शहरों में कोरोना की संक्रमण दर घटने का मतलब यह नहीं है कि कोरोना अपने शिखर से उतर गया है, क्योंकि अब यह गांवों में तेजी से पैर पसार रहा है। जागरूकता का अभाव, न के बराबर चिकित्सा सुविधाएं, प्रशासन से दूरी, टोटकों और अंधविश्वासों पर भरोसे के कारण गांवों की सही स्थिति हमारे सामने नहीं है। मगर नदियों में बहती लाशों से विभीषिका का अंदाजा जरूर होता है।

गौरतलब है कि कोविड की पहली लहर में गावों ने अर्थव्यवस्था और घर लौटे प्रवासियों को संभालने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अब हमारी जिम्मेदारी है कि गांवों को संभालें। जिस तरह शहरों में रात दिन एक करके अतिरिक्त चिकित्सा सुविधाएं बनाई गईं, वैसा ही अब गांव-देहातों में करना होगा। आंगनबाड़ी, आशा कार्यकर्ताओं, स्वयंसेवी संस्थाओं और चिकित्साकर्मियों को गांव-गांव जाकर बचाव, जांच और इलाज के काम करने होंगे। गंभीर मरीजों को बड़े अस्पतालों तक लाने के लिए एंबुलेंसों का जाल बुनना होगा। गांवों के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों तक ऑक्सीजन और जीवन रक्षक दवाइयां पहुंचानी होंगी। संपूर्ण बचाव के लिए गांवों सहित देश के कोने-कोने से महामारी का उन्मूलन जरूरी है।
’बृजेश माथुर, बृज विहार, गाजियाबाद, उप्र