अरुणा कपूर
अगर पूछें कि कोई आपकी प्रशंसा करता है, तो कैसा लगता है? अच्छा लगता है या बुरा? शायद ही कोई कहेगा कि मुझे बुरा लगता है। वैसे प्रशंसा एक मिठाई की तरह है, जो मीठी भी लगती है और अच्छी भी। प्रशंसा कुछ व्यक्तियों के लिए लाभदेह सिद्ध होती है।
समझ लीजिए कि एक विद्यार्थी परीक्षा में सामान्य यानी कि सौ में पचास प्रतिशत अंक प्राप्त करता है। ये अंक ज्यादा नहीं हैं, लेकिन उसे उसके अभिभावक या शिक्षक कहते हैं कि ‘तुम्हारा परीक्षा परिणाम अच्छा है। हो सकता है कि इस बार किसी वजह से तुम अभ्यास पर ज्यादा ध्यान केंद्रित नहीं कर पाए… लेकिन तुम्हारी बुद्धिमत्ता से मैं परिचित हूं।
अगली कक्षा में तुम निश्चित ही प्रथम दस विद्यार्थियों में अपना नाम शामिल करके दिखाओगे।’ यह उस विद्यार्थी के लिए की गई प्रशंसा है, जो उसे पढ़ाई में विशेष ध्यान देने के लिए, प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से की गई है।
इसे सच-झूठ के तराजू में तोलने की कतई आवश्यकता नहीं है। कुछ अपवाद स्वरूप विद्यार्थियों को छोड़ दें तो यह प्रशंसा अपना जादुई असर दिखाती है। वह विद्यार्थी अपने आप को ज्यादा काबिल समझ कर अगली परीक्षा की तैयारी पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करता है, पहले से ज्यादा मेहनत करता है और अधिक अंक हासिल करने में सफल रहता है। प्रथम दस विद्यार्थियों की सूची में भी अपना नाम दर्ज करवा सकता है।
इसी तरह की प्रशंसा कुछ लड़कियों में आत्मविश्वास पैदा करने के लिए भी किया जा सकता है। कुछ लड़कियों में हीन भावना घर कर गई होती है। किसी लड़की को लग रहा होता है कि उसका रंग सांवला होने की वजह से वह सुंदर नहीं है या उसका कद छोटा होने की वजह से उस पर किसी का ध्यान नहीं जाता या बहुत मोटी या पतली होने की वजह से उसका मजाक उड़ाया जाता है। तो उसके अनुसार भी ऐसी लड़कियों के बारे में, प्रशंसा में कहे गए दो शब्द उनके अंदर आत्मविश्वास भर देते हैं और वे आगे बढ़ने के लिए कमर कस लेती हैं।
उन लड़कियों की प्रशंसा करने के दरम्यान उनके अंदर छिपे उन गुणों को बताया जाता है, जिनकी तरफ उनका अब तक ध्यान गया ही नहीं होता। पता चलने पर उनके अंदर मौजूद अन्य गुणों को समाज के सामने रख कर, अपना महत्त्व दर्शाने में वे लड़कियां सफल हो जाती हैं।
अगर किसी सांवली लड़की की अच्छी आवाज की प्रशंसा की जाए या छोटे कद की लड़की के अंदर छिपे हुए नेतृत्व के गुण की प्रशंसा करके उसे उजागर करने के लिए कहा जाए, तो उसे आगे बढ़ने के लिए बल मिलता है। वह अपनी पहले वाली, हीन भावना पैदा करने वाली सोच पर ध्यान देना बंद कर देती है। यह प्रशंसा से प्राप्त होने वाले लाभ हैं।
इसी तरह झूठी प्रशंसा द्वारा किसी का लाभ उठाने में भी कुछ लोग माहिर होते हैं। कौवा, लोमड़ी और पनीर के टुकड़े वाली कहानी जग प्रसिद्ध है। यहां समझने की बात यह है कि आपकी प्रशंसा किस उद्देश्य से की जा रही है।
प्रशंसा का प्रयोग किसी व्यक्ति की, किसी अन्य व्यक्ति के साथ तुलना करने में किया जाए, तो बजाय लाभ के, नुकसान होता भी देखा गया है। हमारे पड़ोस के परिवार में दो बेटियां थीं। छोटी बेटी सुंदर और फैशनपरस्त थी। पढ़ाई में भी कक्षा में अव्वल ही रहती थी। जबकि बड़ी बेटी स्वभाव से नरम और भोली-भाली थी।
इसी वजह से उसे कुछ न कुछ घर का काम करने के लिए कह कर, घर में बैठाया जाता था। उसे कम अंक आने पर, कुछ छोटी बहन से अक्ल उधार लेने के लिए कहा जाता था। उसकी तरह बनने के लिए बार-बार कहा जाता था। जब-तब उसके माता-पिता उसके सामने छोटी बेटी की प्रशंसा करते रहते थे।
इसका असर विपरीत हुआ। बड़ी बेटी में हीन भावना पैदा हुई और उसने स्कूल जाना भी बंद कर दिया और छोटी बेटी अपने आप को और स्मार्ट दिखाने के चक्कर में गलत संगत में पड़ गई। उसका घर से पैसे चुरा कर फिल्में देखना, पिकनिक पर जाना शुरू हुआ। महंगे प्रसाधन भी खरीदना शुरू किया।
अब उसका ध्यान पढ़ाई से भी हटता गया। जब स्कूल में किसी सहेली के पैसे और मोबाइल फोन उसने चुराया और रंगे हाथ पकड़ी गई, तब उसके अभिभावकों को अपनी गलती का एहसास हुआ।
उन्होंने छोटी बेटी की तुलनात्मक प्रशंसा बड़ी बेटी के साथ कर के, दोनों बेटियों के जीवन के साथ खिलवाड़ किया था। देर से समझ आने पर दोनों बेटियों का जीवन सुधारने के लिए उन्होंने बाद में, मनो-चिकित्सक की मदद जरूर ली, लेकिन जो नुकसान हुआ उसकी भरपाई कितनी हो सकती थी, यह सहज ही समझा जा सकता है। इसलिए प्रशंसा किसी का भला करने के उद्देश्य से ही किया जाए, तभी बेहतर साबित होता है।