संपादकीय जायज नाजायज (15 जुलाई) सुप्रीम कोर्ट द्वारा उत्तर प्रदेश तथा अन्य स्थानों पर बुलडोजर द्वारा अवैध निर्माण गिराए जाने पर रोक लगाने से इनकार करने के मामले का विश्लेषण करने वाला था! सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि भवन निर्माण स्थानीय निकायों के अधिकार क्षेत्र का मामला है, जिसमें वह हस्तक्षेप नहीं कर सकती! भवन निर्माण निर्धारित नियमों के अनुसार होते हैं! जब कभी अवैध निर्माण पर बुलडोजर चलाया जाए, उससे कुछ दिन पहले मकान मालिक को नोटिस दिया जाना चाहिए और कि मकान का केवल वही हिस्सा गिराया जाए, जोकि स्थानीय निकाय की अनुमति के बिना बनाया गया है। सारे भवन के ऊपर बुलडोजर चलाना गैरकानूनी माना जाएगा।

याचिकाकर्ता ने एक समुदाय विशेष के अवैध निर्माण को सरकार द्वारा गिराए जाने का आरोप लगाया जबकि दिल्ली तथा अन्य शहरों में अवैध फार्म हाउस अमीर आदमी द्वारा बनाए जाते हैं, उनका कुछ नहीं बिगड़ता। कहना न होगा कि सरकारी जमीनों पर कब्जा करना, वहां अवैध निर्माण करना, लोगों द्वारा अपने मकान के आगे अवैध छज्जे तथा थड़े बनाने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है, दुकानदार लोग अपनी दुकानों को आगे तक बढ़ा लेते हैं, जिससे सामान्य यातायात बाधित होता है। इतना ही नहीं कई बार पार्कों के लिए सुरक्षित रखी गई जगह पर भूमि माफिया सरकारी कर्मचारियों की सहायता से अवैध निर्माण करता है।

देश के विभिन्न राज्यों में जितने भी अवैध निर्माण हैं, वे अधिकारियों तथा उनके राजनीतिक आकाओं की अनुमति तथा स्वीकृति के बिना नहीं बने हुए! बहुत बार राजनीतिक पहुंच वाले लोग सरकारी संरक्षण में अवैध निर्माण कर लेते हैं और उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाता! यह एक संयोग ही समझना चाहिए कि उत्तर प्रदेश में कुछ स्थानों पर संप्रदायिक दंगों तथा जुलूसों पर मुसलिम क्षेत्रों से पत्थरबाजी होने के बाद बड़े-बड़े मुसलिम तथा साजिशकर्ता नेताओं के अवैध निर्माण को बुलडोजर से ध्वस्त कर दिया गया।

सरकार को चाहिए कि जब कभी कहीं कोई निर्माण होने लगे तुरंत उससे संबंधित स्वीकृत नक्शे की जांच करनी चाहिए। ऐसा देखा गया है कि चुनावों से कुछ समय पहले अवैध निर्माण की गई झुग्गी-झोपड़ियों को स्थानीय प्रशासन स्वीकृति दे देता है, यह बात भी गलत है। जो अवैध निर्माण है, अवैध ही रहेगा, उसे गिरा देना चाहिए अन्यथा हमारे पैदल चलने लायक जमीन भी नहीं बचेगी।
शाम लाल कौशल, रोहतक

सस्ती दवाएं

भारत जैसे देश में जेनरिक दवाइयां उपलब्ध होनी चाहिए। सरकार स्वास्थ्य संबंधी योजनाओं में लोगों को काफी सुविधाएं पहुंचा रही है। किसी असाध्य बीमारी में सरकार की कल्याणकारी योजना के तहत मरीज को एक रुपया खर्च नही करना पड़ता है। पहले बीमारी में लोगों को धनराशि के अभाव में मरना ही पड़ता था। अब भारत में फार्मा सेक्टर की सूरत बदलने लगी है।

भारत सस्ता दवाखाना बनने जा रहा है। जेनरिक दवाओं का हब बनेगा। विश्व को बीस प्रतिशत जेनरिक दवाएं भारत सप्लाई करता है। मगर इसके उलट आज भारत के लोगों को ब्रांडेड दवाइया थमा कर लूट-खसोट की जा रही है। भारत में इतनी क्षमता नहीं है कि दस रुपए की दवा तीन सौ रुपए में खरीद सके। मेक इन इंडिया योजना का लाभ अब मिलने लगा है। देश में दवाएं खूब बन रही हैं।

इस उत्पादन को विदेशों में निर्यात कर मोटी रकम कमा रहा है। पहले चीन से कच्चा माल मंगाया जाता था, लेकिन अब भारत चीन पर निर्भर नहीं है। सरकार की इस पहल से रोजगार बढ़ेगा। जनता को बड़ा फायदा होगा। साथ ही आय भी बढ़ेगी। देश में ब्रांडेड कंनियों की पेटेंट खत्म होने और जेनरिक का उत्पादन बढ़ने से लोग दवाइयां सस्ते दाम में खरीद सकते हैं। इस उद्योग में बड़ी कंपनिया विकल्प खोज रही हैं, जबकि पश्चिमी देशों के साथ चीन के संबंध खराब हैं।
कांतिलाल मांडोत, सूरत