हाल ही में आई आक्सफैम की रिपोर्ट बताती है कि देश में असमानता का स्तर बहुत अधिक है। इस रिपोर्ट के अनुसार देश के शीर्ष नौ अमीर लोगों की संपत्ति पूरे देश की संपत्ति का आधा अर्थात पचास फीसद है, जबकि 99 प्रतिशत जनसंख्या शेष आधे भाग की मालिक है। देश के वर्तमान हालात की यह तस्वीर चिंताजनक है। उदारीकरण के बाद से विश्वास दिलाया जाता रहा है कि इससे देश में असमानता के स्तर में कमी आएगी लेकिन अमीरों और गरीबों के बीच की खाई बढ़ती ही जा रही है। यह रिपोर्ट दर्शाती है कि देश तेजी से पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर है, जिसका अंतिम उद्देश्य केवल लाभ प्राप्त करना है। यदि विकास का यही क्रम रहा तो समावेशी विकास का सपना असंभव-सा हो जाएगा। भारत में आर्थिक सुधार लगभग रोजगारविहीन संवृद्धि के साथ हो रहा है, जो देश के बेहतर भविष्य के लिए कतई उचित नहीं है। लिहाजा, सरकार को मजबूत और प्रभावी कदम उठाने होंगे, जिनसे सबका साथ-सबका विकास धरातल पर चरितार्थ हो सके।
आशीष गुप्ता, ईशरापुर, हरदोई, उत्तर प्रदेश
लूट की शिक्षा: इन दिनों शिक्षा में निजीकरण का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है। जहां आएदिन निजी शिक्षण संस्थान खुलते जा रहे हैं वहीं सरकारी विश्वविद्यालय और महाविद्यालय भी ‘सेल्फ फाइनेंस’ के नाम पर नए कोर्स शुरू करते जा रहे हैं। नतीजतन, धीरे-धीरे सरकारी व गैर सरकारी सभी प्रकार के संस्थानों की फीस में तेजी से वृद्धि देखने को मिल रही है। विशेषकर निजी संस्थान तो फीस के मामले में बिल्कुल बेलगाम हो गए हैं। वे सत्र-दर-सत्र फीस में भारी वृद्धि करते रहते हैं। उसके बाद भी बच्चों से अलग-अलग फंड के नाम पर परीक्षा शुल्क, प्रेक्टिकल फीस, नामांकन शुल्क, धरोहर राशि आदि के नाम पर अलग-अलग तरीके से वसूली करते हैं। इसके कारण देश का एक बहुत बड़ा तबका धीरे-धीरे उच्च शिक्षा से दूर होता दिख रहा है। सरकार ने यदि समय रहते प्राइवेट कॉलेजों और ‘सेल्फ फाइनेंसिंग’ के रूप में चलाए जा रहे पाठ्यक्रमों की फीस पर अंकुश लगाने के लिए कायदे-कानून नहीं बनाए तो वह दिन दूर नहीं जब देश का गरीब व सामान्य वर्ग बेहतर शिक्षा के लिए दर-दर भटकता दिखाई देगा।
साथ ही आवश्यकता है कि अभिभावकों व बच्चों को संस्थानों द्वारा वसूली जा रही फीस में होती वृद्धि को लेकर बनाए गए कानून व उनके अधिकारों के बारे में जागरूक किया जाए। अक्सर बच्चे व अभिभावक अपने अधिकारों की जानकारी के अभाव में कोई कार्रवाई नहीं कर पाते। किसी संस्थान में यदि कोई बच्चा शुल्क वृद्धि के खिलाफ आवाज उठा भी देता है तो भविष्य बर्बाद कर देने का डर दिखा कर उसकी आवाज को दबा दिया जाता है। यदि सरकार ने तुरंत शिक्षा के निजीकरण पर अंकुश लगाने के लिए सख्त नियम-कानून नहीं बनाए तो शिक्षित भारत का सपना खतरे में पड़ सकता है।
शक्ति प्रताप सिंह, आशियाना, लखनऊ</strong>
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