हाल ही में मोबाइल गेम खेलने के लिए मां की हत्या करने वाली घटना बताती है कि बच्चे वीडियो गेम की आदत की वजह से मानसिक स्तर पर किस कदर खोखले हो चुके हैं। वर्तमान में कई युवा ऐसे हैं, जो विचारों के स्तर पर पिछड़ चुके हैं। समाजसेवा, देशसेवा के लिए कुछ नहींं कर रहे हैं, सामाजिक मुद्दे उनके लिए किसी महत्त्व के नहींं, वे पूरी तरह उद्देश्यहीन हैं। कई लोग तो वीडियो गेम के पक्ष में इतने हास्यास्पद तर्क करते मिल जाएंगे, जैसे मानसिक स्वास्थ्य के विशेषज्ञ वहीं हैं।
गिरती संवेदना से भारतीय परिप्रेक्ष्य में काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहे हैं। ऐसे युवा, जो पूरी तरह वीडियो गेम के प्रति समर्पित हैं, उनसे पूछा जाना चाहिए कि उनके पास क्या अचीवमेंट है। उत्तर मिलेगा, कुछ नहींं। न किसी प्रतिस्पर्धा में, न किसी और प्रतियोगिता में। पूरी ऊर्जा सिर्फ गेम में खपाते हैं।
उद्देश्यहीन जीवन सदा हानिकारक सिद्ध होता है। जापानी ने एक शब्द है- इकिगाई, जिसका अर्थ है, लंबी उम्र जीने के लिए जीवन में कोई उद्देश्य होना। माता-पिता से लेकर सभी रिश्तेदारों को अपने बच्चों के प्रति इस विषय में चिंतन करना चाहिए। नैतिक पतन के दौर में, आने वाली पीढ़ी को मजबूत वैचारिक परिपक्वता से युक्त बनाना है, तो इस दिशा में मनन करने का समय आ गया है।
मोहित पाण पाटीदार, धामनोद, मप्र
सबक लें
संविधान की बात करने वाले एआइएमआइएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी पर दिल्ली पुलिस ने भड़काऊ भाषण के आरोप में प्राथमिकी दर्ज की है। उसके बाद ओवैसी के पक्ष में प्रदर्शन करने वाले तीस लोगों को भी पुलिस ने गिरफ्तार किए है। अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ में किसी एक ही धर्म और पार्टी पर निशाना साधते हुए जनसभा में आग बरसाती भाषा का इस्तेमाल करना भला कहां तक उचित है। वे पाकिस्तान में हो रहे अल्पसंख्यक समुदाय पर हमले को लेकर कभी कोई बयान क्यों नहीं देते हैं? ओवैसी को इस मुकदमे से सीख लेने की जरूरत है।
कांतिलाल मांडोत, सूरत
दोष किसका
भाजपा प्रवक्ता के एक बयान पर माहौल बिगड़ता ही जा रहा है। जिस तरह कर्नाटक में एक दृश्य देखने को मिला, जिसमें पुतले पर नूपुर शर्मा की तस्वीर लगाई गई है, आखिर लोग साबित क्या करना चाहते हैं? उन्होंने अपने बयान पर माफी भी मांगी, परंतु उसका असर कहीं देखने को नहीं मिल रहा। इसी मुद्दे को लेकर आज राजनीतिक पार्टियां और समुदाय के लोग भी आग में घी डालने का प्रयास कर रहे हैं। इन सबके बीच गलत किसी एक को नहीं ठहरा सकते हैं। आखिर हर जगह दंगे-फसाद करने वाले भी गलत हैं, तो बात यहीं उठ कर आती है कि भारत में जो अशांति का माहौल बना हुआ है, उसका दोष किसे दिया जाए?
सृष्टि मौर्य, फरीदाबाद, हरियाणा