चाहे वे बाबुल के वृक्ष हों या फिर गुलमोहर के पौधे, इतने खूबसूरत दिखते हैं, जैसे मां अपने छोटे बच्चे को गोद में ले लिए हो। वहीं कल-कल निनाद करते हुए झरने जब पत्थरों पर ठोकरें खाते हुए आगे बढ़ते हैं, तो ऐसा लगता है कि जैसे बड़े आंगन में कोई नृत्य कर रहा हो।
प्रकृति में अजीब शक्तियां मौजूद है, जो केवल पौधे में ही नहीं, बल्कि सब दैनिक कार्यों में भी देखा जा सकता है। वही चिड़िया का सुबह-सुबह चहकना। प्रकृति ने ऐसी अनमोल वस्तुएं हम सबके लिए और हम सबके सामने भेजे जो हमें जीवन देते हैं। कुछ दिखाई पड़ते हैं, कुछ नहीं भी दिखते हैं। इसके लिए प्रकृति ने हमसे कोई कीमत नहीं वसूली है।
इस सबको अनमोल वस्तुओं के तौर पर न देखें तो और क्या करें? नन्हे-नन्हे फूलों का सुबह मुस्कुराना जैसे लगता है कि कोई आकर उसे जगाता है। हमने खुद जांचा-परखा है कि प्रकृति में कैसी अनमोल और चमत्कृत कर देने वाली वस्तुएं हैं। हम किसी को बोलते नहीं कि तुम सुबह उठो, तब भी उसे पता हो जाता है कि मुझे पांच बजे या छह बजे या सात बजे उठ जाना है!
प्रकृति ने ऐसी अनमोल वस्तुओं का जन्म दिया है कि उसका हिसाब हम कभी नहीं लगा सकते। मानव आलसी प्राणी है। लेकिन यह देखा जा सकता है कि अपने जीवन के लिए वह इस धरा पर सुबह-सुबह आंखें खोल देता है। चाहे चिड़िया का चहकना हो या फिर भंवरे का फूलों पर मडराना, सभी कार्य नियमानुसार ही होता है। प्रकृति ने सब उपलब्धियों यहां पर भेजा है, जो हम सबको तरह-तरह की चीजों में देखने को मिलती हैं। हम सब आखिर एक सीमा में सोचने-जीने वाले मनुष्य ही हैं। तो हमें क्या पता कि किसमें क्या जादू है।
मनोज कुमार, गोंडा, उप्र
गुम होता बचपन
वर्तमान में इलेट्रानिक दुनिया की भागदौड़ भरी व्यस्ततम जिंदगी में बच्चों के लिए साथ बिताने का समय लोग नहीं निकाल पाते। इसके अलावा, रिश्तेदारी का व्यावहारिक ज्ञान भी पीछे छूट-सा गया है। नन्हें-मुन्नों की जिंदगी और हमारा नजरिए से कल्पना की उत्पत्ति होती है और मातृत्व दुलार भी सही तरीके से प्राप्त होता है। अब यह चिंता सताने लगी है कि कहीं कहानियां सुनाने की प्रथा विलुप्त न हो जाए। ऐसा हुआ तो बच्चे लाड़-प्यार और कहानियों से वंचित हो जाएंगे। हाईटेक होते युग में मोबाइल और इंटरनेट ही सहारा बन गए हैं। अभिभावकों को चाहिए कि बच्चों के लिए अपनी भागदौड़ भरी व्यस्ततम जिंदगी में से कुछ समय बच्चों को घर पर कहानियां सुनाने के लिए भी निकालें।
इसके अभाव में बच्चों को तो स्मार्टफोन के स्क्रीन में सिमटने की लत पड़ गई। जिसने अभी बैठना सीखा हो, वह भी मोबाइल का दीवाना दिखता है। अगर उसके हाथ से मोबाइल ले लिया जाता है तो वह रोने लगता है। उससे बड़े बच्चे, जो दूसरी या तीसरी कक्षा में पढ़ते हैं, वे यूट्यूब पर कार्टून देखना सीख गए। ऐसा लगता बच्चे शारीरिक-बौद्धिक विकास के साथ खिलौने की दुनिया ही भूल गए है। खिलौनों का व्यापार भी इससे प्रभावित हुआ है। कुल मिला कर शारीरिक-बौद्धिक गतिविधि कमजोर हो गई। मोबाइल के आभासी दुनिया ने बच्चों को चश्मे चढ़वा दिए।
