अनुभव बताता है कि जीवन में कोई भी काम हमें अपने बलबूते करना पड़ता है और तभी इच्छित सफलता मिल पती है। कुछ ऐसा ही हाल चाहे परिवार हो, समाज हो, संगठन हो या देश, सब पर लागू होती है। कहने का आशय देश की सीमा पर चीन द्वारा आए दिन होने वाली सैनिक झड़पों से है। जहां तक अंतरराष्ट्रीय संबंधों की बात है, अखबारों और मीडिया के दूसरे माध्यमों से भी निरंतर कुछ न कुछ भड़काऊ और कूटनीतिक खबरें अक्सर आती ही रहती हैं। कोई इस देश के साथ खड़ा है तो कोई उस देश के साथ खड़े होने के सुर में सुर मिलाता दिखाई देता है। लेकिन सच्चाई कुछ और ही होती है।

रूस-यूक्रेन युद्ध इस बात का जीता-जागता उदाहरण हो सकता है। चीन की नीतियां तो बहुत शुरुआती दिनों से विस्तारवादी रही हैं, जिसका उदाहरण तिब्बत हो सकता है। शासन व्यवस्था को लेकर भी दोनों देशों में भिन्नता है। चीन का अपने पड़ोसी देशों को लेकर प्राय: कुछ न कुछ चलता ही रहता है। ज्यादातर चीन को लेकर तनाव की खबरें पढ़ने को मिलती रहती है, कभी ताइवान कभी जापान तो कभी कोई अन्य देश। जैसे व्यक्तिगत जीवन में हमें किसी का अपमान नहीं करना चाहिए। ठीक यही सोच हमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक देश को दूसरे देश के प्रति रखना चाहिए।

इस संबंध में हम लोगों को भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 में हुए युद्ध को ध्यान में रखना चाहिए, जब पाकिस्तान के तत्कालीन शासक अयूब खान भारत के उस समय के प्रधानमंत्री दिवंगत लालबहादुर शास्त्री को बहुत ही शांत और कमजोर समझ कर आक्रमण करके अपमानित करना चाहा था। लेकिन उस समय हमारी सेना पाकिस्तान के अंदर लाहौर तक पहुंच गई थी। युद्ध के बाद हमने अपना ईमानदार और शांतिप्रिय नेता खो दिया, जिसने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दिया था।

गलवान घाटी की झड़प के बाद चीन और भारत के बीच लगातार वार्ता चल रही है। इसके बाद भी तवांग में चीनी सेना का अतिक्रमण होना कोई शुभ संकेत नहीं है। इसमें हमारे देश के रणनीतिकारों को किसी भी गफलत में नहीं रहना चाहिए और समय आने पर मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए। यह बात निर्विवाद रूप से सत्य है कि हमारे देश से अलग होकर पाकिस्तान हमारा शत्रु नहीं, बल्कि भाई है, जबकि चीन हमारा दुश्मन नंबर एक है।

कोई भी अंतरराष्ट्रीय महाशक्ति कूटनीतिक स्तर पर भले ही युद्ध-सी की स्थिति में हमारा साथ देने को कहे, लेकिन सबसे पहले हमें अपनी सेना की मजबूती को लेकर हमेशा चौकस रहना है और किसी भी हालत में चीन की बातों पर विश्वास नहीं करना है। हम लोगों ने यह भी सुना है कि बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है। चीन के साथ यह बात शत-प्रतिशत लागू होती है। कहीं न कहीं चीन को लगता है कि वह महाशक्ति बन गया है और उसका मुकाबला केवल अमेरिका से है। उसकी यही सोच उसे अहंकार की तरफ ले जाती है और इसी के चलते छोटे-छोटे देशों से अनबन चलती रहती है।
राजेंद्र प्रसाद बारी, इंदिरा नगर, लखनऊ</strong>