कोरोना संक्रमण से फैली महामारी में आक्सीजन की किल्लत को देखते हुए हम सभी को एक सबक तो जरूर लेना होगा कि अब हमें वृक्षारोपण पर बहुत ध्यान देना होगा। जिन पेड़-पौधों से आॅक्सीजन मिलती हो, उनके संरक्षण के लिए कारगर कदम उठाने की आवश्यकता है। कोरोना महामारी से जितनी जानें नहीं गई हैं, उससे ज्यादा आॅक्सीजन की कमी से लोगों की जिंदगी दांव पर लगी। हमारे यहां वातावरण में आसपास हरा-भरा करने के लिए लाखों-करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा दिए जाते है, पर नतीजा ढाक के तीन पात ही नजर आता है।

इस सबके नतीजे में आने वाले वक्त की जो तस्वीर कल्पना में आती है, वह सिहरा देती है। इस नाते जरूरी है कि सभी नागरिक दो-दो पेड़ लगाने का संकल्प लें। जन्मदिन और शादी की सलगिरहों पर एक दूसरे को पेड़-पौधों को लगाने का संकल्पित उपहार दे। प्रशासन को सभी राज्यो में जंगलों के अच्छे विकास के लिए सकारात्मक रणनीतियों को तैयार करना होगा। साथ ही भविष्य में जल की भी महत्ता को गंभीरता से समझना होगा। गर्मी बढ़ने के साथ-साथ कई जगहों पर पानी की भी समस्याओं से जूझना होगा। इसलिए जल संरक्षण के ठोस उपाय अपनाए जाएं। कहीं लोग पानी की बर्बादी को मूकदर्शक की तरह निहारते रहते हैं, कहीं टोटियों में नल बंद करने के समुचित प्रबंध नहीं कर पाते। यह लापरवाही कहां लेकर जाएगी?

कहते हैं, जल है तो जीवन है। अगर अब भी हम इनके प्रति जागरूक नहीं हुए तो वह दिन दूर नहीं है, जब आज की तरह हम आॅक्सीजन के साथ-साथ कई दूसरी जीवनरक्षक चीजों के लिए तरस रहे होंगे। कहीं हमें पीने के पानी के लिए भी न तरसना पड़े। इसलिए समय रहते जितने भी जल-भंडार हैं, उनका सदुपयोग जरूरी है। देश में आॅक्सीजन से मची हाहाकार से अब हमें प्रदेश और देश को फिर से हरा-भरा बनाने के लिए संकल्पित होना होगा। अवैध कटाई और जंगलों के संरक्षण पर चिंतन-मनन करना होगा। तभी मानव जीवन सकारात्मक और सफल होगा। क्या सरकारें इन पहलुओं पर कोई ठोस रणनीति बनाएंगी? क्या हम सभी पेड़-पौधों और जल की महत्ता को समझेंगे? सामाजिक जीवन मे सिर्फ सरकार से ही उम्मीदें नहीं कर सकते। हमें भी सरकार के साथ सहयोग करना होगा। सामंजस्य बिठाना होगा। तभी हम इस खुले आसमान में राहतभरी सांस ले सकते हैं।

’योगेश जोशी, बड़वाह, मप्र