कश्मीर में ‘लक्षित हिंसा’ का दौर थम नहीं रहा। हाल ही में शोपियां में सेब के बाग में काम कर रहे दो भाइयों पर जिहादियों ने गोलीबारी कर एक भाई को मौत के घाट उतार दिया। हमला करने वाले जिहादी की पहचान हो चुकी है। वह अल-बद्र नाम के आतंकी संगठन का सदस्य है। हमले के बाद अल-बद्र ने बयान जारी कर कहा है: ‘तिरंगा रैली के लिए दोनों भाइयों ने लोगों को प्रोत्साहित किया था, जिस वजह से उन पर हमला किया गया।’
इस हमले से घाटी में रह रहे कश्मीरी पंडितों में आक्रोश, दहशत, दर्द, गुस्सा और नाराजगी बढ़ती जा रही है। जो कश्मीरी पंडित आतंकवाद के दौर में कभी घाटी छोड़ कर कहीं नहीं गए, वे अब लगातार जिहादियों के निशाने पर हैं। प्रशासन के खिलाफ लोगों का गमो-गुस्सा मारे गए व्यक्ति की अंतिम यात्रा में दिखा। बड़ी संख्या में लोगों ने आतंकवाद के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की।
ऐसा नहीं कि पंडितों की ‘लक्षित हिंसा’ की भर्त्सना स्थानीय मुसलिम समाज न कर रहा हो। ये लोग भी आए दिन होने वाली इन हत्याओं से परेशान/ बेजार हैं। ‘कत्ल-ए-नाहक… नामंजूर’ और ‘खूनखराबी… नामंजूर’ जैसे नारे लगाते हुए मुसलिम समाज ने भी ऐसी आतंकी वारदातों का विरोध किया है। जहां घाटी में कत्लेआम के खिलाफ आवाज बुलंद हो रही है, वहीं कुछ राजनीतिक पार्टियां इस पर सियासत करने से बाज नहीं आ रहीं।
ये पार्टियां जम्मू-कश्मीर में हालात को ‘बनावटी सामान्य स्थिति’ बताते हुए सरकार को निशाने पर ले रही हैं। सहयोग कम और आलोचना ज्यादा कर रही हैं। कहना न होगा कि इनके इस नकारात्मक रवैये से ही पहले भी और अब भी जिहादियों के हौंसले बढ़ते जा रहे हैं।
इधर, श्रीनगर स्थित कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष ने सभी पंडितों से घाटी छोड़ने का आ’’ान किया है। उन्होंने कहा है कि कश्मीर घाटी में कोई भी कश्मीरी पंडित सुरक्षित नहीं है। उनके सामने केवल एक विकल्प बचा है कि वे कश्मीर छोड़ दें या धार्मिक कट्टरपंथियों द्वारा मारे जाएं।
समय आ गया है जब ‘लक्षित हत्या’ में मारे गए पीड़ित परिवारों को इंसाफ दिलाने और आतंकियों द्वारा अंजाम दिए गए कायराना हमलों पर लगाम लगाने के लिए सरकार फौरी तौर पर कोई सख्त कारवाई करे और जिहादियों को शह देने वाली सियासी पार्टियों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाए, अन्यथा घाटी में एक बार फिर 1990 का दौर लौटने में ज्यादा देर नहीं लगेगी।
शिबन कृष्ण रैणा, अलवर
अनुचित फैसला
गोधरा हत्याकांड 2002 के बाद गुजरात में दंगे भड़के, जिसमें सैकड़ों लोगों की मौत हो गई और कई लोगों को अपमान की त्रासदी झेलनी पड़ी। बिलकिस बानो भी उन्हीं में से एक है, जिसका बलात्कार और उनके परिवार वालों की हत्या की गई। इस कुकृत्य पर सभ्य समाज शर्मिंदगी महसूस करता है। गुजरात सरकार द्वारा बलात्कार के दोषियों को सजा माफी देना निंदनीय है। इससे समाज में अव्यवस्था और अशांति का स्वर बनता और लोगों का न्यायतंत्र में विश्वास कम होने लगता है। जिस व्यक्ति ने हत्या और दुष्कर्म जैसे कृत्यों को अंजाम दिया हो वह समाज में रहने का अधिकारी नहीं। उसका फूल-माला से स्वागत अत्यंत अशोभनीय और अमर्यादित है। सरकार को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए।
धनंजय सिंह, लखनऊ</p>