हमने सत्तापक्ष और विपक्ष में नोक-झोंक बहुत सुनी, पढ़ी और टीवी चैनलों के जरिए देखी भी है। पर अफसोस की बात है कि सत्ता पक्ष में ही स्वामी जैसे वरिष्ठ सांसद सरकार में बैठे लोगों से कह रहे हैं कि ‘मैंने अनुशासन तोड़ा तो खून-खराबा हो जाएगा’। स्वामी आखिर किसे धमका रहे हैं? इससे जनता में क्या संदेश जाएगा जो पहले ही राजनीतिकों की भली-बुरी आदतों और अमर्यादित बयानों से वाकिफ है? पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयीजी के साथ ही अन्य राजनीतिक दल भी मान चुके हैं कि राजनीति का अपराधीकरण बढ़ता जा रहा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार में ‘टैलेंट’ की कमी महसूस कर चुके हैं। आम जनता भी मानती है कि राजनीति में अच्छे लोग जाना पसंद नहीं करते। गांव के छोटे से चुनाव से लेकर आम चुनाव तक में शराब बांटने, मारपीट, खूनी संघर्ष, मतदान बूथ पर कब्जा आदि अनैतिक कामों के बारे में हमेशा पढ़ने-सुनने को मिलता ही रहता है। स्वामी जैसे देश के जिम्मेदार लोगों का ‘खून-खराबा’ जैसे शब्दों का उपयोग सार्वजनिक रूप से करना आज शोचनीय है।

शकुंतला महेश नेनावा, गिरधर नगर, इंदौर</strong>