हर वर्ष गर्मी के दिनों में देश के कुछ वन संपदा के धनी राज्यों में जंगलों में भयंकर आग लगने की खबरें पढ़ने, सुनने और देखने को मिलती हैं। आग किसी भी कारण से जंगलों में लगती है, यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। देश की हरियाली और वन संपदा की चर्चा विदेशों तक मशहूर है। इस कारण गर्मी या हर वर्ष ही इसकी प्राकृतिक संपदा का नजारा लेने के लिए देश के कोने-कोने के साथ-साथ विदेशों से भी बहुत से पर्यटक आते हैं। खासतौर पर गर्मी के दिनों में तो यहां पर देशी-विदेशी पर्यटकों का तांता लगा रहता है। लेकिन हिमाचल के कुछ लोग गर्मी के दिनों में बेकार की घास-फूस को जलाने के लिए जंगलों या खेतों में आग लगा देते हैं, जिससे उसी फालतू की घास-फूस के साथ ही कई सौ वृक्ष भी आग की बलि चढ़ जाते हैं।
यह प्रकृति से खिलवाड़ है और प्रदेश के लिए हरी-भरी वादियों के लिए अच्छे संकेत नहीं है। लोगों को चाहिए कि अगर वे खेतों से फालतू की घास-फूस को जलाना चाहते है तो इस बात का ध्यान रखें कि यह आग खेतों के साथ लगते जंगलों में न फैले। इससे एक तो वन संपदा नष्ट होती है, दूसरी कई जंगली जीव-जंतु या फिर पक्षी जल के नष्ट हो जाते हैं। जंगलों की आग थोड़ी हो या ज्यादा, वह जंगली जीवों को भयंकर नुकसान पहुंचाती है। उतराखंड हो या हिमाचल या फिर जम्मू-कश्मीर, तीनों ही देवभूमि के नाम से भी जाने जाते है, फिर यहां के लोग क्योंं जंगलों को आग लगा कर जीव-जंतु की हत्या का कारण बन जाते हैं?
इस आग के चपेट मे कई पशु-पक्षी आकर अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं। जब हरे-भरे जंगल नष्ट हो जाते हैं तो कई हिंसक जंगली जानवर रिहायशी इलाकों में आ जाने की संभावनाए बढ़ जाती हैं जो किसी के लिए भी बड़ा खतरा बन सकते हैं। हिमाचल की हरी-भरी वादियों को किसी भी हाल में नष्ट नहीं करना है, बल्कि इसे संभाल कर रखना है, क्योंकि यही वन संपदा हमारे हिमाचल को प्रकृति की तरफ से मिला अमूल्य उपहार है।
’राजेश कुमार चौहान, हमीरपुर, हिप्र