राकेश सोहम्
रेल यात्रा कर रहा था। सुबह-सुबह एक स्टेशन पर गाड़ी रुकी। यात्री प्लेटफार्म पर खाद्य सामग्री लेने उतर गए। मैं भी चाय पीने के लिए नीचे उतरा। चाय पीते हुए एक सहयात्री से बातचीत होने लगी। उन्होंने बताया कि वे पेशे से जज हैं। मेरी चाय समाप्त हो चुकी थी, इसलिए प्लास्टिक का डिस्पोजेबल कप प्लेटफार्म पर यों ही उछाल दिया। उनकी भी चाय समाप्त हो गई, फिर उन्होंने लपक कर मेरा फेंका हुआ कप उठाया और अपने कप के साथ ही उसे भी कूड़ेदान में डाल दिया।
ऐसा करते हुए उनके चेहरे पर कोई झिझक या संकोच नहीं था। वे लौटे और ट्रेन पर चढ़ते हुए फिर मुझसे बात करने लगे। मेरा मन ग्लानि से भर गया। मैंने उनसे क्षमा मांगी। वे विनम्रतापूर्वक मुस्कुराए और बोले, ‘भाई साहब, भले ही हम लोग उजाले का पर्व मनाने अपने-अपने घर जा रहे हैं, लेकिन हमारे मन का अंधियारा कम नहीं हो रहा! दीवाली के एक दीये के बराबर रोशनी भी हममें चेतना भर सके तो बात बने।’
चिंतक मानते हैं कि दुनिया में अधिकतर लोग सोए हुए हैं। जागते हुए सोना हमारी आदत में शुमार हो गया है। असंवेदनशीलता रगों में प्रवाहित होने लगी है। अपने आसपास होने वाली दुर्घटनाओं, अवहेलनाओं, विद्रूपताओं, विसंगतियों और दुख-दर्द से बेखबर लोग जागृत होने का अभिनय मात्र कर रहे हैं। कभी सोचें कि कितने अवसरों पर हमने एक जागरूक या सचेत मानव होने जैसा व्यवहार किया है? बहुत कम लोग ऐसा कर पाते हैं। अच्छा काम करने के पहले अहं, भय और शर्म की बेड़ियां हमें जकड़ लेतीं हैं। लोग अपने में सिमटे हुए हैं।
मेरे एक मित्र अपने रिश्तेदार के यहां से देर रात लौट रहे थे। वे दुपहिया वाहन से थे। एक सूने रास्ते पर चलते हुए कोई लड़की दुपहिया वाहन को तेज गति से चलाते हुए उनसे आगे निकल गई। उसके तुरंत बाद दो मोटरसाइकिलें भी फर्रांटा भरती हुई आगे निकलीं। दोनों मोटरसाइकिलों पर तीन-तीन लड़के सवार थे।
लड़के जिस तरह की शब्दावली का प्रयोग करते हुए लापरवाहीपूर्वक वाहन दौड़ा रहे थे, उससे उन्हें यह समझते देर नहीं लगी कि वे असमाजिक तत्व हैं और लड़की का पीछा कर रहे हैं। रास्ता सीधा और थोड़ा लंबा था, इसलिए मित्र अपने दुपहिया वाहन की हेडलाइट में लड़की के पीछे उन असामाजिक तत्वों को वाहन दौड़ाते देख पा रहे थे। रास्ता आगे से मुड़ता था, इसलिए वे ओझल हो गए।
उन्होंने अपने वाहन की गति बढ़ाई और उस मोड़ पर पहुंचे। उन्होंने देखा कि लड़की अपने वाहन पर रास्ते के बीचों बीच रुकी हुई है। उसका रास्ता लड़कों की एक मोटरसाइकिल ने रोक रखा था। लड़की के चेहरे पर भय स्पष्ट झलक रहा था। दूसरी मोटरसाइकिल लड़की के वाहन के एक ओर करीब ही खड़ी थी। मेरे मित्र तुरंत माजरा समझ गए। वे एक जागरूक, चैतन्य और दबंग नागरिक का परिचय देते हुए लड़की के वाहन के ठीक बाजू में रुके और बोले, ‘अरे चिंकी बेटा! तुम इतनी लेट कैसे हो गर्इं? हम लोग तुम्हें लेने निकले थे।
चिक्की भैया भी कार से पहुंचता होगा। वह मेरे पीछे ही है।’ मित्र की बात सुन कर दोनों मोटरसाइकिल सवार अपशब्द बोलते हुए लौट गए। मेरे मित्र उस लड़की को बिल्कुल नहीं जानते थे। बस यों ही उसे अपनी बेटी ‘चिंकी’ के नाम से संबोधित कर दिया था! वह कुछ दूर तक लड़की के साथ-साथ चले। अभी वह भय से उबरी नहीं थी शायद, इसलिए चुप थी। आगे एक कालोनी के गेट के अंदर मुड़ते हुए उसने ऊंची आवाज में ‘थैंक्स अंकल’ कहा। उस रात मेरे मित्र ने एक बेटी का भविष्य उजालों से भर दिया था।
बहरहाल, खुली आंखें सोई हुई दुनिया की लापरवाही के परिणाम स्वरूप पैदा हुई स्थिति की एक चौंका देने वाली काल्पनिक तस्वीर हाल ही में क्लाइमेट सेंट्रल नामक संस्था ने जारी की है- बकिंघम पैलेस समुद्री जल में डूब गया है। इस संस्था के अनुसार न केवल बकिंघम पैलेस, बल्कि दुनिया के अनेक प्रमुख शहरों के जलमग्न हो जाने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता! प्राकृतिक संसाधनों का अधाधुंध दोहन इस धरती पर सोई हुई मानवता का सबसे बड़ा उदाहरण है, जिसकी वजह से ग्लोबल वार्मिंग और अनियमित जलवायु परिवर्तन हो रहा है।
अगर दुनिया अब भी नहीं चेती, तो अगले करीब सौ वर्षों में यह हो सकता है। अगर ऐसा है तो सिनेमाई पर्दों के माध्यम से दिलों पर राज करने वाले सितारों की मायानगरी मुंबई भी समुद्री जल में समा जाएगी! आने वाला समय बड़ा कठिन है। हममें से प्रत्येक को चेतना के उजालों में जीने की आदत डालनी होगी। जलवायु परिवर्तन के कारकों की उपेक्षा से उपजी भयावहता को महसूस करना होगा।