मोदी सरकार संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली को धता बताते हुए बड़े पूंजी मालिकों के हित में जारी किए गए अनेक अध्यादेशों को पारित करवाने का वही दंभ दिखा रही है जो कांग्रेस ने लोकपाल के बाबत दिखाया था। मोदी का दंभ कांग्रेस से भी सौ गुना ज्यादा है। लोकसभा चुनाव में मिले कथित बहुमत से बंद हुई आंखें महाराष्ट्र, झारखंड, जम्मू-कश्मीर और ताजे परिणाम दिल्ली से भी नहीं खुली हैं।

‘बहुमत को अल्पमत कुचल नहीं सकता’ का दंभ दिखाने वाले नरेंद्र मोदी भूल गए कि क्या केवल लोकसभा चुनाव में मिली जीत के दम पर वे देश की किस्मत बड़े पूंजीपतियों के हवाले कर देंगे? मोदी कह रहे हैं कि वे भूमि अधिग्रहण कानून में ये संशोधन अट्ठाईस राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की मांग पर कर रहे हैं। क्या वे बताएंगे कि ये मांगें किस मंच पर और कब की गई हैं? क्या वे 282 सांसदों के दम पर लोकसभा में भूमि अधिग्रहण अध्यादेश सहित बीमा, कोयला और अन्य अध्यादेशों को कानून बनाने के लिए प्रस्तुत होने वाले विधयेक संसद से पारित करा लेंगे?

पहली बात तो यह कि जिन 282 सांसदों के दम पर वे लोकसभा में इन विधेयकों को पारित करवाना चाहते हैं, उनके लिए अपने क्षेत्र की जनता को जवाब देना मुश्किल होगा। जिस राजग की वे सरकार चला रहे हैं, उसमें से अनेक दलों ने इसका मुखर विरोध कर दिया है। भले ही विभाजित विपक्ष का फायदा उठाकर महज इकतीस प्रतिशत वोट पाकर वे संसद के एक सदन लोकसभा में बहुमत ले आए पर उन्हें नहीं भूलना चाहिए कि 69 प्रतिशत वोट उस समय उनके खिलाफ पड़े थे, जो बाद के विधानसभा चुनावों में और भी बढ़ते गए हैं। उनका जनसमर्थन आधार निरंतर घट रहा है। संसद के दूसरे सदन राज्यसभा में भी उनका बहुमत नहीं है। लोकसभा और राज्यसभा के संयुक्त सत्र के जरिए वे जिन अध्यादेशों को कानून बनवाने पर तुले हुए हैं, पूरे देश के स्तर पर उनका भारी विरोध है।

जिस भूमि अधिग्रहण कानून में डेढ़ साल पहले देश के किसानों की लंबे समय से जारी रही मांग पर सभी राजनीतिक दलों के बीच काफी विचार-विमर्श के बाद बदलाव हुआ है और उसमें उनकी पार्टी भाजपा भी शामिल थी। मनमोहन सिंह के समय विपक्षी भाजपा की नीति अब सत्ता पक्ष में आते ही बदल कैसे गई? क्या उस समय भाजपा केवल दिखावटी बातें कर रही थी? नीति और नीयत का खोट अब छुपाए नहीं छुप रहा। लोकसभा चुनावपूर्व सभाओं में अपने को मुल्क का ‘सेवक’ और ‘चौकीदार’ बताने वाला देश को किसके हवाले करने जा रहा है, जनता अच्छी तरह जान गई है। सच्चाई से मुंह मोड़ कर और अपने दोमुंही फितरत से जनता को अब ज्यादा गुमराह नहीं किया जा सकता। बीमा विधेयक के जरिए जनता की बचत और उसके वित्तीय संसाधनों और भूमि अधिग्रहण के जरिए किसानों की आजीविका की भेंट कुछ अमीरों की तिजोरियोंमें पहुंचाने के विरोध में देशव्यापी मोर्चेबंदी हो रही है। देशहित को मोदी सरकार जितना जल्दी जान ले, उसी में भलाई है।

 

रामचंद्र शर्मा, तरुछाया नगर, जयपुर</strong>

 

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