गर्मी के मौसम में बिजली संकट आम बात है। जितना ज्यादा गर्मी बढ़ती है, बिजली की मांग उतनी ही अधिक होने लगती है। अब जब बिजली संयंत्रों में बिजली उत्पादन ही नहीं होगा, तो लोगों को बिजली कैसे मिल पाएगी? कुछ इसी तरह का नजारा मौजूदा समय में देश के अंदर देखने को मिल रहा है। हालांकि, यह कोई पहली दफा नहीं है, जब भारत के विभिन्न राज्य बिजली कटौती की परेशानियों से जूझ रहे हैं। इससे पहले भी कई बार देश के समक्ष बिजली संकट गहराया है। हालांकि, समय रहते सरकार की सतर्कता के कारण निदान मिल गया। लेकिन, भारत में यह सिलसिला कब तक चलता रहेगा? क्या सरकार इस बात से अनभिज्ञ है?
हमारे देश में जब समस्याएं सामने आ जाती हैं, तभी उनसे निपटने का रास्ता निकाला जाता है। यह हमारी सबसे कमजोर कड़ी है कि हम पहले से उस चीज की जरूरतें पूरा करने की कोशिश नहीं करते। हमारे देश में बिजली उत्पादन करने का मुख्य स्रोत कोयला है। करीब सत्तर फीसद बिजली कोयले से बनती है और जब जब कोयले की कमी होती है, तब तब यह स्थित सामने आती है। ऐसी परिस्थितियों से निपटने के लिए सरकार को पहले से सतर्कता दिखानी होगी और गैरनवीकरणीय स्रोतों की जगह नवीकरणीय स्रोतों पर निर्भरता बढ़ानी होगी। अगर समय रहते कोयले की कमी नहीं दूर हई तो बड़े-बड़े कल कारखानों से लेकर मेट्रो तक बाधित होंगे।
शशांक शेखर, आईएमएस, नोएडा</p>
सुधार की दरकार
अच्छी बात है कि भाजपा सरकार तेजी से सुधार की ओर बढ़ रही है। अतिक्रमण पर बुलडोजर, ध्वनि प्रदूषण फैलाते लाउड स्पीकरों पर नकेल और गांव, कस्बों, जिलों और सड़कों आदि के नामों में भी सुधार, कई चिरप्रतीक्षित मुद्दे हैं, जिन्हें सरकार सर्वहित में कर रही है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में ही कई शहरों के नाम मुगलों की दास्तान बयान करते हैं, जिन्हें देश की आजादी के समय ही बदल दिया जाना चाहिए था, मगर दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ। अब सरकार इस पर भी कार्य कर रही है, जो काबिले-तारीफ है। इसमें एक बात गौर करने की यह भी है कि नए नाम भी इनसे मिलते-जुलते और छोटे हों तो और अच्छा होगा। इसके लिए विशेष मंथन करना होगा।
सरकार के लिए एक बड़ा सुधार कार्य यह भी है कि देश में सभी अवैध कालोनियों पर तुरंत लगाम लगे या सरकार खाली पड़ी जमीन का पहले ही नक्शा तैयार करे। दुर्भाग्य से पहले ऐसा नहीं हुआ। इन कालोनियों की अधिकतर गलियां तंग और बंद हैं, जिनमें फायर ब्रिगेड तक नहीं जा सकती।
वेद मामूरपुर, नरेला, दिल्ली
भाषा पर संयम
धर्म का उद्देश्य लोगों को सदाचारी और प्रेममय बनाना है। राजनीति का उद्देश्य लोगों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए उनके हित के लिए कार्य करना है। जब धर्म और राजनीति साथ-साथ नहीं चलते हैं, तो समाज में भ्रष्ट राजनेता और कपटी धार्मिक नेता मिलते हैं। धर्म और जाति का लबादा ओढ़े ऐसे नेता भारतीय राजनीति के अखाड़ों में ज्यादा ही परिलक्षित होने लगे हैं। सत्ता की भूख ने राजनेताओं को विभिन्न समुदायों को धर्मों के साथ-साथ जातियों में बांटने वाला काम भी दे दिया है।
जिस भारत देश की सभ्यता ने सदियों से दूसरे देशों में एकता और अखंडता की मिसाल पेश की हो, उस देश के राजनेताओं को फूट डालो राज करो वाली सोच को खत्म करना होगा। राजनीति के लिए, जाति और धर्म को आधार बना कर आए दिन होने वाले दंगे-फसादों को रोका जाना बहुत बड़ी आवश्यकता है, जो केवल और केवल देश में राजनीति करने वाले नेता ही कर सकते हैं।
नरेश कानूनगो, देवास