कवयित्री मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में आजीवन कारावास की सजा काट रहे उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी जल्द ही जेल से रिहा हो जाएंगे। रिपोर्ट के अनुसार उनकी सेहत और जेल में उनके अच्छे आचरण को देखते हुए उन्हें जल्दी रिहा किया जा रहा है। दोनों पिछले 20 साल से गोरखपुर जेल में बंद हैं। बांड भरने के बाद दोनों को रिहा किया जाएगा।
दरअसल, कवयित्री मधुमिता शुक्ला की हत्या के मामले में देहरादून के विशेष न्यायाधीश ने उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। सीबीआई ने अपनी जांच में अमरमणि और उनकी पत्नी मधुमणि को दोषी करार देते हुए अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया था। इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि कैसे बाहुबली नेता हरिशंकर तिवारी को गुरु मानने वाले अमरमणि त्रिपाठी के सितारे गर्दिश में चले गए।
दरअसल, गोरखपुर की सियासत पर पकड़ रखने वाले हरिशंकर तिवारी ने कई सालों तक राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई थी। यूपी की बात की जाए तो यहां माफियागिरी की शुरुआत हरिशंकर तिवारी के हाथों हुई मानी जाती है। माफियाओं के बीच उन्हें बाबा का तमगा हासिल था। कोई भी बाहुबली हो लेकिन हरिशंकर तिवारी से भिड़ने की कोई जुर्रत नहीं करता था। माफिया जगत में वो हर किसी के लिए सम्मानीय थे।
अमरमणि त्रिपाठी के करियर की शुरुआत
जानकारी के अनुसार, अमरमणि त्रिपाठी ने अपने करियर की शुरुआत भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से की थी। इसके बाद उन्होंने अपना दल बदल लिया औऱ कांग्रेस में शामिल हो गए। इसी दौरान उन्होंने बाहुबली नेता हरिशंकर तिवारी को अपना राजनीतिक गुरू बनाया। हरिशंकर तिवारी से उन्होंने सीखा कि राजनीति कैसे की जाती है। वे राजनीति गुर सीख भी गए औऱ करियर में आगे भी बढ़ गए। हालांकि अमरमणि त्रिपाठी के ऊपर राजनीति में एंट्री लेने से पहले ही हत्या, लूट और मारपीट जैसे कई आपराधिक मामले दर्ज थे। इसके बावजूद अमरमणि त्रिपाठी ने कुछ ही समय में पूरे क्षेत्र में अपना दबदबा कामय कर लिया।
1996 में पहली बार जीता चुनाव
कांग्रेस से टिकट मिलने के बाद 1996 में अमरमणि त्रिपाठी पहली बार महाराजगंज की नौतनवा विधानसभा सीट से चुनाव लड़े और जीत हांसिल की। इसके बाद वे लागातार 4 बार इस सीट से चुनाव जीतते रहे और विधायक बने रहे। इस दौरान उन्होंने कांग्रेस छोड़कर लोकतांत्रिक कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर ली थी। इसके बाद वे कल्याण सिंह की सरकार में मंत्री बन गए।
अमरमणि त्रिपाठी का बुरा दौर तब शुरू हुआ जब 2001 में इनका नाम बस्ती के एक बिजनेसमैन के बेटे के अपहरण मामले में सामने आया। इसके बाद ही बीजेपी ने उनसे किनारा कर लिया और कल्याण सिंह ने उन्हें मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया। इसके बाद उनके राजनीतिक करियर में भूचाल आ गया। हालांकि इसके बाद 2002 में अमरमणि त्रिपाठी बसपा के साथ आ गए और इन्हें नौतनवा सीट पर ही टिकट मिल गया। एक बार फिर वे नौतनवा से चुनाव जीत गए। इसके बाद वे 2003 में सपा के साथ आ गए औऱ मायावती की सरकार गिर गई। इसके बाद मुलायम सिंह की सरकार बनी और ये कैबिनेट मंत्री बन गए।
मधुमिता शुक्ला हत्याकांड जिसने अमरमणि त्रिपाठी का करियर खत्म कर दिया
9 मई 2003 को लखनऊ के पेपेर मिल कॉलोनी में 24 साल की कवियत्री मधुमिता शुक्ला की गोली मारकर हत्या कर दी गई। बदमाशों ने घर में घुसकर करीब से उन्हें गोली मारी थी। जिस वक्त मधुमिता शुक्ला को गोली मारी गई वे सात महीने की गर्भवती थीं। हालांकि यह बात किसी को पता नहीं थी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला था कि वे गर्भवती हैं। इसके बाद जब डीएनए रिपोर्ट सामने आई तो पता चला कि मधुमिता के पेट में पल रहे बच्चे के पिता अमरमणि त्रिपाठी हैं। उस वक्त अमरमणि त्रिपाठी मंत्री थी। इस कारण पुलिस संभल कर जांच कर रही थी। मधुमिता शुक्ला की बहन निधि शुक्ला ने बहन को न्याय दिलाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। आखिरकार सीबीआई ने 2003 के सितंबर महीने में अमरमणि त्रिपाठी को गिरफ्तार कर लिया था।
24 अक्टूबर 2007 को कोर्ट ने सुनाई उम्रकैद की सजा
इसके बावजूद 2007 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव में जेल में रहते हुए अमरमणि त्रिपाठी ने निर्दलीय उम्मीदवार रहते हुए महराजगंज के लक्ष्मीपुर सीट से जीत हांसिल की। हालांकि देहरादून की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने मधुमिता शुक्ला की हत्या के चार साल बाद 24 अक्टूबर 2007 को अमरमणि त्रिपाठी, उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी, भतीजा रोहित चतुर्वेदी और शूटर संतोष राय को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुना दी थी।
मधुमिता शुक्ला हत्याकांड के बाद उबर नहीं सके
इसके बाद अमरमणि त्रिपाठी का राजनीतिक करियर खत्म होने लगा। हालांकि बाद में अमरमणि त्रिपाठी ने अपनी राजनीतिक विरासत बेटे अमनमणि को सौंप दी। जेल में रहते हुए बेटे को विधायक बनाया। हालांकि पत्नी की हत्या के मामले में अमनमणि भी जेल में बंद हैं। अब लगभग दो दशक (20 साल) बाद अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी जेल से रिहा हो रहे हैं।