दिल्ली सहित उत्तर भारत में वायु प्रदूषण की विकराल होती समस्या से निपटने लिए बहुआयामी और बहुस्तरीय ठोस कदम उठाने की सख्त जरूरत है। दिल्ली में वायु प्रदूषण का मुख्य कारण वाहनों की बेतहाशा बढ़ती संख्या है। यहां पंजीकृत वाहनों की तादाद एक करोड़ को पार कर चुकी है और हर रोज 1400 गाड़ियां यातायात में शामिल हो रही हैं। 1970 में गाड़ियों की संख्या आठ लाख ही थी। पिछले पांच वर्षों के दौरान दिल्ली में वाहनों की संख्या में 97 फीसद की बढ़ोतरी हुई है। ऐसे में दिल्ली सहित उत्तर भारत के शहरों को प्रदूषण-मुक्त क्षेत्र बनाने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है सार्वजनिक यातायात व्यवस्था को बढ़ावा देने की, ताकि लोग निजी वाहनों का प्रयोग कम से कम करें। सरकार को मेट्रो का दायरा बढ़ाने के साथ ही उसमें सुविधाएं भी बढ़ानी चाहिए। दिल्ली परिवहन निगम की बसों की संख्या बढ़ाने के साथ-साथ सेवा की गुणवत्ता तथा सुरक्षा के पर्याप्त प्रबंध किए जाने की आवश्यकता है।

दिल्ली के आसपास पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में फसल अवशेष या पराली जलाने की प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए धान की खरीद की तरह ही सरकार को किसानों की पराली उठाने का प्रबंध भी करना होगा या फिर उन्हें ऐसी सुविधा दी जाए जिससे वे फसल अवशेष का निपटारा वैज्ञानिक तरीके से कर सकें। इसके अलावा खेतों में फाने-पराली जलाने की समस्या के स्थायी समाधान के लिए बायोमास ऊर्जा संयंत्र लगा कर बिजली पैदा करने पर राज्य सरकारों को ध्यान देना चाहिए। एक अनुमान के मुताबिक हरियाणा और पंजाब में हर वर्ष तीन करोड़ टन से ज्यादा पराली जलाई जाती है जिससे एक लाख मेगावाट से ज्यादा की बिजली पैदा की जा सकती है।

शहरों में हरित पट्टियों की कमी भी वायु प्रदूषण बढ़ने की एक अहम वजह है। ऐसे में सरकार के साथ-साथ आम लोगों को भी अधिकाधिक संख्या में वृक्षारोपण करना चाहिए। शहरी मार्गों के किनारे पेड़ों की एक दीवार-सी खड़ी कर दी जाए तो प्रदूषण नियंत्रित करने में काफी मदद मिल सकती है। वाहनों से निकलते जहरीले धुएं से निजात पाने के लिए गाड़ियों तथा दुपहिया वाहनों की ट्यूनिंग की जानी चाहिए ताकि अधजला धुआं बाहर आकर पर्यावरण को दूषित न करे। साथ ही इको फ्रेंडली तकनीक पर चलने वाले वाहनों को प्रोत्साहित किए जाने की भी जरूरत है
पानी का छिड़काव किए बगैर सड़कों पर झाड़ू लगाने और कूड़े को खुले में जलाने से भी स्वास्थ्य संबंधी विभिन्न परेशानियां उत्पन्न हो रही हैं। इसलिए कचरा निपटान की कोई ठोस व्यवस्था भी करनी होगी। वायु प्रदूषण की समस्या के स्थायी समाधान के लिए केंद्र सरकार को एक ठोस तथा बाध्यकारी नीति बनाने की जरूरत है जिसमें पराली जलाने की किसानों की मजबूरी को दूर भी किया जा सके तथा निजी वाहनों की संख्या में प्रभावी कमी करते हुए सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा दिया जा सके।
’कैलाश मांजू बिश्नोई, मुखर्जीनगर, दिल्ली</p>