तंबाकू को लेकर समाज की सहजता ने आज वहां तक पहुंचा दिया है, जहां इसकी लत ने बड़ा दुर्व्यसन का रूप धारण कर लिया है। आसपास बहुत सारे लोग मुंह में गुटखा या दूसरे तंबाकू उत्पाद भरे मिल जाएंगे। जबकि तथ्य यह है कि भोजन लार से पचता है, तंबाकू का प्रभाव रक्त पर पड़ता है। इसके असर में आगे चल कर मुख से बदबू आने लगती है। इसके परिणामस्वरूप आंख की रोशनी कम हो जाना, क्षयरोग, हृदय रोग, नपुसंकता, पागलपन, मुंह सड़ना, कैंसर जैसी घातक बीमारियां आ सकती हैं। साथ ही किसी भी तंबाकू मांगने की आदत पड़ जाती है। यह सब जानते हुए भी लोग इसके दुश्चक्र में फंसे रहते हैं।

गौरतलब है कि तंबाकू को पुर्तगाली लोग यहां लेकर आए थे। सर्वप्रथम कोलंबस ने अमेरिका में वहां के निवासियों को तंबाकू पीते देखा था। संसार का कोई भी पशु-पक्षी इसके पत्ते नहीं खाता, मुंह तक नहीं लगाता, केवल एक प्रकार का कीड़ा है, जो तंबाकू के पत्ते पर पैदा होता है और इसके पत्तों को खाता है। वैज्ञानिकों ने तंबाकू में छह प्रकार के विषों का पता लगाया है- निकोटिन, प्रुसिक एसिड, पाइरीडीन, कोलीडीन, एनोमिया, कार्बनमोनोआॅक्साइड। इसके अलावा और भी विष निकलने की संभावना है। तंबाकू की खेती की वजह से अनाज उत्पादन भी प्रभावित हुआ है। पशुओं के लिए चारे का संकट दिनोंदिन गंभीर होता जा रहा है। चारे के उत्पादन में कमी आने से पशुओं पर इसका प्रभाव देखा गया है। जैसे दूध कम होना, बाजार से महंगा चारा पशुओं को पर्याप्त मात्रा में न खिला पाना आदि कई कारण रहे हैं।

तंबाकू का सेवन करने वालों का मानना होता है कि आम उपयोग के अलावा शौच जाने के पहले, भोजन करने के बाद, रात को जागते समय, पेट की गैस को कम करने के लिए यह दवा का काम करता है। जबकि यह सिर्फ लत और शरीर की इस पर निर्भरता का मामला है। सच यह है कि धूम्रपान का धुआं पर्यावरण और इंसान की सेहत बिगाड़ रहा है। अगर व्यक्ति अपनी, अपनों की और संसार की खुशहाल जिंदगी चाहता है तो उसे तत्काल तंबाकू का सेवन बंद कर देना चाहिए। दृढ़ इच्छाशक्ति के बिना इसे छोड़ा नहीं जा सकता है। अपनी और अपने परिवार की खुशहाली के लिए तंबाकू और धूम्रपान से दूर रहने का प्रयत्न करना चाहिए।
’संजय वर्मा ‘दृष्टि’, धार, मप्र