कहने का मतलब है कि दिन औरÞ रात मोबाइल में ही लगे रहते हैं। अगर घर पर मेहमान आते हैं, तो वे हमसे कुछ कह रहे होते हैं। मगर लोगों का ध्यान बस फेसबुक, वाट्सऐप पर जवाब देने में लगा रहता है और उनकी समझाइश में ही बीत जाता है।मेहमान भी रूखेपन से व्यवहार में जल्द उठने की सोचते हैं। घर के काम तो पिछड़ ही रहे। फेसबुक, वाट्सऐप का चस्का ऐसा है कि अगर रोजाना सुबह-शाम हाजिरी दर्ज न हो, तो रिश्तों में नाराजगी आ जाती है। बच्चों को ज्ञानार्जन में उपयोगी होने के लिए कहानियों, गीत-संगीत, व्यायाम, खेल आदि पर ध्यान देना होगा, बजाय मोबाइल पर ही लगे रहने के।
संजय वर्मा ‘दृष्टि’, मनावर, धार
गंगा तेरा पानी
आखिर कब होगा गंगा का पानी निर्मल? आखिर कब बंद होगा गंदे नालों का गिरना? या तो हम इसे ‘गंगा मैया’ कहना छोड़ दें और अगर नहीं तो फिर इसमें जहर न घुलने दें। इसके लिए हमें शहरों की सीवर व्यवस्था को नए सिरे से व्यवस्थित करना होगा। जिस तरह नाला बन चुकी हडसन नदी एक बार फिर चमक उठी थी, ठीक उसी तरह हमें अपनी गंगा को निर्मल और आचमन लायक बनाना होगा।
यह तभी संभव होगा जब हम इसे राष्ट्रव्यापी अभियान में बदल दें। इस संदर्भ में हर राज्य हर जनपद को अपने यहां की नदियों को निर्मल बनाए रखने का संकल्प लेना होगा। इसके लिए हमें आस्था और वैज्ञानिकता, दोनों को ही लेकर चलना होगा, ताकि भविष्य में हम यह कह सकें- गंगा तेरा पानी अमृत झर-झर बहता जाए।
रंजना जोशी, लखनऊ
कौन जिम्मेदार
बिहार में कहने को शराबबंदी है, फिर भी जहरीली शराब पीने से आए दिन लोगों की मौत हो रही है। दूसरी ओर, सरकार अपनी नाकामी छिपाने के लिए लोगों पर ही आरोप मढ़ रही है। बिहार के मुख्यमंत्री ने विधानसभा के सत्र में भाषण देते हुए कहा कि बिहार में दारू पीकर मरने से सरकार मुआवजा नहीं देगी। उन्होंने कहा, ‘अगर कोई शराब पिएगा और गड़बड़ पिएगा तो वह मरेगा। लोगों को शराब पीने से मना करना चाहिए।’
यह बिल्कुल सही है कि लोगों को शराब नहीं पीनी चाहिए, लेकिन साथ ही सरकार को यह भी बताना चाहिए कि अगर शराबबंदी लागू है तो शराब लोगों को मिल कहां से रही है? यह कहीं न कहीं व्यवस्था की घोर लापरवाही है, जिसकी वजह से सरकार की नाक के नीचे शराब माफिया धड़ल्ले से जहरीली शराब लोगों को परोस रहा है।
सरकार को चाहिए कि पहले व्यवस्था में सुधार करे, उसके बाद लोगों पर दोषारोपण करे, क्योंकि लोग तभी पी रहे हैं, जब उनको शराब आसानी से मिल रही है। इसलिए संवेदनशील होकर जनता के हितों में निर्णय लेते हुए शराबबंदी को कठोरतापूर्वक लागू किया जाए, जिससे आगे से ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
नागेंद्र, मेरठ</p>