सवा सौ करोड़ की आबादी वाले देश में मोदी सरकार के आठ साल के शासन काल में सिर्फ दस लाख नौकरियां और अग्निवीर योजना ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। इस पर भी जनता को कोई विश्वास इसलिए नहीं है, क्योंकि पहले ही पंद्रह लाख की बात और वादे को वे नहीं भूले हैं। सरकार बिना सही ढंग से सोचे-समझे कुछ भी कर लेती है। बाद में जनता के आक्रोश के सामने उसमें कुछ सुधार भी करने होते हैं या फिर पूरे फैसले और कानून वापस लेने होते हैं। इससे निरंतर सरकार पर जनता का भरोसा कम होता है और उसकी किरकिरी भी होती है।
सच्चे जनसेवकों की बड़ी डींग हांकने वाले नेताओं और नौकरशाहों की आज यह हालत है कि जो खुद तो कई-कई पेंशन लेते हैं और अपने वेतन-भत्ते कई गुना मिनटों में बढ़ाने से कभी नहीं चूकते और बेचारी योग्य युवा पीढ़ी और जनता को इस कदर निचोड़ने पर ही तुले हैं, जो अत्यंत दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है। यह सब ठोस पूंजीवादी व्यवस्था में निजीकरण की ओर तेजी से बढ़ने कारण है। इसलिए सरकार को इसे जल्द बदलना होगा, वरना हालात और अधिक खराब होंगे।
वेद मामूरपुर, नरेला
सख्ती जरूरी
देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, वहीं केंद्र सरकार द्वारा शुरू की जा रही हर योजना को लेकर धरना-प्रदर्शन और हिंसा आम हो गया है। प्रधानमंत्री उदारवादी दृष्टिकोण अपना कर सबका साथ, सबका विकास के फार्मूले पर चल रहे हैं। मगर उनको चुनौती दिल्ली में हिंसा, शाहीन बाग, किसान आंदोलन, कानपुर में पत्थरबाजी और अब अग्निपथ योजना के विरोध में सरकारी संपत्तियों की तोड़फोड़, रेलों में आगजनी, स्टेशनों पर तोड़फोड़, सड़कों पर जाम, धरना-प्रदर्शन कर दी जा रही है।
अराजकता जिस तरह से बात-बात पर फैलाई जा रही है, कानून को अपने हाथ मे लेने का खेल लोग खेल रहे हैं, लोकतंत्र के लिए अशुभ संकेत है। इससे देश की छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खराब हो रही है। इससे यही संदेश जा रहा है कि लचर प्रशासन के कारण देश में अराजक, अलगाववादी तत्त्व सड़कों पर उतर कर गुंडागर्दी और हिंसात्मक प्रदर्शन करते हैं। सरकार मूकदर्शक बन कर बैठी रहती है। बाद में जांचें होती हैं।
इसलिए देश के सत्ताधीशों को एकता और अखंडता को बनाए रख कर विकास के लिए सख्त, सक्रिय और जवाबदेह शासन की बानगी पेश करनी होगी। कानून को हाथ में लेने वालों के साथ ऐसी प्रभावी कार्यवाही हो, जिससे कोई अराजकता फैलाने सड़क पर फिर न उतरे। शासन और कानून का भय लोगों में होना चाहिए।
कुलदीप मोहन त्रिवेदी, उन्नाव
भ्रमित न हों
अग्निपथ योजना के विरोध में देश में अनेक राज्यों में हिंसक प्रदर्शन जारी है। सरकार की नीतियों का विरोध तो लोकतांत्रिक अधिकार है, लेकिन अगर यह विरोध देश के खिलाफ हो जाए, तो इसे उचित नहीं कहेंगे। देश की बहुमूल्य संपत्ति जो नागरिकों के लिए ही है, उसको तोड़ना-फोड़ना और आग के हवाले करना कहां की समझदारी है? देश में आए दिन हो रहे हिंसक आंदोलन मांगें मनवाने से ज्यादा, सरकार के खिलाफ भड़काई गई कार्रवाई अधिक लगती है।
