अगर बात जिंदगी हो तो लोग खुद से ज्यादा दूसरों की जिंदगी पर टीका-टिप्पणी करना अधिक पसंद करते हैं। किसी ने कहा भी है कि ‘ढूंढ़ता रहा जिंदगी भर औरों की बुराइयों को मगर खुद को कभी देखा नहीं।’
जब दुनिया की बात करते हैं तो दुनिया एक बहुआयामी शब्द है, जिसकी अंतिम व्याख्या संभव ही नहीं है। ऐसा लगता है कि शायद कोई संबंध होगा, जिसे लोग दुनिया से बाहर रखना चाहेंगे, क्योंकि इसमें विश्व राष्ट्र राज्य शहर गांव यहां तक कि आपका परिवार आदि सब आ जाते हैं। जब लोग कहते हैं कि दुनिया खराब है तो वे यह मान चुके होते हैं कि वे खुद भी खराब हैं।
विडंबना यह है कि कोई मानने को तैयार कहां है। दरअसल, जिंदगी में दुनिया को खराब कहना और नकारात्मक विचारधारा का बने रहना सही नहीं है। अगर आशावादी नजरिए से देखें तो गांधी जी ने कहा था कि जो बदलाव आप दुनिया में देखना चाहते हैं, वह पहले स्वयं में करिए।
यह महज एक विचार नहीं, एक मंत्र है जिंदगी और दुनिया को बेहतर बनाने का, क्योंकि अगर लोग स्वयं को सुधारना चाहेंगे तो आपको यह दुनिया भी सुधरती दिखेगी। लोग अक्सर कहते हैं कि ‘जिंदगी दुनिया में जीना सिखाती है।’
अभिषेक सुमन, दिल्ली विवि।
भ्रष्टाचार के पुल
बिहार में भ्रष्टाचार चरम पर दिखता है। इस बात का अंदाजा कुछ समय पहले राज्य में बीस दिनों के अंतराल में दो बड़ी लागत के पुलों के धंसने से लगाया जा सकता है। पहले चार जून को गंगा नदी पर बने पुल के टूटने की खबर आई जो ठीक से बनकर पक भी नहीं पाया था। इस मामले की कथित लापरवाही की स्याही अभी सूखी भी नहीं थी कि किशनगंज में मेची नदी पर बने पुल के धंसने की खबर आ गई।
2,132 करोड़ की लागत से बनाए जा रहे चौरानबे किलोमीटर चाल लेन पर बने पुल का एक हिस्सा चालू होने से पहले धंसना निर्माण कार्य की गुणवत्ता पर सवाल उठाता है। चिंता की बात यह है कि इस तरह के घटिया निर्माण वाली सड़क पर जब आवागमन शुरू होगा तो यह किस तरह के हादसों को न्योता देगा?
सरकार को इस मामले में बगैर भेदभाव के कार्रवाई करना चाहिए, क्योंकि निर्माण के बाद इस मार्ग से गुजरने वाले लाखों-करोड़ों लोगों का भविष्य दांव पर होगा। अल्प समय में दो पुलों के कथित भ्रष्टाचार राज्य सरकार के विकास माडल की पोल खोलने के लिए पर्याप्त हैं। ऐसे विकास राज्य की जनता का भविष्य और उनकी जान दांव पर लगा रहे हैं।
अमृतलाल मारू ‘रवि’, इंदौर, मप्र।
पर्दे पर संवेदना
एक दौर में जानवरों पर फिल्में बनाई जाती थीं। वह भी बहुत कम। लेकिन वर्तमान में तो यह सब लगभग बंद ही हो गया। ‘हाथी मेरे साथी’ और ‘सफेद हाथी’ भी हाथी पर बनी थी, जिसमें इंसान ओर हाथी के बीच रिश्तों को दिखाया गया था। इन फिल्मों ने सफलता भी पाई थी। वर्तमान में भारत की ‘द एलिफेंट व्हिस्परर्स’, आस्कर 2023 में सर्वश्रेष्ठ वृत्तचित्र लघु फिल्म का पुरस्कार जीतकर इस श्रेणी में आस्कर जीतने वाली पहली भारतीय फिल्म बन गई है।
कार्तिकी गोंजाल्विस के निर्देशन और गुनीत मोंगा द्वारा निर्मित इस फिल्म में दो बुजुर्गों और एक अनाथ हाथी के बच्चे के बीच के ममत्व की कहानी को इतनी खूबसूरती से दर्शाया गया है कि फिल्म के खत्म होने तक लोगों की आंखों में आंसू होते हैं और होठों पर मुस्कान। इंसान और पशु-पक्षियों का भावनात्मक रिश्तों पर प्रेरणादायी फिल्मों का निर्माण नई पीढ़ी को एक नई दिशा देगा।
संजय वर्मा ‘दृष्टि’, मनावर, धार, मप्र।
कहीं बाढ़, कहीं सूखा
आज देश में कहीं बाढ़ और कहीं सुखाड़ की स्थिति बनी हुई है। धरती का तापमान बढ़ने से धरती की नमी समाप्त हो रही है और जल भी तेजी से वाष्पीकृत हो रहा है। जलवायु परिवर्तन की वजह से वर्षा अनियमित होती है। लगातार कम वर्षा और वर्षा का लगभग नहीं होना भी सूखे को जन्म देता है। लगातार वृक्षों का कटाव, वन क्षेत्र में कमी और भूमिगत जल दोहन की वजह भी सूखा को जन्म दे रही है।
सूखा की वजह से खाद्यान्न और चारा का उत्पादन कम हो रहा है। उत्पादन की कमी की वजह से महंगाई में वृद्धि होती है। देश के कई राज्यों में बाढ़ की स्थिति है, तो बिहार में सुखाड़ की समस्या है। सुखाड़ की वजह से उन राज्यों में अकाल की काली छाया मंडराने लगी है। सूखे से निपटने के लिए दुनियाभर के देशों को एक मंच पर आना होगा। वृक्षारोपण, जल संचय, फसल चक्र में बदलाव और कम पानी वाले फसलों की खेती को बढ़ावा देकर सूखे की समस्या से निपटा जा सकता है।
हिमांशु शेखर, केसपा, गया।
बढ़ती चिंता
भारत के एक राज्य में अदालत के निर्णय और राजनीति के चलते जातिगत आधार पर दो समुदायों के बीच चल रही लंबी हिंसक मुठभेड़ देश के लिए ही हानिप्रद सिद्ध हो रही है! विचारणीय यह भी है कि केंद्र और राज्य दोनों में भाजपा की सरकार होने के बावजूद भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले गृहमंत्री अमित शाह के कई बार बातचीत करने, बैठकें करने और निर्णय लेने के बावजूद वहां हिंसा रुकने का नाम नहीं ले रही है!
जबकि उच्च न्यायालय ने भी अपने पूर्व में दिए गए फैसले पर पुनर्विचार करने की सहमति दे दी है। मगर हिंसा बदस्तूर जारी है। और यह अधिक बड़े क्षेत्र में न फैलने पाए इसके लिए जरूरी है कि इसे तत्काल रोका जाए। आशंका है कि इस हिंसक घटनाक्रम में कुछ बाहरी शक्तियां और देश की अलगाववादी शक्तियां भी शामिल है। ऐसे में मणिपुर में तत्काल सेना को भेजकर स्थिति को काबू में किया जाना चाहिए!
विभूति बुपक्या, खाचरोद, मप्र।