पूर्णबंदी से कोरोना पर काबू पाने की बात जरूर की जाती है, लेकिन साथ ही इससे एक तो देश कि आर्थिक स्थिति खराब होगी, दूसरा लोगों का कारोबार, उद्योग-धंधे बर्बाद होंगे और तीसरे, बेरोजगारी और बढ़ेगी। कोरोना की दूसरी लहर के रफ्तार पकड़ने की खबरों के बीच फिर से देश में कहीं-कहीं पूर्णबंदी की आवाजें उठ रही हैं। लेकिन क्या कोरोना को हराने के लिए फिर से पूर्णबंदी जरूरी है? जब सुरक्षित दूरी बरतने और मास्क से कोरोना को हराया जा सकता है तो फिर पूर्णबंदी की क्या जरूरत? जो लोग सरकार, प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग के कोरोना को लेकर दिए गए निदेर्शों का पालन नहीं कर रहे, उन पर कार्रवाई की जा सकती है। देश को भारी आर्थिक मंदी और बेरोजगार की तबाही से बचाना है तो हम सबको अब कोरोना के साथ ही सावधानी बरतते हुए चलना होगा। पूर्णबंदी में राहत का मतलब यह नहीं समझना चाहिए कि कोरोना खत्म हो गया।
करोना से पहले भी दुनिया में बहुत-सी बीमारियों ने महामारी का भयंकर रूप धारण किया था। इनके कारण भारी तादाद में लोगों की जान भी गई थी। इन महामारियों में मुख्य रूप से हैजा, प्लेग, चिकनपॉक्स, इन्फ्लूएंजा आदि हैं। इन महामारियों से दुनिया ने सबक लिया होता और इनके पैदा होने वाली अपनी भूल सुधारा होता तो आज की आफत नहीं आती। लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि इससे पहले भी महामारियों ने इसी तरह हर बड़े पैमाने पर प्रभावित किया है, लेकिन दुनिया ने सुझबूझ से हर महामारी से निपट कर तरक्की की राह पकड़ी है।
’राजेश कुमार चौहान, जालंधर, पंजाब</p>