हाल के दिनों में देश के कई भागों से सड़कों पर घूमने वाले कुत्तों के हमलों में कई बच्चों और बड़ों के घायल होने तथा मरने के समाचार आए। कहा जा रहा है कि राज्यों में आवारा कुत्तों की नसबंदी का अभियान कारगर ढंग से नहीं चलाया जा रहा है।
हालांकि जानकार तेजी से नसबंदी अभियान चलाने को समस्या का उपयोगी समाधान बता रहे हैं। वैसे यह विचारणीय प्रश्न है कि सदियों से मनुष्य का साथी रहा कुत्ता क्यों आक्रामक हो चला है। कहीं न कहीं शहरी जिंदगी में उसकी उपयोगिता कम होने के चलते उसे सड़क पर आना पड़ा है। वहीं लोगों में विदेशी नस्ल के कुत्तों के बढ़ते मोह ने उसे घरों से बाहर का रास्ता दिखाया है।
देश में विदेशी नस्ल के कुत्तों की खरीद-फरोख्त का बड़ा बाजार भी विकसित हुआ है। वहीं हमारी खानपान की आदतों में बदलाव का असर भी कुत्तों में देखा गया है। अक्सर खानपान की दुकानों के बाहर इनका जमावड़ा देखा जाता है। मारे गए जीवों के अवशेषों का सावधानी से निस्तारण नहीं किया जाता। दूसरे, वातावरण में बढ़ती गर्मी भी इन्हें उग्र बनाती है।
हम महसूस करें तो समाज में वाहनों और अन्य उपकरणों का शोर बहुत बढ़ा है। यह जानवर ध्वनि के प्रति बेहद संवेदनशील होता है। शहरों, कस्बों के गली-कूचों में लोगों द्वारा दुत्कारे जाते, मार-पीटकर भगाए जाते कुत्ते कालांतर में आक्रामक होने लगते हैं। निस्संदेह, आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या पर योजनाबद्ध ढंग से नियंत्रण, सामाजिक जागरूकता और जीवों के संरक्षण में लगी स्वयंसेवी संस्थाओं के सहयोग से ही इस समस्या का समाधान संभव है।
आम्रपाली राय, जमशेदपुर।
जिम्मेदारी की जरूरत
‘सुरक्षा पर सवाल’ (28 फरवरी) से सहमत हुआ जा सकता है। कश्मीर में रुक-रुक कर लक्षित हत्याएं घाटी में दहशत बरकरार रखने की साजिश है। कश्मीरी पंडितों को ही इसमें निशाना बनाया जाना सरकार के लिए उन लोगों की सुरक्षा को लेकर एक बड़ी चुनौती है। देखने में आया है कि जब-जब सरकार द्वारा घाटी की स्थिति की समीक्षा की जाती है, आतंकी हमला अवश्य होता है, जिससे कि आतंकवाद की उपस्थिति दर्ज होती है।
अब भी घाटी में मुट्ठी भर बचे आतंकी संगठन अपनी करतूतों से बाज नहीं आ रहे हैं। इस तरह की घटनाओं से एक बार फिर पलायन की घटनाएं सामने आ सकती हैं। सरकार को इन हालात में घाटी में रह रहे कश्मीरी पंडितों की सुरक्षा की पूरी जवाबदेही वहन करनी पड़ेगी ताकि उनका आत्मविश्वास कायम रहे। हर कोई अपनी और परिवार की सौ फीसद सुरक्षा चाहता है।
अमृतलाल मारू ‘रवि’, इंदौर।
अलगाववादी मंसूबे
पंजाब के अजनाला थाने में अपने एक साथी को रिहा कराने पहुंचे खालिस्तान समर्थकों की अराजकता के आगे पंजाब पुलिस जिस तरह असहाय दिखी, उससे उन दिनों का स्मरण हो आया, जब खालिस्तानी आतंकवाद चरम पर था। यह समझना कठिन है कि पंजाब पुलिस ने खालिस्तान समर्थक और ‘वारिस पंजाब दे’ नामक संगठन के प्रमुख अमृतपाल सिंह के नेतृत्व में हुई अराजकता के आगे इस तरह समर्पण क्यों कर दिया?
