मनोज कुमार

आमतौर पर वाट्स-एप आदि पर लगातार आने वाले संदेश मुझे परेशान करते हैं। हर रोज बड़ी संख्या में आए इन संदेशों का न तो कोई अर्थ होता है और न सार। लगभग समय की बर्बादी वाले इन संदेशों को लेकर मन कई बार खिन्न हो जाता है। मजबूरी यह भी होती है कि इन संदेशों को देख लिया जाए, नहीं तो जाने कौन-सी जरूरी सूचना छूट जाए! बेमन से एक दिन वाट्स-एप पर आए संदेशों को देख रहा था कि अचानक एक संदेश पर नजर ठहर गई। किसी जगह के दो परिवारों ने शादी समारोह को नया अर्थ दिया था। दुल्हन और दूल्हा पक्ष के आने वाले मेहमानों से नवदंपति ने अपनी पसंद के उपहार मांगे। पढ़ने में आपको अलग लग रहा होगा, मुझे भी हैरानी हुई। दूल्हा-दुल्हन पेशे से डॉक्टर थे और इन्होंने मेहमानों से उपहार के रूप में सबसे रक्तदान की पेशकश रखी। शादी समारोह में शामिल हुए मेहमानों के हाथों में रखा सुंदर तोहफा उनके हाथों में ही रह गया और अनेक लोगों ने दूल्हा-दुल्हन की पेशकश मान कर अपना-अपना रक्तदान किया। वाट्स-एप सूचना के मुताबिक एक शादी समारोह में लगभग तीन सौ यूनिट रक्त एकत्र किया गया। निश्चित रूप से यह अनोखा प्रयास था और इस प्रयास को सफलता न मिले, यह संभव ही नहीं था।

इस संदेश को पढ़ने के बाद आज वाट्स-एप को शुक्रिया कहने का मन हो रहा है। न्यू मीडिया के इस माध्यम ने मुझे एक ऐसी घटना से परिचित कराया, जिसका समूचे समाज में प्रसार हो जाना चाहिए। हमारी संस्कृति में शादी-ब्याह को एक प्यारा बंधन कहा गया है और जिसकी शुरुआत ऐसी पहल से होगी तो उनका जीवन मंगलमय होगा ही। यह सच है कि ऐसे मांगलिक अवसरों पर अपनी-अपनी हैसियत से लोग उपहार लेकर पहुंचते हैं और शुभकामना देते हैं। लेकिन यह भी सच है कि भौतिक जरूरतों को पूरा करने वाले ये उपहार कुछ समय बाद अपनी उपयोगिता खो देते हैं। शायद पहली बार ही किसी डॉक्टर नवदंपति ने यह पहल की है कि उपहार के बदले रक्तदान के लिए समाज को प्रेरित किया जाए। लोगों को यह बात उचित लगी होगी, तभी इतनी बड़ी संख्या में रक्तदान करने वाले सामने आए। तीन सौ यूनिट रक्त से तीन सौ को नई जिंदगी मिल सकेगी, जो किसी भौतिक उपहार से कहीं ज्यादा कीमती है।

इन दिनों इस प्यारे बंधन में अनेक किस्म की नवाचार की सूचना मिल रही है। मध्यप्रदेश में जैन समाज ने बारात के आने का समय तय कर दिया है। आमतौर पर जश्न मेंं डूबे युवा और अनेक बार परिवार के बुुजुर्ग भी समय की पाबंदी भूल जाते हैं और इससे वधू पक्ष को अकारण अनेक किस्म की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। समय पर बारात लग जाने से मांगलिक कार्य समय पर पूरे होते हैं। इसलिए समय की पाबंदी का जैन समाज का फैसला अनुकरणीय है।

समय बदल चुका है तो समाज को भी बदलने की जरूरत है। इस बदलाव की एक पहल उस डॉक्टर दंपति ने की है तो यह युवावर्ग के लिए नजीर बने। जैन समाज के फैसले को भी इसी नजर से देख कर इसे सभी समुदायों पर लागू करने की जरूरत है। मेरा मानना है कि किसी भी नवदंपति ने यह प्रयास शुरू किया है तो इसे शृंखला के रूप में आगे बढ़ाया जाना चाहिए। इन्हीं कोशिशों से समाज के रूढ़िवादी सोच में न केवल बदलाव आएगा, बल्कि ऐसी शुरुआत होगी जो विवाहोत्सव की नई रीत बनेगी। प्यार के इस बंधन को जीवन और समय बचाने का उपक्रम बनाया जाए तो इससे बड़ी सार्थकता और कुछ नहीं है।

 

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