इतिहास पर नजर डालें तो साल 1938 में हिटलर के जर्मनी में भी योजनाबद्ध ढंग से यहूदियों को देश छोड़ने पर मजबूर किया जा रहा था।
हुकूमत के खिलाफ बोलने वालों की खैर नहीं थी। वहीं आज 2021 में भी भारतीय अन्नदाताओं पर जबरन कृषि बिल थोपा जा रहा है।
यह कितना हास्यास्पद है कि किसानों की आय दोगुनी करने के बाद सरकार कितनी चतुराई से किसानों को जबरदस्ती अमीर बनाने की जिद पर तुली है और किसान कह रहे हैं कि हम जैसे हैं वैसे ही सही हैं। जाहिर है नए कृषि कानूनों में कुछ तो ऐसा है जिससे किसान डरे हुए हैं और उसे समझ चुके हैं।
किसान आंदोलन को चलते ढाई महीने हो चुके हैं। किसान के दृढ़संकल्प ने आंदोलन में नई जान डालते हुए सरकार की बेचैनी बढ़ा दी है। बड़ी-बड़ी महापंचायतें किसानों की ताकत को बताने के लिए काफी हैं। ऐसे में सरकार को अब जुल्म करने वाली सरकार नहीं बनना चाहिए। सरकार के अदूरदर्शिता वाले रवैए ने देश के विपक्षी नेताओं, किसानों, बुद्धिजीवियों और आम नागरिकों में चिंता बढ़ा दी है।
जिस तरह से राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर सड़कों को खोद दिया गया है, भीमकाय पत्थर और कंक्रीट के अवरोधक और बड़े-बड़े कीले ठोक दिए गए हैं, उससे सरकार की तानाशाही वाली मंशा के साथ भय भी जाहिर होता है। ऐसा लग रहा है जैसे किसानों को नहीं, दुश्मनों को रोकने की व्यवस्था हो। इसलिए हर कोई यही सवाल पूछ रहा है कि क्या किसान देश के दुश्मन हो गए हैं।
आखिर लोकतंत्र में कब मनाही थी कि आप सड़क पर आकर आंदोलन नहीं कर सकते। अगर मनाही होती तो गांधीजी के सत्याग्रह न हो पाते और न ही देश को आजादी मिल पाती। अगर लोकतंत्र में ही लोग घरों से नहीं निकलेंगे तो मौज किसकी होगी, जनता की या सरकार की? जिस पूरी आजादी की कसम रावी के तट पर आजादी की लड़ाई के हमारे सेनानियों ने ली थी, उस आजादी का मतलब हर नागरिक को जीने और आगे बढ़ने का समान अवसर देना है। जनतांत्रिक मूल्यों में विश्वास रखने वाले हर नागरिक का यह कर्तव्य बनता है कि वह जागरूक रहे। सिर्फ अपने जनतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए नहीं, दूसरों के अधिकारों की रक्षा के लिए भी।
’अभिनंदन भाई पटेल, लखनऊ</p>
आंदोलनजीवी!
प्रधानमंत्री ने हिंदी शब्दकोश में जिस नए शब्द ‘आंदोलनजीवी’ को जोड़ा है, उसकी प्रवृति से तो हर कोई वाकिफ है। लेकिन ऐसे जीवों के लिए उनकी पहचान का प्रतीक रूप में कोई शब्द नहीं था। अब वह कमी भी दूर हो गई है। प्रधानमंत्री को नए शब्द गढ़ने में महारत हासिल है। ऐसे शब्दों का प्रयोग वे समय-समय पर युवाओं को प्रेरित करने, उनमें उत्साह का संचार करने में और विरोधियों को अपने व्यंग्यबाणों से घायल करने में करते रहते हैं। आंदोलनजीवियों को भारत का युवा काफी अर्से से देख रहा है।
वास्तव में ये ऐसे लोग होते हैं जिन्हें किसी सिद्धांत, विचारधारा और उसके आंदोलन से कोई सरोकार नहीं होता। इन्हें सरोकार सिर्फ हंगामा करने, अराजकता पैदा करने और इस जरिये ब्लैकमेल कर पैसा-पद कमाने से होता है। यही कारण है आज ऐसे बहुत से आन्दोलनजीवी करोड़ों की संपत्ति के मालिक बन चुके हैं।
’युवराज पल्लव, मेरठ</p>