महंगाई के इस दौर में आज कुछ भी सस्ता नहीं मिलता। पहले गर्मियों में आम जनता का सहारा नींबू-पानी होता था, आज उसी ने महंगाई के इस दौर में लोगों का साथ छोड़ दिया है। या यों कहें कि नींबू ने लोगों को पूरी तरह ने निचोड़ कर साथ छोड़ दिया है। बढ़ती गर्मी के साथ अब नींबू के दाम भी बढ़ने लगे हैं। कहीं-कहीं इसके तीन सौ रुपए प्रतिकिलो तक बिकने की खबरें आर्इं। इस तरह नींबू वीआइपी क्षेत्र में आ गया है।

इसके अलावा, पिछले 70 सालों में पहली बार ऐसा हुआ है कि सब्जियों की दौड़ में नींबू में टमाटर और प्याज को पीछे छोड़ दिया है। आलम यह है कि नींबू अब आम जनता की पहुंच से बाहर हो चुका है। जबकि यह सेहत के लिहाज से रोजमर्रा के इस्तेमाल में शामिल एक जरूरी चीज रहा है।
मैना कटारिया, फरीदाबाद, हरियाणा

सेहत की कसौटी

‘सवाल सेहत का’ (संपादकीय, 18 अप्रैल) पढ़ा। यह बेहद संजीदा विषय होना चाहिए था, क्योंकि यही एक ऐसा क्षेत्र है, जिससे हर किसी का वास्ता पड़ना तय है। मगर स्वाधीनता के इतने बरस बाद भी पर्याप्त स्वास्थ्य कर्मियों सहित डाक्टरों की संख्या प्रति हजार जनसंख्या पर विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों से बेहद कम है। सुदूर गांव के लोगों का एकमात्र सहारा जिला अस्पताल या शहरी क्षेत्र के निजी चिकित्सालय हैं। इसके चलते अक्सर मरीजों की जान को खतरा तो रहता ही है, उसकी आय पर भी डाका पड़ता है।

इसलिए सस्ती, सुलभ, गुणवत्ता वक्त शिक्षा व स्वास्थ्य ढांचा को सामाजिक न्याय की पहली कसौटी माना जाता है। लेकिन सामाजिक न्याय के नाम पर हमारे देश में मुफ्त रेवड़ियां बांटने सहित अन्य उपाय पर ज्यादा जोर रहा है। इससे अन्य बुराइयां जरूर पनपीं, मगर लोगों की माली हालत में सुधार नहीं हो पाया। दिक्कत है कि आम जनमानस को भी समझना होगा कि सही अर्थों में लोक कल्याण व सामाजिक न्याय की अवधारणा क्या है? तभी सरकारें बाध्य होंगी शिक्षा व स्वास्थ्य पर बजट बढ़ाने के लिए।
मुकेश कुमार मनन, पटना, बिहार

धरती बचाई जाए

‘धरती को बचाने की चुनौती’ (लेख, 16 अप्रैल) पढ़ा। बिना धरती हमारा जीवन संभव नहीं है। मगर आज हम अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए उसका निरंतर दोहन कर रहे हैं। यही वजह है कि आज कई समस्याएं भी हमारे सामने खड़ी हो रही है। वातावरण में बदलाव नजर आने लगा है, पृथ्वी तप रही है, अपनी सुख-सुविधाओं की चाहत ने धरती को विनाश की कगार पर पहुंचा दिया है। हमें अपनी धरती को बचाना होगा, अन्यथा इसका खमियाजा भी हमें ही भुगतना पड़ेगा।
साजिद अली चंदन नगर इंदौर</p>