यह आमतौर पर देखने को मिलता है कि निर्वाचित एवं स्थिर सरकारों को अपदस्थ करने की विद्रोही गुटों की राजनीतिक उठापटक के कारण जनता के विकास कार्य की गति अवरुद्ध हो जाती है। जनकल्याण कार्य न केवल प्रभावित होते हैं, बल्कि कानून व्यवस्था बनाए रखना भी पुलिस प्रशासन को भारी पड़ता है। महाराष्ट्र में जारी सत्ता-संघर्ष इसका ज्वलंत उदाहरण है। सड़कों पर अब बागी जन प्रतिनिधियों के खिलाफ आक्रोश एवं हिंसात्मक प्रदर्शन देखे जा रहे हैं, जिसको राज्य सरकार को रोकना होगा। आटो चालक, मजदूर, कारीगर, मैकेनिक और असंगठित मजदूरों को रोजी-रोटी कमानी भारी पड़ रही है।

दिन-प्रतिदिन जटिल होती महाराष्ट्र राजसत्ता की लड़ाई के बीच कानूनी दांवपेच शुरू हो गए हैं। ऐसा लगता है कि सुप्रीम कोर्ट राज्यपाल एवं विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका बड़ी होने वाली है और सत्ता की लड़ाई का पटाक्षेप विधानसभा में ही होगा। इसमें कोई शक नहीं रह गया है कि चुनावी जद्दोजहद की पृष्ठभूमि में दल-बदल कानून का लचीलापन है, जिसमें आवश्यक संशोधन के माध्यम से दल-बदल कानून को इतना मजबूत कर दिया जाए कि इसका कोई भी दुरुपयोग नहीं कर सके। तभी इस तरह के घटना क्रम पर रोक लगाई जा सकती है।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली</p>

उपेक्षा के मंच

असम में गौहाटी से सिल्चर तक बाढ़ ने भयावह रूप धारण किया हुआ है। जनता प्राकृतिक आपदा और मौसम के कहर से जूझ रही है। दरअसल, असम के 35 जिलों में से 34 जिले पानी में डूबे हुए हैं, खाने और पेयजल का भयानक संकट है, लेकिन लगता है कि देश और असम के मुख्यमंत्री को महाराष्ट्र की राजनीति और वहां के विधायकों की खातिरदारी से फुर्सत नहीं मिल रही है। असम की दुर्दशा आज किसी के लिए अहम नहीं है।

यह स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है। राजनीतिक गतिविधियां अपनी जगह हैं, पर जनता के दुख-दर्द और उनका जीवन सबसे अधिक मूल्यवान है। शासन, प्रशासन को असम की त्रासद स्थिति से प्राथमिकता के आधार पर निबटना चाहिए। हालांकि असम में यह स्थिति नई नहीं है और वहां लगभग हर वर्ष ऐसे ही हालात होते हैं। फिर भी वहां के लोगों को केवल किस्मत के हवाले नहीं छोड़ा जा सकता।

मीडिया के द्वारा भी असम को ऐसे संकट के समय नजरअंदाज करना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। हो सकता है कि प्राकृतिक आपदाओं को रोकना पूरी तरह रोकना संभव नहीं हो, लेकिन अगर पिछले अनुभवों से सबक लिया जाए तो जानमाल नुकसान की मात्रा को कम जरूर किया जा सकता है। उम्मीद है कि हमारे देश की सरकार जनता का दर्द समझते हुए, आवश्यक संवेदना के साथ इस महत्वपूर्ण मुद्दे को संज्ञान में लेकर इसका समुचित समाधान निकालेगी।
इशरत अली कादरी, खानूगांव, मप्र