हर साल 29 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया जाता है। यह दिवस बाघ संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है। बाघ को एक लुप्तप्राय प्रजाति माना जाता है। उन्हें ‘अम्ब्रेला स्पीशीज’ भी कहा जाता है, क्योंकि उनका संरक्षण उसी पर्यावास में कई अन्य प्रजातियों को भी संरक्षित करता है। मानव अतिक्रमण और खराब नियोजित विकास परियोजनाओं के कारण बाघों के आवास घटने के बावजूद जहां एक तरफ भारत अपने बाघों की संख्या में वृद्धि करने के लिए तैयार है, वहीं बाघों और उनके साथ रहने वाले लोगों के बीच संघर्षों की आवृत्ति में वृद्धि हुई है। बाघों के प्रति इस तरह की सार्वजनिक दुश्मनी को रोकने या कम करने के लिए मानव-बाघ संघर्षों पर अधिक गंभीर और ठोस ध्यान देना अनिवार्य है।
आजकल बाघों की आबादी के लिए मुख्य खतरा उनके प्राकृतिक निवास स्थान का नुकसान है। विश्व भर के बाघों ने अपने प्राकृतिक निवास स्थान का लगभग 93 फीसद हिस्सा खो दिया है। इन निवास स्थानों को ज्यादातर मानव गतिविधियों द्वारा नष्ट किया गया है। बाघों के प्राकृतिक निवास स्थान और शिकार स्थान छोटे होने के कारण कई बार बाघ पालतू पशुओं को अपना शिकार बना लेते हैं और जब वे ऐसा करते हैं तो किसान अक्सर जवाबी कार्रवाई करते हुए बाघों को मार देते हैं।
पहले भारत में कई वनों में रहने वाले समूह वन्यजीवों के साथ-साथ रहते थे। उदाहरण के लिए अरुणाचल प्रदेश की इडु-मिश्मी को ही लें। वे आज भी बाघ को ‘अपना भाई’ मान कर उसका सम्मान करते हैं। वे एक बाघ की हत्या को परिवार के एक सदस्य की हत्या के समान मानते हैं और इस बंधन ने देश के उस कोने में बाघों और उनके आवास की रक्षा की है। जहां संभव हो, स्थानीय समुदाय-आधारित संगठनों के साथ भागीदारी को मजबूत किया जाना चाहिए, ताकि संघर्ष की स्थितियों को कम करने के साथ-साथ संरक्षण योजना और प्रयासों में भागीदारी को और ज्यादा बढ़ाया जा सके।
’प्रत्यूष शर्मा, हमीरपुर, हिप्र
पढ़ाई के बजाय
देश भर में कोरोना संक्रमण से उपजी महामारी के चलते बच्चों की शिक्षा का माध्यम मोबाइल और कंप्यूटर रहा है। बच्चों को आॅनलाइन पठन-पाठन चल रहा है। पर एक सर्वे रिपोर्ट के अंर्तगत बच्चों में पढ़ाई के अलावा मोबाइल का अन्य उपयोग भी सामने आया। एक नतीजे के मुताबिक सिर्फ 10.1 फीसदी बच्चे ही मोबाइल का उपयोग आॅनलाइन पढ़ाई के लिए करते हैं। राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग की तरफ से कराए गए एक अध्ययन से चौंकाने वाले बातें सामने आई। अध्ययन में 59.2 प्रतिशत बच्चे अपने स्मार्टफोन पर मैसेंजिंग ऐप का उपयोग करते हैं।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की तरफ से कराए गए सर्वे से पता चला कि फेसबुक पर दस साल की उम्र समूह में भी बहुत सारे बच्चे इंस्टाग्राम का उपयोग करते हैं। हम समझते हैं बच्चे मोबाइल पर पढ़ाई कर रहे हैं, पर इन चौंकाने वाली परिस्थितियों को भी नजरअंदाज नहीं कर सकते। इसमें कोई दो मत नहीं कि बच्चों में मोबाइल चलाने की लत दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। बच्चे मोबाइल में क्या देख रहे हैं, क्या चला रहे हैं, माता-पिता और अभिभावकों को यह देखने की फुर्सत नहीं होती कि वे कभी मोबाइल-पढ़ाई की वास्तविक परिस्थितियों से रूबरू हों। ज्यादा समय मोबाइल के इस्तेमाल से बच्चों के स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव होता है। सुझाव के तौर पर माता-पिता बच्चों के मोबाइल पर गतिविधियों की समय-समय से देखरेख करें। उन्हें सकारात्मक समझ दें। मोबाइल की लत को छुड़ाने के लिए उनके साथ समय बिताने का प्रयास करें।
’योगेश जोशी, बड़वाह, मप्र