आजादी के बाद से ही पाकिस्तान की नीति-रीति ने वहां की जनता की समृद्धि के बजाय भारत से दुश्मनी साधने में अपने संसाधन का अपव्यय किया है। आर्थिक दिवालिएपन का शिकार हो आज पाकिस्तान अपने नागरिकों की औसत दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति में भी विफल हो जर्जर हालत में तबाही के कगार पर है। कई देशों सहित अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से लिए कर्ज में डूबकर उसकी वापसी में अक्षमता की वजह से उसे अब सहायता के सभी दरवाजे बंद देखने को विवश होना पड़ रहा है।

भारत से तीन युद्ध के परिणाम से तंगो-तबाह पाकिस्तान के प्रधानमंत्री सबक सीखने की बात कही और वार्ता की पेशकश की अपील की। लेकिन इस पहल के साथ कश्मीर राग भी अलापने की विवशता पाकिस्तान को कई दृष्टिकोण से उसे कठघरे में खड़ा करती है। आर्थिक मोर्चे पर भीषण विभीषिका से त्रस्त हालात ने उसे एक ओर भारत से हाथ मिलाने को लाचार किया है, लेकिन उस देश की सत्ता की चाबी और असली कमान सेना, आइएसआइ और कट्टरपंथियों के हाथों में रहने के कारण भारत से बातचीत के पहल के तुरंत बाद उसने कश्मीर से विसर्जित अनुच्छेद 370 की वापसी की शर्त की घोषणा कर अपनी कथनी और करनी में भारी विभाजक रेखा खींच दी।

पाकिस्तान के पूर्ववर्ती शासकों ने तीन युद्ध में पाक की हुई क्षति और अंतरराष्ट्रीय जगत में हुई उसकी फजीहत से कभी भी सबक नहीं लिया और न भारत से अपने बर्ताव में कोई सकारात्मक पहल ही की। सदैव आतंक के पोषण से उसने कभी भी परहेज नहीं किया। लक्षित हमले से भी पाक ने अपने नापाक इरादों से मुक्त होने की कोशिश नहीं की। उचित तो यही होता कि शहबाज शरीफ विगत तीन लड़ाई से हुए नफे-नुकसान की मीमांसा कर आतंकियों को प्रश्रय देना बंद करते और कश्मीर के मुद्दे को भूलकर दोस्ती का हाथ बढ़ाते।

पाकिस्तान क्षेत्र से भारत में नियमित रूप से आ रहे आतंकी जब अपनी गतिविधियों में सक्रियता बनाए हुए हैं। बुनियादी सवाल यह है कि आखिर ऐसे अविश्वासी देश पर कैसे और क्यों भरोसा किया जाए। आखिर पाक अपने इस दोहरे आचरण से अपनी ही मुसीबत बढ़ा रहा है। अराजकता और गृह युद्ध की ओर बढ़ता पाकिस्तान आज हर मोर्चे पर अपनी अयोग्यता और नेतृत्वहीनता की कलुषित दास्तान लिख रहा है। पाक अधिकृत कश्मीर के लोगों द्वारा भारत में अपने अस्तित्व के विलय को लेकर चलाए जा रहे आंदोलन से स्थिति साफ है कि मानवाधिकारों के उल्लंघन में पाक की मानसिकता किस हद तक घृणित हो गई है।

भारत हमेशा अमन-चैन का व्यावहारिक पक्षधर रहा है। पाक का बर्ताव और आचरण हमेशा दोमुंहा रहा है। ऐसे में उसपर विश्वास करना अनेक संशय को पुनर्जीवित कर रहा है। चूंकि पाकिस्तान सदा आतंकवाद का अखंड अनुयायी रहा है, इसलिए उसे पहले अपनी करतूतों पर दिल और दिमाग से अफसोस करते हुए कश्मीर की कथा को हमेशा के लिए भूलने और आतंक की खुराक को बंद करने की घोषणा करनी चाहिए। तभी बातचीत का माहौल स्थापित किया जा सकता है। बहरहाल, अपने देश के वैदेशिक मामलों के रणनीतिकारों को अत्यंत सावधानी और गंभीरता से शरीफ साहब की मन:स्थिति को समझने की जरूरत है, क्योंकि दूध का जला छाछ भी फूंक कर पीने की बात पूर्वजों ने सिद्ध की है।
अशोक कुमार, पटना, बिहार।

