चीन के बाद यह संख्या हमें दुनिया में दूसरे नंबर की पायदान पर रखती है। चाहे वह सिगरेट पीने की बात हो या तंबाकू के सेवन की, सरकार की ओर से धूम्रपान के नुकसान बताते हुए लोगों से इसे छोड़ने की अपीलें विभिन्न माध्यमों से बार-बार की जाती हैं।

इन उत्पादों की पैकिंग पर भी वैधानिक चेतावनी के तौर पर इनके सेवन से स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होने का संदेश छपा होता है। वहीं फिल्मी दुनिया के नामचीन कलाकार इनके विज्ञापन सोशल मीडिया पर बड़ी शान से करते नजर आते हैं। ये ऐसे फिल्मी कलाकार हैं, जो अपने फिल्मी करिअर को बरकरार रखने के लिए निश्चित तौर पर अपनी सेहत का विशेष खयाल रखते होंगे। जिन उत्पादों का वे विज्ञापन करते नजर आते हैं, शायद ही उन चीजों का उपयोग कभी अपनी जिंदगी में करते होंगे।

पैसों की खातिर सिर्फ विज्ञापन करना और नामी कलाकारों द्वारा लोगों को उनके सेवन के लिए प्रेरित करना..! क्या उन्हें नहीं लगता है कि वे सही कार्य नहीं कर रहे हैं? लाखों-करोडों लोग उन्हें अपना आदर्श मानते हैं और उनके नक्शे-कदमों पर ही चलने की कोशिश करते हैं। क्या उन्हें पान-मसाला और सिगरेट के इस्तेमाल के नुकसान पता नहीं होते हैं?

उन्हें पैसों की कितनी कमी है कि कैंसर जैसी घातक और जानलेवा रोग देने वाले उत्पादों का प्रचार करके वे और ज्यादा धन से अपना घर भरना चाहते हैं? पैसों की यह भूख उन्हें कहां ले जाएगी? इस भूख के रहते उन्हें कैसा सितारा माना जाएगा? वे विज्ञापनों के जरिए ऐसे उत्पाद में कौतुहल बढ़ाने और उनके उपयोग करने के लिए उकसाने जैसे संगीन गुनाह ही तो कर रहे हैं, जिनके चलते कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से मरने वालों का आंकड़ा साल-दर-साल बढ़ता ही जा रहा है।
नरेश कानूनगो, देवास, मप्र।

असुविधा की रेल

आज भारतीय रेल सेवाएं नित नए कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं। खासतौर से मौजूदा सरकार के सत्ता में आने के बाद से रेलवे के विकास को बुलेट की रफ्तार मिली है। चाहे वह माल ढुलाई के लिए विशेष गलियारे का निर्माण हो या ट्रेनों की औसत गति को अस्सी से बढ़ाकर सौ करने या बाहरी माडल पर आधारित वंदेभारत ट्रेन सेवाओं के शुरुआत की बात हो, सरकार ने इन सबको प्राथमिकता से लिया। मगर इन सबके पीछे सरकार एक बहुत महत्त्वपूर्ण पहलू पर ध्यान नहीं दे रही है।

रेल मंत्रालय द्वारा कई सारी नई नीतियां और योजनाएं लागू की गई हैं। यात्रियों की सुविधा के लिए आधुनिकीकरण का सहारा लिया गया। यात्री अपनी किसी भी समस्या को ट्विटर पर सीधे पोस्ट करके आइआरसीटीसी और रेल मंत्रालय को ध्यान दिला सकता है और उस पर त्वरित कार्रवाई भी कर दी जाती है। मगर एक मूलभूत समस्या का निवारण आज तक नहीं हो पाया है।

वह है ट्रेनों की संख्या में इजाफा। किसी भी तय रूट पर यात्रियों की संख्या और ट्रेन की संख्या में अनुपात सही नहीं है। ट्रेनों की संख्या से लगभग चार गुना संख्या यात्रियों की है। खासतौर से बिहार-झारखंड और दिल्ली के बीच सफर करने वाली की संख्या सबसे ज्यादा है, मगर उस अनुसार रेलवे की सेवाएं नहीं हैं।

