एकता कानूनगो बक्षी
किसी विद्यालय या महाविद्यालय में शिक्षण सत्र के अंतिम परिणाम के बाद मिलने वाली अंक सूची भर से हम अगले चरण में प्रवेश नहींं पा सकते। इसके लिए संस्था से मिलने वाला चरित्र प्रमाण-पत्र भी चाहिए होता है, जिसमें शैक्षणिक सत्र के दौरान विद्यार्थी के व्यवहार, शिष्टाचार और विभिन्न गतिविधियों में उसकी सक्रियता, रुझान आदि में गुणवत्ता के आधार पर संक्षिप्त ब्योरे के साथ छात्र के उज्ज्वल भविष्य के लिए शुभेच्छाएं शामिल होती हैं। इसी तरह नौकरी के दौरान भी व्यक्ति का मूल्यांकन होता रहता है। सक्षम प्राधिकार द्वारा लिखी जाने वाली गोपनीय चरित्रावली भी सेवाकाल में बहुत महत्त्वपूर्ण होती है। इसी के आधार पर नौकरीपेशा व्यक्ति की पदोन्नति के अवसर उपलब्ध होने में मदद मिलती है।
जब तक हम अपने कार्यक्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन और आचार संहिता का अनुशासन के साथ पालन करते हैं, तब तक बेहतरीन कर्मचारी, विशेषज्ञ की भूमिका में लोकप्रिय बने रहते हैं। इसमें कार्यकुशलता के अलावा नेतृत्व क्षमता, अच्छी रणनीति बनाने के साथ बोलचाल में मधुरता और प्रभावशीलता जैसे अन्य गुण भी आवश्यक होते हैं। सामाजिक दबाव के चलते उम्मीद लिए आगे बढ़ते रहना हमारी प्राथमिकता हो जाती है। इसके बाद ही हम अपने को शायद ‘अच्छा व्यक्ति’ कहलाने योग्य बनने की दिशा में कदम बढ़ा पाते हैं।
यह सब जानते हुए भी कई बार हम अपने मतलब के विषयों में इस कदर डूबे रहते हैं कि अपने व्यक्तित्व के अनेक व्यावहारिक, वैचारिक पक्षों को समझने का समय ही नहीं निकाल पाते हैं। कभी मजबूरी में, तो कभी आत्मविश्वास के साथ हम भले कैरिअर में कितनी ही तेज दौड़ लगा दें, पर सार्थक जीवन की राह में हम थोड़ा पिछड़ भी सकते हैं, और उस अद्भुत संतोष और आनंद से खुद को वंचित कर लेते हैं, जो किन्हीं खास लोगों को ‘अच्छा इंसान’ कहे जाने पर प्राप्त होता है।
जब किसी बच्चे से पूछा जाता है कि आप बड़े होकर क्या बनना चाहोगे? तब अपने बड़ों से उसने कई विकल्प सुने हुए होते हैं, वह उनमें से ही अपनी रुचि के अनुसार जवाब दे देता है। पर शायद ही किसी बच्चे का जवाब रहा हो कि वह ‘अच्छा इंसान’ बनना चाहता है। डाक्टर, वैज्ञानिक, शिक्षक, इंजीनियर, अभिनेता, नेता, पुलिस, पायलट और भी उसके अपने तात्कालिक आदर्श होते हैं। इसके लिए उसकी भी तैयारी बहुत कम उम्र में शुरू हो जाती है। निश्चित ही मेहनत और सूझबूझ से सब संभव है। पर जरा गौर कीजिए, डाक्टर, वैज्ञानिक, शिक्षक, अभिनेता, पायलट, नेता इन अलग-अलग भूमिकाओं में हमारे परिचय के कई लोग उपस्थित हैं, पर जब हम याद करते हैं तो कुछ ही लोगों के लिए हमारा मन सम्मान और स्नेह से भर पाता है।
मुठ्ठी भर लोग ही क्यों इतिहास और लोगों की स्मृति में अपनी जगह बना पाते हैं? लोगों के मन में बस जाते हैं। पर हमारे मन-मस्तिष्क में कुछ ऐसे लोग भी छाप छोड़ जाते हैं, जो इन विशेषज्ञों की सूची में नहीं होते, न ही इतिहास के पन्नों में उनका नाम कहीं दर्ज होता है, लेकिन उनके व्यवहार की खुशबू, अपने काम को लेकर उनका समर्पण भाव हमारे मन को उनके प्रति स्नेह और सम्मान से भर देता है। सफाईकर्मी, सुरक्षाकर्मी, आटो, बस, तांगे वाले या घर की सहायक, कोई अजनबी, जिसने हमारी कभी आत्मीय मदद की थी या फिर रोज की दौड़-भाग में मिलते आम लोग, जिनसे हम मुस्कुराहट का आदान-प्रदान भी कर लेते हैं। साधारण से प्रतीत होते कितने ही लोग जीवन को सुंदर बनाने का महत्त्वपूर्ण काम कर रहे हैं।
जब तक हम अपनी दृष्टि को व्यापक और उदार नहीं रख पाते, केवल खुद के फायदे और लोकप्रियता तक सीमित रख पाते हैं, तब हमारी स्थिति उस मोबाइल फोन जैसी हो जाती है, जो बाजार में नई तकनीक के साथ आता है, लोकप्रिय हो जाता है। पर कुछ समय बाद जैसे ही उससे बेहतर तकनीक से लैस नया मोबाइल आता है, उस मोबाइल को भूलने और बदल देने में लोगों को बहुत अधिक समय नहीं लगता। हम भी कभी-कभी अनायास खुद को एक वस्तु में रूपांतरित कर लेते हैं।
मगर अच्छा व्यक्ति कभी वस्तु नहींं होता। उसमें मानवीय संवेदनाओं और अनुभूतियों से भरा एक धड़कता दिल विद्यमान होता है। खुद के भीतर की जटिलताओं और मानसिक दुर्बलताओं से मुक्ति के बाद कोई भी व्यक्ति ‘अच्छा आदमी’ कहे जाने का सम्मान अर्जित कर सकता है। यह भी सच है कि इसके लिए महज दिखावे और प्रसिद्धि की चकाचौंध का मोह छोड़ कर समर्पण, मेहनत, सद्भाव के दीपक के प्रकाश से प्रेम करना सीखना होगा। हम खुद के प्रति और अपने जीवन के प्रति तभी ईमानदार हो सकेंगे जब अच्छाइयों को अपनाने की प्रवृत्ति विकसित कर सकेंगे। हर काम, हर सोच, हर व्यवहार में दूसरों की बेहतरी और खुशी का खयाल हमेशा बना रहे तो फिर किसी भी व्यक्ति को ‘अच्छे इंसान’ का तमगा हासिल करने से कोई रोक नहींं सकता।