स्वस्थ और सशक्त लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष बहुत जरूरी है। इसके अभाव में सत्तापक्ष तानाशाह होने लगता है। आज दुर्भाग्य से देश में विपक्ष बहुत कमजोर और बिखरा हुआ है। उसके मजबूत और एक होने की आशा भी बहुत कम है। लंबे ऐतिहासिक किसान आंदोलन ने अपनी जरूरी मांगों के साथ देश में बढ़ती महंगाई,बेरोजगारी, अराजकता और जुर्मों आदि के अति ज्वलंत मुद्दों को भी प्रभावशाली तरीके से उठा दिया है, जो पूरे विपक्ष को अच्छा बल दे रहा है।

प्रियंका और राहुल गांधी के ताजा संघर्ष से कांग्रेस में भी पुन: जान आ गई लगती है। इससे ऐसा लगता है कि भाजपा के सामने मैदान में खड़ी सभी पार्टियों को कुछ लाभ जरूर हो सकता है। मगर असल में तो सभी पार्टियां और नेता एक जैसे हैं। सभी अंतत: अपने ऐशो-आराम में ही डूब जाते हैं। सिर्फ सेवक बन राष्ट्र सेवा का झूठा वादा कर ये शासक बन जाते हैं और फिर जनता के दुख-दर्द को जल्द ही भूल जाते हैं। विपक्षी दलों के पास भी कोई ठोस, पारदर्शी जनवादी प्रोग्राम नहीं है। इसलिए इस पेचीदा हालात में भाजपा को कोई खास नुकसान होता नहीं जान पड़ता।
’वेद मामूरपुर, नरेला, दिल्ली</p>

बोझ कौन?

क्या देश पर सचमुच बोझ हैं अनपढ़? जनता को शिक्षित करना, जनता को ज्ञान देना शासन का कार्य है और इस कार्य में शासन दशकों से चूक रहा है। वैसे किसी अनपढ़ को बोझ मानना अनुचित है। करोड़ों लोग अनपढ़ हैं, पर वे नेता हैं, बुद्धिमान हैं, मतदाता हैं, व्यावहारिक हैं, समझदार हैं, सेवा प्रदाता हैं। अगर कोई अनपढ़ शासन से रोटी, कपड़ा, मकान के लिए दान नहीं मांगता, तो वह बोझ नहीं है।लाखों गांवों में पढ़ाई की उचित व्यवस्था न होने से करोड़ों छात्र अनपढ़ हैं और उनको बोझ मानना क्रूरता है। अगर अनपढ़ बोझ हैं, तो हर चुनाव के लिए न्यूनतम शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए।
’जीवन कुमार मित्तल, मोतीनगर, दिल्ली

वैमनस्य की राजनीति

भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, पर इसकी धर्मनिरपेक्षता को भंग करने के लिए नेता लोग निरंतर प्रयास कर रहे हैं। राजनेता कम मेहनत करके सत्ता की कुर्सी पर विराजमान होना चाहते हैं, इसलिए वे धार्मिक या जातयी उन्माद जनता में पैदा करते हैं, जिससे एक बड़े वोट बैंक को नफरत की बुनियाद पर अपनी ओर कर लिया जाता है। यह धार्मिक उन्माद पैदा करने की कोशिश आज के दौर की नहीं है। इसे अंग्रेजी शासन ने शुरू किया था। अफसोस कि आजादी के बाद भी स्वार्थी राजनेताओं की वजह से यह भारत में खूब चल रही है।धार्मिक उन्माद फैलाने वाले नेता देश की उन्नति के दुश्मन होते हैं। निर्वाचन आयोग को उन्हें पाबंद करना चाहिए। जनता भी ऐसे नेताओं की नीयत को समझे, जो अपने ही लोगों का डर दिखा कर देश में अशांति पैदा करते और विकास को बाधित करते हैं।
’सरूप सोनी, बाड़मेर, राजस्थान</p>