‘यूपी में का बा’ गाना चर्चा में है। जहां एक ओर समाजवादी पार्टी ने अपने कार्यालय में इस गाने को बजाया, वहीं दूसरी ओर भाजपा के लोग भी इसको तंज के रूप में लेकर, ‘यूपी में सब बा’ पर पहुंच गए। वैश्विक महामारी ने भले चुनाव प्रचार पर रोक लगा दी हो, लेकिन वर्चुअल माध्यम से भी तंज और तकरार जारी है। बिहार की एक लड़की ने गाना क्या गा दिया, मानो पूरा भाजपा खेमा जवाब देने पर उतर आया।

लोग कहा करते थे, बड़े लोग छोटे के मुंह नहीं लगते, बड़प्पन दिखाते हैं, कला को प्रोत्साहित करते हैं। लेकिन, इतनी बड़ी पार्टी होने के बावजूद इसके दिग्गज और अनुभवी नेता भी मानो दो-दो हाथ करने आ गए। अगर वाकई यूपी में सब है, तो क्या इसको दिखाने की जरूरत है, महिमामंडन करने की आवश्यकता है। यह तो वही बात हो गई, एक पिता अपने बच्चे को प्रोत्साहित करने के बजाय उससे प्रतिस्पर्धा कर रहा हो।

सभी राजनीतिक दलों को गीतकारों, कवियों, लेखकों की आलोचना सुनने की ताकत रखनी चाहिए। गौरतलब है कि आजकल लोकतंत्र की मजबूती आलोचक से नहीं, बल्कि उस पर कार्यवाही करने से, सफाई देने से बढ़ रही है!