जब तक देश सामाजिक बुराइयों से आजाद नहीं होगा, तब तक देश राजनीतिक और आर्थिक बुराइयों से मुक्त नहीं होगा। हमारे देश को अंग्रेजों से आजाद हुए 75 साल हो गए। इन 75 सालों में हमारे देश ने विभिन्न विकास के क्षेत्रों में अन्य महत्त्वपूर्ण स्थानों में बहुत तरक्की की है। आज हमारा देश दुनिया के उन देशों के साथ कदमताल मिला चुका है जो विकास के मामले में अग्रणी माने जाते हैं, लेकिन स्वार्थी लोगों के राजनीति में आने से सत्ता में खोट भी बहुत आए हैं। इस कारण देश में बहुत-सी समस्याओं ने अभी भी देश में डेरा डाला हुआ है।

अगर हम सामाजिक बुराइयों की बात करें तो आजादी के 75 सालों बाद भी, जबकि आज हमारा देश भी आसमान तक कामयाबी की झंडे गाड़ चुका है, सामाजिक बुराइयों से आजाद नहीं हो पाया है। देश में अभी भी बहुत से लोग जातपात, छुआछूत, धर्म, लड़का-लड़की में भेदभाव, दहेज प्रथा, ऊंच-नीच, अमीर-गरीब, शोषण करने आदि संकीर्ण मानसिकता के गुलाम हैं। रिश्तों पर भी स्वार्थ का रंग चढ़ गया है। महिलाओं का समाज में अच्छा बदलाव लाने में महत्वपूर्ण योगदान होता है।

हमारे देश में सामाजिक बुराइयों की मुख्य वजह हमारा स्वार्थ भी है। स्वार्थ के वशीभूत होकर हम एक तो बुरा देख कर भी धृतराष्ट्र बने रहते हैं, दूसरा अपने स्वार्थ के लिए चापलूसी, निंदा, चुगली और गलत भाषा बोलने से गुरेज नहीं करते। तीसरा किसी बुराई, गलत काम बारे सुनकर भी कानों के सुनने की क्षमता होते हुए भी हम बहरे बने रहते हैं। जबकि हमारे देश की महान शख्सियत महात्मा गांधी ने बुरा न देखो, बुरा न बोलो, बुरा न सुनो के मंत्र दिया है।

जब हम अपने फायदे को ध्यान में रखते हुए या फिर सरकार की गलत नीतियों के विरोध में देश को नुकसान पहुंचाते हैं तो इससे नुकसान हमारा ही होता है, न कि सरकारों का। अगर हमें सामाजिक बुराइयों से देश और समाज को आजाद करना है तो हमें इंसानियत की मर्यादा में रहकर और अपनी संकीर्ण मानसिकता को त्यागते हुए देश और समाज बारे सोचना होगा।
राजेश कुमार चौहान, जलंधर, पंजाब</p>

भ्रष्टाचार का रोग

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस स्वतंत्रता दिवस के दिन दो बातों पर जोर दिया। पहला परिवारवाद, दूसरा भ्रष्टाचार। किसी देश के लिए प्रगति की बाधक ताकतें भ्रष्टाचार को जन्म देती हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ देश के राजनीतिक पार्टियों की गोलबंदी तेजी से होने लगी है। प्रधानमंत्री ने 2014 में भी अपने प्रचार के दौरान या कहा था कि न खाऊंगा न खाने दूंगा। जनता उस समय भ्रष्टाचार से परेशान थी और भाजपा को बहुमत मिला।

उसी सिलसिले में देश के विभिन्न राज्यों की सरकारों में ईडी ने बड़े-बड़े घोटालों का पर्दाफाश किया, जिससे विपक्षी दलों के नेताओं ने कहा कि बदले की भावना से राजनीति किया जा रहा है। लेकिन सवाल यह है कि जो भी जांच ईडी द्वारा किया जा रहा है, उसमें जो पैसा मिल रहा है, वह क्या जनता का पैसा नहीं है, जिसे नेताओं ने अवैध तरीके से कमाया है।

इसी तरह, भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से एक पार्टी निकली, जिसके मंत्री भी भ्रष्टाचार में फंसे। जब ईडी द्वारा समन जारी किया गया तो मंत्री जी की यादाश्त चली गई। जबलपुर के आरटीओ के यहां से ईडी ने छापे में कई करोड़ की संपत्ति पकड़ा। जाहिर है कि भ्रष्टाचार की जड़ें बहुत मजबूत हैं। उन्हें समय पर लगाम न लगाया गया तो देश की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ेगा।
सचिन पांडेय, इलाहाबाद विवि