जब बागड़ ही खेत को खाने लगे तो खेत का क्या होगा! जब देश के प्रधानमंत्री और प्रदेश के मुख्यमंत्री ही कानून को ठेंगा दिखाने वालों के दरबार में हाजिरी लगा कर कानून की अवहेलना करने वालों को महिमामंडित करेंगे तो देश में कानून का सम्मान कैसे होगा! कहीं ऐसा तो नहीं लिखा है किसी कानूनी किताब में कि जो सत्ताधारी नेताओं को प्रभावित कर सकते हैं, उनके लिए कानून मानना जरूरी नहीं है! सामान्य बुद्धि यही मानती है कि कानून सबके लिए बराबर है। औपचारिक रूप से इसका अर्थ यही मिलेगा कि कानून सबके लिए समान है।
अगर ऐसा है तो संत, महात्मा, साधु, शंकराचार्य आदि क्यों और कैसे खुलेआम कानून को धता बता सकते हैं? कुछ नेता आसाराम के चरणों में माथा रख कर मंत्रमुग्ध और भाव-विह्वल होकर झूम-झूम कर कहते हैं कि बापू, आप आदेश करिए, उसी के अनुसार मैं जनता का कल्याण करूंगा (यह एक वीडियो में दर्ज है)। जबकि आसाराम ने कितनी ही सरकारी संपत्तियों पर अवैध कब्जा कर रखा है, कितने जघन्य अपराधों में लिप्त पाए गए, यह जगजाहिर है। यह कौन नहीं जानता कि जेल में बंद होने के पहले तक सरकारी अधिकारी उनकी जांच करने से डरते थे। एक और धमगुरु हैं जिनके मठ में गरीब अनुसूचित जाति के लोगों की जमीन बलपूर्वक हथिया कर शामिल कर ली गई है।
ऐसे अंतहीन किस्से देश भर में गिनाए जा सकते हैं। हाल में श्रीश्री रविशंकर ने करोड़ों रुपए फूंक कर दिल्ली में विश्व सांस्कृतिक महोत्सव कराया। इसके लिए यमुना को पर्यावरणीय क्षति पहुंचाई गई, इस ‘पुनीत’ कार्य के लिए सेना की आन-बान और शान की दुहाई देने वाली सरकार ने नियमों को ताक पर रखते हुए सेना को किसी की निजी सेवा में झोंक दिया। इस पर टिप्पणी करते हुए पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल शंकर प्रसाद ने कहा कि किसी निजी कार्यक्रम के लिए सेना में यह गलत परंपरा की शुरुआत है।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल जैसे वैधानिक न्यायाधिकरण द्वारा इस कार्यक्रम के लिए की गई पर्यावरणीय गलती के लिए पांच करोड़ रुपए जुर्माना अग्रिम जमा कराने के आदेश दिए। खबरों के मुताबिक इस आदेश की धज्जियां उड़ाते हुए श्रीश्री ने कहा कि जेल चला जाऊंगा, पर एक रुपया भी नहीं दूंगा। यह कानूनी धृष्टता किस संतत्व की निशानी है! इनके कार्यक्रम में शामिल होकर कानून के लिहाज से आपराधिक दंभोक्ति करने वाले को महिमामंडित कर कौन-सा संदेश दिया जा रहा है।
’श्याम बोहरे, बावड़ियाकलां, भोपाल</strong>