इस प्रश्न का उत्तर पंजाब सरकार को भी देना चाहिए। पुलिस पर हमला करने वालों पर कोई मामला दर्ज नहीं किया गया। खालिस्तानी समर्थक जिस समय अजनाला थाने पर चढ़ाई करने में लगे हुए थे, उस समय पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान मोहाली में निवेशकों को आकर्षित करने में लगे हुए थे। आखिर ऐसे माहौल में कौन पंजाब में निवेश करने को तैयार होगा?
यह शुभ संकेत नहीं कि कुछ राजनीतिक-सामाजिक संगठन खालिस्तान समर्थकों का अतिवादी गतिविधियों पर मौन रहना पसंद कर रहे हैं। इनमें से कुछ वे भी हैं, जिन्होंने अतीत में खालिस्तानी तत्त्वों को हवा दी थी। पंजाब में अराजकता का सहारा ले रहे तत्त्वों से जैसी सख्ती से निपटा जाना चाहिए, वैसी सख्ती नहीं दिखाई जा रही है।
सदन जी, पटना</p>
भ्रष्ट तंत्र
आज फिर संविधान समीक्षा करने की नौबत आ पड़ी है। भ्रष्टाचार चरम पर है। इन वर्षों में देश को अनेक अनचाही समस्याओं से झूझना पड़ रहा है। भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे नेताओं को देश की कोई चिंता नहीं है। जिस तरह दिल्ली की आप पार्टी के नेता और दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी के बाद ‘आप’ कार्यकर्ताओं ने हंगामा खड़ा किया, उससे लगता है कि वे अपने नेताओं को बचा रहे हैं।
पार्टी के दो नेता जेल में बंद हैं। देश में अधिकांश नेताओं के देशप्रेम और देशभक्ति की मिसाल दी जाती है। उनका सपना है कि देश विश्व में अव्वल दर्जे का देश बने। मगर ज्यादातर नेताओं की चाल विपरीत दिशा में है। देश की समस्याओं से जूझने और हर समय देश के विकास में लगे रहने वाले नेता विरले ही हैं।
कांतिलाल मांडोत, सूरत
अंतहीन सिलसिला
दक्षिणी इटली के समुद्र में रविवार को नाव डूबने से 12 बच्चों सहित कम से कम 60 प्रवासियों की मौत हो गई और दर्जनों अन्य के लापता होने की आशंका है। कैलाब्रिया क्षेत्र में तटीय शहर क्रोटोन के पास उतरने की कोशिश के दौरान जहाज टूट गया। बचे लोगों ने बताया कि नौका पर कम से कम 150 लोग सवार थे।
लगभग हर हफ्ते कहीं न कहीं इस तरह के हादसे हो जाते हैं क्योंकि आर्थिक तंगी एवं राजनीतिक अस्थिरता के कारण ये लोग बेहतर जिंदगी की तलाश में दक्षिण अमेरिका से उत्तर अमेरिका की तरफ और अफ्रीकी एवं एशियाई देशों से लाखों मजबूर लोग समुद्री मार्गों से यूरोप में घुसने का प्रयास करते हैं। बताते हैं कि सिर्फ 2022 के दौरान एक लाख पांच हजार के करीब शरणार्थियों ने अवैध रूप से यूरोप में प्रवेश किया।
इनमें से तेरह सौ अभागे निकले जो विभिन्न दुर्घटनाओं में कालकवलित हो गए। अवैध आप्रवासन का सिलसिला तब तक चलता रहेगा जब तक तीसरी दुनिया के गरीब देशों की आर्थिक उन्नति नहीं हो जाती, वहां जारी गृह युद्ध खत्म नहीं हो जाते। लगता नहीं कि राष्ट्रसंघ या अन्य दानवीर संस्थाएं अवैध आप्रवासियों के इस सैलाबों को रोकने में किसी तरह की कोई भूमिका निभा सकती हैं।
जंग बहादुर सिंह, गोलपहाड़ी, जमशेदपुर