इस व्यवस्था में विद्यार्थियों के लिए एक खास कोटा लाने की आवश्यकता है, क्योंकि आज के समय में रेलवे सेवाओं का सबसे ज्यादा उपयोग विद्यार्थी ही करते हैं। उनके लिए खास ट्रेन चलानी चाहिए या पहले से चल रही ट्रेनों में अलग से कोच जोड़ने चाहिए, क्योंकि भारत के भविष्य की रीढ़ की हड्डी माने जाने वाला युवा वर्ग रेलवे की सेवाओं से परेशान है।
अंकित श्वेताभ, दिल्ली।

गरीबी का दुश्चक्र

निर्धनता, स्वतंत्रता के बाद से भारत सरकार के लिए मुख्य चुनौती रही है। इसके पीछे का मूल कारण ब्रिटिश उपनिवेशवादी सरकार द्वारा अपनाई गई औद्योगिक नीतियां थीं, जिनके कारण भारत के परंपरागत उद्योगों का विनाश हो गया था। आजाद भारत की सरकार ने इस हानि की भरपाई के लिए निरंतर प्रयास किए हैं, जिनमे पंचवर्षीय योजनाओं का मुख्य स्थान है, लेकिन निर्धनता आज भी भारत की जनसंख्या के बड़े हिस्से को दुष्प्रभावित कर रही है, जिसका मुख्य कारण रोजगार सृजन की अल्पता है।

पिछली सदी के नब्बे के दशक में उदारीकरण और वैश्वीकरण ने आर्थिक समृद्धि के द्वार खोले और अर्थव्यवस्था में गति देखने को मिली। लेकिन इस दौरान जिन उद्योगो में प्रगति हुई, वे वृहत पैमाने ही के उद्योग थे। इनमें देशी और विदेशी, दोनों शक्तियां शामिल हैं। अर्थव्यवस्था में प्रगति के बावजूद भारत निर्धनता के दुश्चक्र से मुक्त नहीं हो पाया, क्योंकि बढ़े उद्योगो में उत्पादन मशीन पर निर्भर था।

बड़े उद्योगों की तुलना में छोटे उद्योगों में उत्पादन अधिक श्रम प्रधान है, जिस कारण इसमें बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन होता है। साथ ही इसमें ऊर्जा की खपत भी कम होती है और इनमें स्थानीयकरण की प्रवृत्ति भी पाई जाती है जो केंद्रीयकरण की बुराई से इसको बचाता है, जिससे पूंजी के वितरण से समता को बढ़ावा मिलता।

इसके अतिरिक्त इनके अल्प पूंजी निवेश और अल्प कुशलता मांग के कारण ये ग्रामीण जनसंख्या को रोजगार देने में सक्षम होंगे, जिससे निर्धनता के दुश्चक्र को तोड़ना सरल होगा। इसलिए सरकार को लघु उद्योगों के प्रसार के लिए बड़े उद्योगों की अपेक्षा छोटे उद्योगों को अधिक महत्त्व देने की आवश्यकता है। बीते कुछ समय में बहुराष्ट्रीय निगमों की अविश्वसनीयता ने इस जरूरत को और बड़ा दिया है।
मोहम्मद अफजल, बुलंदशहर।

वैज्ञानिकों को बधाई

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने हाल ही में नए जमाने का नेविगेशन सेटेलाइट लांच किया। यह भारत के आसपास डेढ़ हजार किलोमीटर के क्षेत्र में लक्षित स्थान और सही वक्त संबंधी सेवाएं देगा। इसके जरिए दुश्मनों के ठिकानों की सटीक जानकारी भी मिलेगी। एक बड़ी राहत यह होगी कि इससे अमेरिका के जीपीएस व्यवस्था पर निर्भरता कम होगी।

साथ ही चक्रवातों के दौरान मछुआरों, पुलिस और सेना को बेहतर नेविगेशन सुरक्षा मिलेगी। इस नेविगेशन सेटेलाइट में स्वदेश निर्मित रुबिडियम स्वचालित घड़ी का इस्तेमाल हुआ। ऐसी घड़ियां रखने वाले गिने-चुने देश हैं समूचे विश्व में। इसलिए इस उपलब्धि के लिए भारतीय वैज्ञानिकों को बधाई दी जानी चाहिए।
चंद्र प्रकाश शर्मा, रानी बाग, दिल्ली।