देश के विकास में जातिवाद बहुत बड़ी बाधा है। देश में जातिवाद को समाप्त करने के लिए अनगिनत प्रयास हुए हैं, लेकिन हमारे देश में व्यक्ति को छोड़ो, महापुरुषों को भी जातियों में बांट दिया गया है। पिछले काफी समय से एक महापुरुष की जाति को लेकर हिंदू समाज की दो जातियों में विवाद हो रहा है। गुर्जर समाज मिहिर भोज को गुर्जर बताते हैं, तो ठाकुर समाज उनको अपनी जाति का बताते हैं।
यह विवाद चर्चा में तब आया जब दादरी में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ राजा मिहिर भोज की मूर्ति का अनावरण करने आए। अनावरण करने से पहले मूर्ति से गुर्जर शब्द हटा दिया गया, जिस पर गुर्जर समाज ने नाराजगी जताई। हालांकि बाद में मूर्ति पर गुर्जर लिख दिया गया। नाराजगी के कारण गुर्जर समाज ने महापंचायत का भी एलान किया है।
राजा मिहिर भोज जैसे महान व्यक्तित्व को एक जाति से जोड़ना ठीक नहीं, क्योंकि इन्होंने सर्वसमाज का गौरव बढ़ाया है, न कि एक समाज का। यह कोई पहला मौका नहीं है, जब महापुरुषों को किसी जाति से जोड़ा जा रहा हो। महाराणा प्रताप, महारानी पद्मावती, भगवान परशुराम, महर्षि वाल्मीकि, संविधान निर्माता भीमराव आंबेडकर आदि महापुरुषों पर कहीं न कहीं एक जाति अधिकार दिखाती है।
इन सबने समाज और मानवता के लिए, धर्म तथा राष्ट्र के लिए ही काम किया है, फिर क्यों इनको एक जाति का बना दिया है। महापुरुष, खिलाड़ी और सैनिकों की कोई जाति नहीं होती। ये केवल देश और सर्वसमाज के होते हैं। इसलिए महापुरुषों को एक जाति नहीं, देश में रहने वाली प्रत्येक जाति को सम्मान देना चाहिए, जिससे महापुरुषों की जाति पर होने वाले विवाद स्वत: समाप्त हो जाएंगे।
’ललित शंकर, गाजियाबाद