काम के बजाय

देश की राजधानी में अधिकारों की जंग का ऐसा नजारा देखने को मिलेगा, ऐसी कल्पना किसी भी दिल्लीवासी ने नहीं की थी। राजधानी में ऐसा कोई दिन नहीं जाता, जब आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के जनप्रतिनिधि और कार्यकर्ता सड़कों पर न हों और आमने-सामने की लड़ाई न लड़ रहे हों। कभी दिल्ली में शानदार नारे हुआ करते थे- ‘हम दिल्ली के’, ‘मेरी दिल्ली मेरी शान’, ‘मेरी दिल्ली मैं ही संवारूं’, ‘ग्रीन दिल्ली’ आदि।

2010 में राष्ट्रमंडल खेलों का सफल आयोजन दिल्ली के राज्यपाल और मुख्यमंत्री के समन्वय का बेहतर उदाहरण है। लेकिन अब अविश्वास का माहौल बन चुका है। इसका अंजाम दिल्ली वालों को ही भुगतना पड़ेगा। तीन दिन तक चले दिल्ली विधानसभा सत्र में विपक्षियों के द्वारा दिल्ली के उपमुख्यमंत्री को जोकर कहा गया, जबकि दिल्ली के राज्यपाल के प्रति अनादर का भाव दिखाते हुए अनावश्यक टिप्पणियां सदन के अंदर की गर्इं। आम आदमी पार्टी की तरफ से दिल्ली के मुख्यमंत्री ने मोर्चा संभाल रखा है और ऐसा कोई दिन नहीं जाता जब वे दिल्ली के राज्यपाल के प्रति नाराजगी जाहिर न करते हों।

दिल्ली की लगभग डेढ़ करोड़ की आबादी इस बात से हैरान और परेशान है कि उनके मुद्दों पर सरकार कब ध्यान देगी। संभवत: ऐसी खींचतान देश के किसी भी राज्य में देखने को नहीं मिली है, जहां राजनीतिक बहस का स्तर अनावश्यक बयानबाजी पर आ जाए। तब स्वाभाविक ही है कि सरकार का कामकाज बुरी तरह प्रभावित होगा।

हम सभी देख चुके हैं कि किस प्रकार दिल्ली के नगर निगम के महापौर के चुनाव के समय भारी हंगामा हुआ था महिलाओं के साथ धक्का-मुक्की और बदतमीजी की गई थी और कई नगर निगम पार्षदों को चोट भी आई थी। सभी दिल्लीवासी अपेक्षा करते हैं कि अब सभी प्रश्नों का हल निकलेगा और सरकार उनकी समस्याओं पर ध्यान देगी।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली।

भाईचारे के लिए

पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने हाल ही में एक साक्षात्कार में भारत को वार्ता की पेशकश की है। अगर पाकिस्तान अपने कश्मीर पर रुख और ऊहापोह से बाहर आता है तो इस प्रस्ताव को आगे बढ़ाना चाहिए। पाकिस्तान के लिए यह एक सुनहरा अवसर है। सच यह है कि सीमा पर सैनिकों की जान जा रही है और युद्धों से कुछ हासिल नहीं होता।

बरसों की मेहनत से बने ढांचे नष्ट हो जाते हैं, कृषि नष्ट हो जाती है, मानव जीवन को नुकसान पहुंचता है। नफरत और दुश्मनी को खत्म कर दोनों देशों को आपस में भाईचारा कायम करना चाहिए और हथियारों की खरीद पर खर्च होने वाले पैसे को अपने-अपने देशों के लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में लगाना चाहिए।
साजिद महमूद शेख, मीरा रोड, मुंबई।