ममता बनर्जी ने एक बार फिर तीसरी बार बंगाल फतह कर लिया है और उन्हें वहां 292 में से 216 सीटें मिली हैं। अब वहां भाजपा मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में है, जिसे 77 सीटें मिली हैं। ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस का भविष्य तो एक तरह से पहले ही तय था। कारण जनता मन बना चुकी थी। लेकिन आज वहां से वाम मोर्चा और कांग्रेस पूरी तरह साफ हो गए हैं।
हमें इस बात का आश्चर्य है कि इतने लंबे तक बंगाल में राज करने वाली पार्टियां कम्युनिस्ट और कांग्रेस का बंगाल से साफ हो गए। यह एक नया संदेश दे रहा है। यों 2016 में संयुक्त रूप से चुनाव लड़ कर कांग्रेस ने 44 और वाममोर्चे ने 32 यानी संयुक्त रूप से 76 सीट हासिल की थी। वोट प्रतिशत भी 38 था। वहीं 2019 में कांग्रेस को वहां लोकसभा में दो सीटें मिली थीं, पर कम्युनिस्ट पार्टियां साफ हो गई थीं। लेकिन इसके पहले एक समय 1996 में दोनों ने 294 में से 280 सीटें जीती थीं। तब वोट प्रतिशत 86.3 था। बस यही समय इन दोनों के लिए काफी अच्छा रहा था। उसके बाद लगातार दोनों के लिए हालात खराब होते चले गए।
एक और कांग्रेस देश भर की सबसे बड़ी पार्टी है, जिसने अपनी नेतृत्व क्षमता के कारण आजादी के बाद एक लंबे समय तक देश पर राज किया और कम्युनिस्ट पार्टियां भी बंगाल के लिए एक बड़ी राजनीतिक शक्ति रही हैं। मगर दुख की बात है कि आज दोनों ही दल बंगाल में खत्म हो चुके हैं। जहां कांग्रेस आज कुछ ही राज्यों में बची है, जैसे राजस्थान, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र आदि, उसी तरह से आज केरल में सत्ता में कम्युनिस्ट रह गए हैं।
कांग्रेस जो एक समय सबसे बड़ी पार्टी रही है, देश में वह धीरे-धीरे हर जगह घटती जा रही है और उसकी नेतृत्व क्षमता भी पूरी तरह से खत्म होती जा रही है। हर जगह वह चुनाव तो लड़ती है, मगर अपनी नेतृत्व क्षमता की कमजोरी के कारण क्षेत्रीय दलों के साथ समझौता करती है। सलाह यह है कि कांग्रेस पार्टी चुनाव लड़े तो अपने दम पर लड़े। लोकतंत्र में एक मजबूत विपक्ष का होना बेहद जरूरी है।
’मनमोहन राजावत ‘राज’, शाजापुर, मप्र