कभी सीएए-एनआरसी, कभी कृषि कानून और अब अग्निपथ, पिछले तीन सालों से ये आंदोलन देश के विकास की रफ्तार को अवरुद्ध किए हुए हैं। आंदोलनकारियों को किसी के बहकावे में न आकर सही और गलत में फर्क करना चाहिए। यही देशहित में है।
सतप्रकाश सनोठिया, दिल्ली
काले का विस्तार
सरकार ने कालाधन वापस लाने का वादा किया था। तब स्विस बैंक में जमा धन को लेकर भारतीय उद्योगपतियों, कारपोरेट घरानों और फिल्म उद्योग के लोगों को डर सताने लगा कि सरकार की मुहिम रंग लाई तो हम कही के नही रहेंगे। नेताओं के नाम की लंबी सूची आई थी। मगर समय के तेज प्रवाह में सब कुछ अतीत में बदल गया। स्विस बैंक में भारत के सिवाय अन्य दस देशों से आई पूंजी जमा है। उसमें भारत भी शामिल है।
वहां भारी रकम जमा है। मगर स्विस बैंक और स्विजरलैंड के कानून के मुताबिक यह रकम कालेधन में नहीं आती है। जब कालेधन की श्रेणी में नहीं आती है तो बैंक खाता धारकों की सूची क्यों देगा? अब जमाकर्ताओं ने सोचा कि स्विस बैंक भारत सरकार को नामों की सूची नहीं दे रहा है, तो वे फिर से पैजा जमा करने लगे। इस समय भारत की जमा रकम चौदह वर्ष के पिछले रिकार्ड से शीर्ष पर है। व्यक्तिगत श्रेणी में हर वर्ष भारत से 927 करोड़ रुपए की पूंजी स्विस बैंक में जमा होती है। 2020 में भारत का जमा बीस हजार सात सौ करोड़ रुपया था, जो 2021 में तीस हजार पांच सौ करोड़ पहुंच गया है।
ब्रिटेन, अमेरिका और सिंगापुर आदि से भी कालाधन स्विस बैंकों में जमा होता है। स्विस नेशनल बैंक के अंतर्गत 239 बैंकों में कुल सवा दो सौ खरब रुपए जमा हैं, जिसमें संस्थागत कोष भी शामिल है। दुनिया में भारत का क्रम चौवालीसवां है। आस्ट्रेलिया, जापान, यूएई, ईटली, स्पेन, पनामा, सऊदी और इजरायल जैसे देशों के लोग स्विस बैंक में पैसा जमा करने में भारतीयों से आगे हैं। अमेरिका और ब्रिटेन की जमा पूंजी सौ अरब से ज्यादा है।
कांतिलाल मांडोत, सूरत
अनावश्यक विरोध
अग्निपथ योजना के विरोध में देश के विभिन्न भागों में चल रहे हिंसक प्रदर्शन निंदनीय हैं। यह अनावश्यक आंदोलन और विरोध तत्काल बंद होना चाहिए। प्रधानमंत्री को इस मौके पर देश के समक्ष उपस्थित होकर आंदोलनकारियों से फौरन विरोध प्रदर्शन समाप्त करने की अपील करनी चाहिए। वैसे भी, किसी देश में अगर इस प्रकार की अप्रिय स्थिति निर्मित होती है, तो वहां के राष्ट्रीय नेतृत्व का यह दायित्व होता है कि वह स्वयं उपस्थित होकर लोगों से शांति बनाए रखने और विवादस्पद बिंदुओं या समस्याओं के समाधान हेतु आश्वासन दे।
साथ ही यदि सरकार वास्तव में पेंशन योजना में कटौती लाना चाहती है, तो बेहतर यह होगा की सबसे पहले सांसद, विधायक आदि स्वयं पेंशन छोड़ने की घोषणा करें। अग्निपथ के विरोध में हो रहे हिंसक प्रदर्शन देख कर, स्वाभाविक रूप से यह चिंता भी सताती है कि क्या ये हिंसक युवा हमारी सेनाओं में शामिल होने के योग्य हैं?
इशरत अली कादरी, भोपाल