लेकिन क्या पता जून में भी पार्टी को अध्यक्ष मिल पाएगा या नहीं, क्योंकि जिस प्रकार से नेतृत्व कांग्रेस कर रही है, वह किसी राजनीतिक दल के लिए कम गंभीर मुद्दा नहीं है।

कांग्रेस कमजोर पड़ती रही है। लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद राहुल गांधी ने यह कहते हुए अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था कि अब गांधी परिवार से बाहर से ही कोई अध्यक्ष पद के लिए चयनित होगा। लेकिन आखिर में फिर से सोनिया गांधी को बना दिया गया।

यह सत्य भी है कि राहुल गांधी अध्यक्ष पद पर न रहते हुए भी पार्टी के अहम फैसले करते रहे हैं। जब राहुल गांधी के निशाने पर सीधे प्रधानमंत्री मोदी होते हैं तब कांग्रेस अपने ही नेता अपने ही से लड़ रहे होते हैं। चाहे मध्यप्रदेश में कमलनाथ और सिंधिया हों या फिर राजस्थान में गहलोत और पायलट हों। पिछले कुछ सालों में देख गया है कि पार्टी अपने किसी एक रुख पर कायम नहीं रहती।

पिछले कुछ समय में कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी नेतृत्व पर सवाल उठाए हैं। हकीकत यह है कि कांग्रेस गांधी परिवार पार्टी के ही कुछ चाटुकारों से घिर गई है। ये अपने स्वार्थ के लिए गांधी परिवार का इस्तेमाल कर रहे हैं और पार्टी के सदस्य खुद फैसला लेने के बजाय कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर छोड़ देते हैं।

तब यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या सोनिया गांधी अपनी पार्टी के अंदरूनी मामले को सुलझा पाएंगी? यह कहना भी मुश्किल है कि कब कांग्रेस नेतृत्व अपने को मजबूत कर पाएगा और अध्यक्ष पद का चुनाव कब तक करेगी?
’अरुणेश कुमार, मोतिहारी

पेड़ों की चिंता

पश्चिम बंगाल में रेलवे ओवरब्रिज योजना के तहत पेड़ों की बाधा के संदर्भ में गठित कमेटी की सिफारिशों के द्वारा यह संदेश देने का प्रयास करना कि “लकड़ी नहीं है पेड़” महत्त्वपूर्ण और सराहनीय प्रयास है। कमेची ने पर्यावरण को सुरक्षित एवं संरक्षित करने के लिए मजबूरी में पेड़ काटने के कारण एक पेड़ के बदले पांच पेड़ लगाने की व्यवस्था को नाकाफी मानते हुए एक छोटे पेड़ के बदले दस पेड़, मध्यम किस्म के पेड़ के लिए पच्चीस पेड़ और बड़े पेड़ों के लिए पचास पेड़ लगाने की व्यवस्था दी है।

इसके अतिरिक्त लगाए गए पेड़ों का पांच सालों में सोशल आडिट अनिवार्य कर पर्यावरण की सुरक्षा भी सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है। यह संदेश यह प्रमाणित करने के लिए काफी है कि पेड़ महज एक लकड़ी नहीं है, बल्कि स्वयं में एक जिंदा जीव है। धरती का यह पेड़ असंख्य जीवों के आश्रय के रूप में पूरी दुनिया में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

इसलिए यह जरूरी है कि किसी भी परियोजना में पेड़ों के सामने आने पर परियोजना के स्थान एवं स्वरूप में परिवर्तन किया जाए। अगर यह संभव नहीं हो तो रास्ते में पड़ने वाले पेड़ की जगह का परिवर्तन किया जाए। नहीं तो एक छोटे पेड़ के बदले दस पेड़ों, मध्यम किस्म के पेड़ के लिए पच्चीस पेड़ों और बड़े पेड़ के लिए पचास पेड़ों को लगाने का निर्णय पर्यावरण की सुरक्षा के लिए एक क्रांतिकारी संदेश से कम नहीं है।
’डॉ० अशोक, पटना</p>