हाल ही में किए गए कई सर्वेक्षणों के आंकड़े बताते हैं कि कोविड-19 महामारी के दौरान आर्थिक असमानताएं काफी बढ़ी हैं। अमीर और अमीर होते गए, जबकि गरीब और भी गरीब। आंकड़े देश के शीर्ष आमदनी वाले लोगों की संपत्ति में तीव्र वृद्धि की गवाही देते हैं। दूसरी ओर गरीबी रेखा से नीचे जीवन-बसर करने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है।

दूसरी बड़ी पूर्णबंदी के कारण दिहाड़ी श्रमिकों के दो वक्त की रोटी भी मय्यसर नहीं। हालांकि सरकारें पीडीएस सहित कई अन्य माध्यमों से इस क्षतिपूर्ति का प्रयास कर रही हैं, लेकिन इसकी अपनी सीमाएं हैं। मजदूर किसान से लेकर निम्न मध्यवर्ग की एक बड़ी आबादी दिन-प्रतिदिन अपने उज्ज्वल भविष्य के सपनों को दूर होते देख रही है। ऐसा इसलिए कि सरकार के समुचित प्रयासों के अभाव में शिक्षा प्राप्ति के अवसर में जाने-अनजाने एक विभाजन रेखा खींच दी गई है। इन दिनों नियमित चलने वाले विद्यालय बंद पड़े हैं या वे ऑनलाइन कक्षाएं संचालित कर रहे हैं। ऑनलाइन कक्षाओं के माध्यम से उच्च आय वर्ग के बच्चे अपनी अध्ययन प्रक्रिया को जारी रख पाने में सफल हैं, लेकिन निम्न आय वर्ग के बच्चों को बेहद मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।

एएसईआर की रिपोर्ट की मानें तो सत्ताईस फीसद से साठ फीसद तक बच्चे ऑनलाइन कक्षा से जुड़ पाने में असमर्थ हैं। इसके कई कारण हैं। मसलन, आवश्यक उपकरणों की कमी, डाटा पैक खरीद पाने की असमर्थता आदि। ऐसे में सरकार को चाहिए कि एक सर्वसमावेशी कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार करे, जिससे सभी वर्ग के बच्चों तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की पहुंच संभव हो सके। अगर ऐसा हो पाया तो वे भविष्य में अवसर प्राप्ति के लिए होने वाली प्रतियोगिता का एक नाममात्र का प्रतिभागी न बन कर विजेता की हैसियत से उसमें हिस्सा लेंगे।
रविराज, गया, बिहार</em>