पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को यूं ही नहीं भुलाया जा सकता। लेकिन गिरती राजनीति और संवेदनहीन नेताओं के द्वारा महान विभूतियों को भी सीमित दायरे में करने की प्रवृति शायद राजीव गांधी को भुला देना चाहती है। उनकी पुण्यतिथि पर कई अखबार और ई-पेपर खंगाले। कहीं कोई आलेख नहीं, कोई टिप्पणी नहीं। मन खिन्न हो गया अखबारों के पन्ने उलट कर। क्या भारत में राजीव गांधी के पहले कोई कंप्यूटर के प्रयोग के बारे में सोचा था?

राजीव गांधी द्वारा स्थापित नवोदय विद्यालय के बारे में इससे पहले किसी ने कोई कल्पना थी? किसी ने यह बोलने की हिम्मत नहीं जुटाई थी कि केंद्र से गांव की ओर चला एक रुपया गांव तक आते-आते पच्चीस पैसे ही रह जाता है। यह किसी नेता की दूरदृष्टि और बेबाकी ही है। जिस बोफर्स पर विपक्षी पार्टियों ने हो-हल्ला मचाया था, आगे उस जांच का क्या हुआ? लोकतंत्र में किसी नेता का महिमामंडित किया जाना उचित नहीं माना जाता। लेकिन किसी की कार्यशैली, उनका इरादा और वतनपरस्ती का इतना तो मोल मिलना ही चाहिए कि कम से कम गाहे-बगाहे उन्हें याद कर लिया जाए। यह राजनीति की विद्रूपता है कि सत्ता पर काबिज दल विपक्ष की अहमियत नहीं समझते। राजीव गांधी की हत्या उस समय की दुनिया की सबसे हतप्रभ करने वाली घटनाओं में से एक थी। हम उस घटना को भूल चुके हैं, लेकिन राजीव गांधी के व्यक्तित्व को नहीं भुलाया जा सकता।

’अशोक कुमार, तेघड़ा, बेगूसराय