जिस रफ्तार से महिलाओं में शैक्षणिक चेतना व्याप्त हो रही है, उसके आधार पर निकट भविष्य में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की कार्यक्षमता को वरीयता दी जाने लगेगी। यह जरूर है कि आज भी ग्राम प्रधान देश में दूरस्थ इलाकों में उच्च एवं तकनीकी शिक्षा का अधिक प्रसार नहीं हुआ है। दूरस्थ अंचलों में इतनी भी सुविधाएं नहीं है कि आधारभूत आवश्यकताओं की आपूर्ति की जा सके। तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद महिलाओं में शिक्षा के प्रति अतिरिक्त रुझान का परिचय मिलता है। निश्चित ही अब वह दौर नहीं रहा जब महिलाओं को प्रताड़ित कर उसे भोग्या के समकक्ष माना जाता रहा था। आज भी नियोक्ता वर्ग पुरुषों की अपेक्षा महिला को काम के प्रति अधिक संजीदा पाता है।
यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि पुरुषों का मनोमस्तिष्क बेलगाम विचरण करता है। इनकी तुलना में महिलाएं अनावश्यक विषयों पर ध्यान केंद्रित नहीं करतीं। अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित भाव लिए महिलाएं ही समाज और राष्ट्र के उत्थान की दिशा सुनिश्चित करती हैं। जैसे-जैसे महिलाएं रोजगार की दृष्टि से आत्मनिर्भर होती जा रही है, वैसे-वैसे सामाजिक जन-जीवन में सकारात्मक बदलाव की स्थिति भी दिखाई देती है। जिस आधार पर यह कहा जा सकता है कि आने वाले दौर में महिलाओं की स्थिति और भी विशिष्ट मुकाम तक पहुंच सकेगी। यों भी अनर्गल प्रलाप और व्यर्थ के संताप से महिलाएं कोसों दूर रहती हैं।
यह तब जब महिलाएं घर-परिवार की जिम्मेदारी का भी निर्वहन बखूबी करती है। सामाजिक दृष्टि से महिलाओं की भूमिका बहुआयामी होती है। अब वह समय नहीं रहा जब महिलाएं केवल घरेलू कार्य के लिए कुशल मानी जाती थी। आज किसी भी क्षेत्र में महिलाओं की उपयोगिता को अत्यंत महत्त्वपूर्ण माना जाता है। एक प्रकार से महिलाएं कर्तव्यपरायणता की प्रतिमूर्ति होती हैं। पुरुष प्रधान समाज में अपनी जगह बनाते हुए जिस रफ्तार से महिलाएं विकास की दिशा में आगे बढ़ रही है, उसे और अधिक प्रोत्साहित किए जाने की नितांत आवश्यकता है।
विगत दो-तीन दशकों से देश-प्रदेश में तकनीकी शिक्षा का व्यापक विस्तार हुआ है। पुरुषों की अपेक्षा तुलनात्मक रूप से तकनीकी शिक्षा प्राप्त करने में महिलाएं अग्रणी रही हैं। आशा की जानी चाहिए कि शासन और सामाजिक स्तर पर महिलाओं के लिए और अधिक रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए जाएंगे, ताकि महिलाओं की शक्ति और काबिलियत को भरपूर मौका मिल सकेगा। यह निश्चित है कि जितनी गंभीरता और समर्पित कार्यशैली का परिचय महिला वर्ग द्वारा दिया जाता है, उनकी तुलना में पुरुष वर्ग से इतनी अपेक्षा नहीं की जाती।
कुल मिलाकर नए भारत के निर्माण में देश और समाज के विकास की दशा और दिशा को नए आयाम देने के लिए महिलाओं के लिए और अधिक अवसर उपलब्ध कराए जाने चाहिए।
वर्तमान दौर में समय नई करवटें ले रहा है। पुरुष प्रधान समाज की व्यवस्था में आंशिक ही सही, लेकिन परिवर्तन की स्थिति दिखाई देती है। शासन स्तर पर महिलाओं को पुरुष के समकक्ष विभिन्न क्षेत्रों में माना गया है। हमें आशा करनी चाहिए कि निरंतर महिलाओं की जागृति की दिशा में शासन एवं समाज स्तर पर दूरगामी कदम उठाए जाते रहेंगे। ऐसा होने पर ही हम द्रुतगति से विकास पथ पर अग्रसर रह सकेंगे।
’राजेंद्र बज, हाटपीपल्या, देवास मप्र