विश्वंभर
शिक्षा में बदलाव के प्रति राज्य सरकारों के सरोकारों और गंभीरता को उनके फैसलों के संदर्भ में देखा-समझा जाना चाहिए। राजस्थान के शिक्षामंत्री ने कहा है कि ‘आठवीं कक्षा तक बच्चों को फेल न करने का निर्णय सही नहीं है। बच्चों का सही शैक्षणिक विकास हो सके, इसके लिए आठवीं तक तीन स्तर पर बोर्ड की परीक्षाएं ली जाएंगी।’ ये कक्षाएं तीसरी, पांचवीं और आठवीं होंगी। इससे कुछ दिन पहले प्रदेश की मुख्यमंत्री भी आरंभिक शिक्षा में परीक्षाओं को समाप्त किए जाने के फैसले को अमेरिका की साजिश बता चुकी हैं। शिक्षामंत्री का फैसला और मुख्यमंत्री का वक्तव्य, शिक्षा के वर्तमान चिंतन के प्रति उनकी अनभिज्ञता और नासमझी को दर्शाते हैं। आठवीं कक्षा तक बोर्ड की परीक्षाएं लागू करने का यह फैसला शिक्षा में बदलाव के लिए किए जा रहे प्रयासों को पीछे धकेलने का काम करेगा।
अव्वल तो यह फैसला शिक्षा के अधिकार कानून, 2009 के विरोध में जाता है, क्योंकि कानून कहता है कि किसी भी बच्चे को किसी कक्षा में रोका नहीं जाएगा। दूसरे, वह सतत और व्यापक मूल्यांकन की एक वैकल्पिक विधि भी सुझाता है। इस बयान से ऐसा लगता है कि राजस्थान के शिक्षामंत्री शिक्षा की एक बीमारी का इलाज दूसरी बीमारी में ढूंढ़ रहे हैं। हमारी शिक्षा-व्यवस्था की समस्या यह है कि बच्चे सीख नहीं रहे हैं। इसके अनेक व्यवस्था-जनित कारण हैं। अध्यापकों की शिक्षा, व्यवस्थात्मक सुधार और जवाबदेही पर कभी पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया। इसे बिना सुधारे परीक्षा जैसी चीजें लागू कर शिक्षा में बदलाव लाना चाहते हैं।
भारत की शिक्षा-व्यवस्था में बेहतरी के लिए लंबे समय से एक पैरवी यह की जाती रही है कि परीक्षा प्रणाली को समाप्त कर उसके स्थान पर बेहतर मूल्यांकन के तरीके अपनाए जाने चाहिए। ऐसे तरीके, जो बच्चों को सीखने में आने वाली दिक्कतों को पहचानने और समझने में मदद करें, जिसके जरिए शिक्षक बच्चों के सीखने को बेहतर बनाने में सहयोग प्रदान कर सकें। हमारे यहां मुख्यधारा शिक्षा में मूल्यांकन का एकमात्र प्रचलित तरीका परीक्षा रहा है। यह बच्चे को सीखने में मदद के बजाय उनकी छंटनी करने में ज्यादा काम आता रहा है। इसका नतीजा यह होता है कि लाखों बच्चे अपनी आरंभिक शिक्षा पूरी किए बगैर स्कूल छोड़ देते हैं। राष्ट्रीय पाठ्यचर्या और शिक्षा का अधिकार कानून मूल्यांकन के तरीके में बदलाव की बात करते हैं। राष्ट्रीय पाठ्यचर्या 2005 मूल्यांकन की एक ज्यादा सुसंगत और गहरी समझ प्रदान करती है।
बच्चों के आकलन के संदर्भ में राष्ट्रीय पाठ्यचर्या 2005 कहती है कि ‘भारतीय शिक्षा में मूल्यांकन शब्द परीक्षा, तनाव और दुश्चिंता से जुड़ा हुआ है।… हमें परीक्षा के उन दुष्प्रभावों की चिंता है, जो सीखने-सिखाने की प्रक्रियाओं को आनंददायी बनाने के प्रयासों पर पड़ते हैं।’ पाठ्यचर्या दस्तावेज बोर्ड जैसी परीक्षाओं के स्थान पर एक भिन्न तरीके के मूल्यांकन को प्रस्तावित करते हुए कहता है, ‘बड़ी-बड़ी मासिक और वार्षिक परीक्षाओं की जगह समय-समय पर छोटी-छोटी परीक्षाएं होनी चाहिए।’ यह किसी नेता की नहीं, बल्कि एक शिक्षाशास्त्रीय चिंता है।
सभी जानते हैं कि हमारे यहां प्रचलित परीक्षा प्रणाली बच्चों के ज्ञान, कौशल और दुनियावी बोध की जांच कर पाने में विफल रहती है। बचपन से ही परीक्षा के नाम पर बिना समझे रटने का एक ऐसा सिलसिला शुरू होता है, जो उच्च शिक्षा तक हमारा पीछा नहीं छोड़ता। इसी परीक्षा प्रणाली के दबाव के चलते बच्चे अपनी तमाम रचनात्मक अभिरुचियों और खेलकूदों से महरूम होने लगते हैं। बच्चे के बहु-आयामी व्यक्तित्व में निहित तमाम संभावनाआें को इस दायरे में कैद कर देना उनके विकास के लिए घातक है।
किसी भी समाज में शिक्षा कुछ खास उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए दी जाती है। लोकतंत्र में शिक्षा की भूमिका और महत्त्वपूर्ण हो जाती है। अगर बच्चे को वयस्क होकर लोकतंत्र में भागीदारी करनी है, तो इसके लिए आलोचनात्मक समझ होनी आवश्यक है। यानी एक बेहतर नागरिक साबित होने के लिए भी रटंत आधारित शिक्षा से आगे जाना होगा। किसी भी देश की सरकार ऐसे नागरिक नहीं चाहती, जो अपने निर्णय खुद कर सकें। इसके लिए बचपन से ही परीक्षा जैसी प्रक्रियाएं मुफीद हैं, ताकि वे खुली आबोहवा में सांस न ले सकें। अपने और समाज के बारे में न सोच सकें। लगता है कि बोर्ड की परीक्षाएं लागू करने का निर्णय देश की भावी पीढ़ी को इसी दुश्चक्र में जकड़े रखने का एक प्रयास है। अगर वे सही मायने में शिक्षा में सुधार करना चाहते हैं तो सुसंगत शैक्षिक नजरिए से समस्या के समाधान की दिशा में सोचने की आवश्यकता होगी। इसके लिए जरूरी है कि शिक्षकों को स्वायत्तता प्रदान की जाए, उनकी सेवापूर्व और सेवाकालीन शिक्षा पर गंभीरता से ध्यान दिया जाए। स्कूलों में शिक्षकों की पर्याप्त संख्या और आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं। इनके अभाव में शिक्षा को दूरगामी नुकसान ही पहुंचेगा।
फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें- https://www.facebook.com/Jansatta
ट्विटर पेज पर फॉलो करने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/Jansatta