चेतनादित्य आलोक
आज भी ऐसी खबरें देश के अलग-अलग हिस्सों से अक्सर आती रहती हैं। हालांकि धर्मांतरण, तीन तलाक, आरक्षण, भीड़-हत्या, चीन और पाकिस्तान जैसे मुद्दों की तरह रैगिंग को लेकर कभी कोई चर्चा या बहस नहीं हो पाती। इससे जुड़ी खबरें भी अंधविश्वास और मानसून की खबरों की तरह महज सूचनापरक होती हैं।
यकीन मानिए कि जिस दिन इन मामलों में किसी प्रकार का कोई धार्मिक या जातिगत कोण-दृष्टिकोण जुड़ता दिखाई देने लगेगा, उस दिन इनको लेकर भी राजनीतिक मुद्दों पर आधारित चर्चा जैसी ही जोश और उमंग से लबरेज बहसों की दुकानें भी खूब सजने लगेंगी। यहां तक कि ये मामले विभिन्न राजनीतिक दलों के चुनावी एजंडों में भी प्रमुखता से स्थान पाने लगेंगे।
बहरहाल, रैगिंग से जुड़ी हाल की कुछ घटनाओं पर नजर डालें तो चाहे नोएडा के एक इंजीनियरिंग महाविद्यालय में रैगिंग के दौरान कनिष्ठ छात्रों की पिटाई कर कंधे की हड्डियां तोड़ने का मामला हो या संबलपुर के सरकारी इंजीनियरिंग महाविद्यालय के छात्र की पिटाई करने वाली घटना, चाहे इंदौर के वरिष्ठ छात्रों द्वारा प्रताड़ित एक छात्र की आत्महत्या करने का मामला हो या डिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय के रैगिंग से पीड़ित एक छात्र द्वारा दूसरी मंजिल से छलांग लगाकर जान देने की घटना, ये सभी हमारे शिक्षण संस्थानों की प्रशासनिक क्षमताओं पर प्रश्नचिह्न खड़े करती हैं।
लेकिन इन सबसे अलग इंदौर के महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कालेज में हुई रैगिंग की घटना में पुलिस की भूमिका बहुत सराहनीय रही। दरअसल, हुआ यह कि पीड़ित छात्रों द्वारा आरोपों से मुकर जाने के बाद रैगिंग के आरोपित विद्यार्थियों को सलाखों के पीछे पहुंचाने की पुलिस की उम्मीदों पर पानी फिरता नजर आने लगा, लेकिन मामले की फाइल बंद करने से ठीक पहले संबंधित थाने के पुलिसकर्मियों और खासतौर पर जोखिम उठा कर एक महिला आरक्षी ने सादे वेश में कालेज विद्यार्थी के रूप में जाकर इस जटिल मामले का खुलासा किया और आरोपियों की गिरफ्तारी संभव हो सकी।
इतिहास में जाएं तो रैगिंग की वजह से दुनिया में पहली मौत वर्ष 1873 में न्यूयार्क की कारनेल विश्वविद्यालय की इमारत से गिरकर एक कनिष्ठ छात्र की हुई थी। हालांकि रैगिंग की शुरुआत सातवीं-आठवीं शताब्दी में ही ग्रीस में वहां के विभिन्न खेल समुदायों के बीच नए खिलाड़ियों में खेल के प्रति उत्साह और प्रेरणा का भाव जगाने के उद्देश्य से की गई थी, जिसमें नए खिलाड़ियों को चिढ़ाया और अपमानित किया जाता था।
समय के साथ रैगिंग के स्वरूप में बदलाव होता गया और बीसवीं सदी के आते-आते पश्चिमी देशों में इसका प्रवेश शिक्षण संस्थानों में भी हो गया। इसके बाद रैगिंग के दौरान वरिष्ठ छात्र नए विद्यार्थियों के साथ जिस तरह पेश आने लगे, उसने कई बार बेहद दुखद मोड़ लेना शुरू कर दिया। आए दिन हिंसक घटनाओं की संख्या में बेतहाशा वृद्धि होती चली गई। वहीं हमारे देश में सर्वप्रथम इस कुरीति का चलन आजादी से ठीक पहले अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में प्रारंभ हुआ। इसलिए इसे अंग्रेजी परंपरा की देन कहना गलत नहीं होगा।
हालांकि शुरुआती दौर में भारत में रैगिंग महज वरिष्ठ और नए विद्यार्थियों के बीच मित्रता बढ़ाने का एक जरिया भर होता था। तब रैगिंग के दौरान शालीनतापूर्वक व्यवहार किया जाता था, लेकिन पिछली सदी के नब्बे का दशक आते-आते हमारे देश में रैगिंग ने घातक रूप ले लिया। जान-पहचान के लिए जहां नए, मनोरंजक और सद्भाव पैदा करने वाले तरीके निकाले जाने चाहिए थे, वहीं इसका स्वरूप बिगड़ता गया और इसमें सामंती हिंसक और विकृत कुंठाओं के विस्फोट का रूप दिखाई देने लगा।
रैगिंग के दुष्परिणामों को देखते हुए वर्ष 2001 में सर्वोच्च न्यायालय ने पूरे भारत में इस पर प्रतिबंध लगा दिया और इसके विरुद्ध कड़े कानून बनाए गए। उसके बाद से देश भर में कहीं भी रैगिंग लेना या फिर इस प्रक्रिया में भागीदार बनना एक आपराधिक कृत्य माना जाने लगा। इसके बावजूद रैगिंग की घटनाओं को रोक पाना एक मुश्किल काम बना रहा।
आखिरकार 2009 में हिमाचल प्रदेश में अमन काचरू नामक एक मेडिकल छात्र की रैगिंग से हुई मौत के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने देश के सभी शिक्षण संस्थानों में रैगिंग विरोधी कानून कड़ाई से लागू करने का आदेश दिया। इस उक्त कानून के अंतर्गत रैगिंग लेने के आरोपी व्यक्ति को तीन वर्षों के लिए सश्रम कारावास की सजा और आर्थिक दंड का भी प्रावधान है।
हालांकि इतने कड़े कानूनों के बावजूद शिक्षण संस्थानों में रैगिंग की घटनाओं पर अब तक लगाम नहीं लगाई जा सकी है। इससे यही लगता है कि सिर्फ कानून बना देने से ही रैगिंग जैसी कुप्रवृत्ति नहीं रुकने वाली। जब तक विद्यार्थियों के भीतर सामंती कुंठाओं के हिंसक विस्फोट के लिए जगह बनी रहेगी, यह अलग-अलग स्वरूप में कायम रहेगा। जब तक हमारा समाज अपने बच्चों के भीतर पैदा होने के बाद मानवीय मूल्यों को उसका मानस नहीं बनाएगा, तब तक वह बच्चा दूसरे की संवेदनाओं की कद्र करने वाला इंसान नहीं बन सकेगा।