अदृश्य दुश्मन कोरोना से लड़ने के लिए दुनिया के बहुत से देशों ने बेशक टीका या दवाई तैयार कर ली है, लेकिन कोरोना को हराने में कामयाबी नहींं मिल पाई है। अब इसके नए रूप ओमीक्रान के आने से दुनिया के वैज्ञानिक भी कठघरे में खड़े हैं। यह सवाल हर व्यक्ति के दिल-दिमाग में जरूर उठ रहा होगा कि कुदरत के आगे विज्ञान अभी बौना है, जिससे कोरोना की कोई कारगर दवा नहीं बन पाई। कोरोना को हराने के लिए हर देश की सरकार, प्रशासन और आमजन को गंभीरता दिखानी होगी। जब तक यह महामारी पूरी तरह हार नहींं जाती, तब तक यह दुनिया के हर क्षेत्र के विकास में सदियों पीछे भी ले जाएगी।

जिन देशों में कोरोना या ओमीक्रान तेजी से फैल रहा है, वहां की सरकारों को समझदारी दिखाते हुए अपने यहां से विदेश आने-जाने वाले लोगों के लिए सख्त नियम बनाने चाहिए। दुनिया के सभी वैज्ञानिकों को इस महामारी को हराने के लिए एकजुट होना पड़ेगा।

  • राजेश कुमार चौहान, जालंधर

मतभेद क्यों

आखिर हर चीज पर सबसे पहले धर्म को क्यों लाया जाता है? भविष्य में कोई भी चुनाव जीत कर आए, तो उसका मकसद सिर्फ धर्म तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि उसका मकसद लोगों का विश्वास जीतना होना चाहिए। आखिर लोगों की अपनी जिंदगी में क्या ख्वाहिश रहती है? अपनी ख्वाहिश को जिंदगी में लाने के लिए अगर वह विश्वास करके किसी एक पार्टी को वोट देता है, तो वोट पर खड़े उस दावेदार को उस एक इंसान से मिले वोट का भी सम्मान करना चाहिए। हमारे जीवन में चुनाव का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। चुनाव में खड़े दावेदार को देश के विकास के बारे में लोगों से बात करना चाहिए न कि धर्म के नाम पर मतभेद करना चाहिए।

  • सृष्टि मौर्य, फरीदाबाद, हरियाणा

शुचिता की राजनीति

अब तक सत्ता में जितनी भी पार्टियां आई हैं, शुचिता की बात सभी करती हैं। सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग ने बार-बार दागी उम्मीदवारों को लेकर चिंता जाहिर की, मगर विडंबना है कि किसी भी पार्टी के कानों पर जूं तक नहींं रेंगी। कोई भी दागी उम्मीदवार को हाशिए से बाहर नहींं करना चाहता। सभी लोकसभा और विधानसभा के चुनाव में दागियों को टिकट देते हैं। संसद का काम है, बेहतर कानून बनाना, ताकि देश में शुचिता बनी रह सके। मगर सत्ता में चाहे जो हो, उसने सुप्रीम कोर्ट या चुनाव आयोग की चिंताओं को हल्के में लिया तथा कानून बना कर दागी को बाहर रखने की दृढ़ इच्छाशक्ति नहींं दिखाई। अब तो दागियों को रोकने के लिए कानून बनना ही चाहिए, यह शुचिता की राजनीति का तकाजा है।

  • हेमा हरि उपाध्याय ‘अक्षत’, उज्जैन