देश में कुल केंद्रीय विश्वविद्यालयों की संख्या तैंतालीस है, जहां शिक्षकों के कुल स्वीकृत बल करीब उन्नीस हजार के विरुद्ध लगभग पांच हजार पद आज भी खाली पड़े हैं। मानव संसाधन विभाग ने भी इसे स्वीकारते हुए शीघ्र रिक्त पदों को भरने का निर्देश पूर्व की भांति विश्वविद्यालयों को दिया है। देश में 2014 से कार्यरत नई सरकार है, जिसे विरासत में शिक्षकों की रिक्ति की समस्या भी प्राप्त हुई थी। समय-समय पर सरकार ने इस कमी को दूर करने के लिए आवश्यक निर्देश भी केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को निर्गत किया, जिसका अनुपालन आंशिक तौर पर हुआ है।

बुनियादी समस्या यह है कि हर माह सेवानिवृत्त होने वाले शिक्षकों के आधार पर वार्षिक रिक्ति के आंकड़े जब विश्वविद्यालयों के अभिलेख में दर्ज हैं, तो इस आधार पर नियुक्ति की प्रक्रिया अग्रिम रूप से क्यों नहीं अपनाई जाती। केंद्र सरकार की नाक के नीचे दिल्ली विश्वविद्यालय में ही करीब शिक्षकों के कई सौ पद खाली पड़े हैं। केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रवेश पाने के इच्छुक विद्यार्थियों की संख्या में निरंतर वृद्धि की सूचना देखने को मिलती है, क्योंकि ऐसे संस्थानों के अध्ययन और अध्यापन की एक अलग पहचान और प्रतिष्ठा मानी गई है। यहां प्रवेश पाने वाले शिक्षार्थी गर्व-गौरव के भाव से अपने को आच्छादित मानते हैं।

आज देश का युवा उच्च शिक्षा ग्रहण के लिए प्रबल रूप से आतुर है, क्योंकि विविध विषयों के साथ उच्चतर शिक्षा के विकल्प भी तेजी से बढ़ रहे हैं। शिक्षकों की कमी दूर करने का दायित्व केंद्रीय विश्वविद्यालयों द्वारा ही दूर किए जाने का जब प्रावधान है तो सालों साल से चल रही रिक्ति दरअसल चिंता का विषय है।

इस गंभीर कमी की वजह से प्रवेश पाए विद्यार्थियों को अपनी पूर्णरूपेण पढ़ाई से भी वंचित होना पड़ रहा है, जिसकी नैतिक और शैक्षणिक जिम्मेवारी विश्वविद्यालय प्रशासन की निर्धारित होनी चाहिए। रिक्तियों को भरना एक सतत प्रक्रिया है तो सवाल लाजिमी है कि इस कार्य में निष्क्रियता से देश विश्व गुरु के लक्ष्य को कैसे स्पर्श कर सकता है। केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की कमी का असर देश के सामान्य विश्वविद्यालयों में भी पड़ रहा है।

सिर्फ बिहार के तेरह विश्वविद्यालयों के अधीन विभिन्न महाविद्यालयों में करीब छह हजार से अधिक शिक्षकों के पद रिक्त हैं। यह बात अलग है कि तत्काल करीब साढ़े चार हजार रिक्त पदों पर भर्ती की कारवाई मंथर गति से चल रही है। शिक्षकों की यह रिक्ति देश में शिक्षा की गुणवत्ता बनाए रखने की राह में सबसे मुख्य बाधा दिख रही है।

देश में योग्य अभ्यर्थियों का अभाव नहीं है, जबकि लाखों युवा पीएचडी, नेटधारक बनकर भी बेरोजगारी के संताप से पीड़ित हैं। जरूरत है उन्हें शीघ्र नियुक्त करने की इच्छाशक्ति को जागृत कर ठोस कार्ययोजना बनाई जाए, ताकि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में पठन पाठन सुचारु रूप से चल सके।
अशोक कुमार, पटना, बिहार