए कई बार जान की बाजी भी लग जाती है।

सड़क पर चलते-चलते सेल्फी लेना और पहाड़ी नदियों के बीच चट्टानों पर खड़े होकर सेल्फी लेना ऐसा नशा है, जिनके कारण लोग नदी में अचानक आए पानी के वेग में या फिर थोड़ा सा संतुलन बिगड़ते ही अपनी जान से हाथ धो बैठे। कभी समुद्र तट पर सेल्फी लेते-लेते समुद्र में डूब गए। हाल ही में एक पूरे रफ्तार से चलती गाड़ी में सेल्फी बनाते हुए एक व्यक्ति काल के गाल में समा गया। ऐसे न जाने कितने उदाहरण हैं जहां सेल्फी के चक्कर में लोग अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं। लेकिन इसका नशा है कि छूटता ही नहीं।

किसी आत्ममुग्ध नायक की तरह सेल्फी प्रेमी भी खुद में ही खोए रहते हैं। लेकिन देश की सीमाओं की रक्षा करने वाले सैनिकों की तरह सजग रहते हैं कि उनसे सेल्फी का कोई अवसर चूक न जाए, चाहे अपने प्राणों की बलि ही क्यों न देनी पड़े। सेल्फी एक जंग है और दूसरी ओर यह जीवन के लिए दंश भी है। इतना ध्यान या तो कोई अपने भविष्य को संवारने के लिए लगाएं तो जीवन सफल हो जाएगा उसका।