लोग अवसाद से जिंदगी बेसमय गंवा रहे हैं। कोई बेरोजगारी तो कोई व्यापार न चलने से और किसी के घरेलू कारण हैं। मनुष्य ने यह स्थितियां खुद बनाई हैं। आज व्यक्ति ने अपने खर्चे बहुत बढ़ा कर रखे हुए हैं। जरूरी है इन खर्चों की पूर्ति के लिए आय भी हो। लेकिन पिछले कुछ समय से रोजगार के हालात ठीक नहीं हैं।

हालांकि काम करने वाले खोज कर काम कर ही रहे हैं। फिर भी सच यह है कि हालात जटिल होते जा रहे हैं। कम आमदनी और खर्च ज्यादा होना आज एक बड़ी समस्या बन चुका है। आत्महत्या के एक कारणों में एक फिजूलखर्ची भी है। जब ज्यादा पैसा आया, तो उसे बुरे कामों में उड़ा दिया और अब पैसा नहीं तो रोना। कई ऐसे लोग हैं तो कर्ज लेते हैं और चुकाने की नीयत नहीं रखते। ऐसे ही लोग अंत में आत्महत्या का रास्ता चुनते हैं। बुद्धि-विवेक से चलने वाला आदमी कभी भी अपनी जिंदगी बेसमय नहीं गंवाता। वह इज्जत से जीता है और अपना समय आने पर इज्जत से ही मरता है।
’दिलीप गुप्ता, बरेली, उप्र