छोटी-छोटी बात पर उत्तेजित होना इन दिनों समाज में हर तरफ देखा जा सकता है। भीड़तंत्र द्वारा विभिन्न समाजों के बीच हिंसा को देश में एक नई संज्ञा अथवा नया नाम दिया गया ‘माब लिंचिंग’।
कहीं चूड़ी पहनाने वाले, ट्रेनों में यात्रा करने वाले, भीख मांगने वाले, सब्जी विक्रेता या फिर अनेक स्थानों पर ऐसी आपराधिक घटनाएं सामने आईं, लेकिन एक बहुत विचित्र प्रवृत्ति यह देखने को मिली कि इस नए अपराध के विरुद्ध कोई तीव्र विरोध या आपत्ति का ज्वार नहीं उठा। शासन-प्रशासन का रवैया पहले की तरह राजनीति के चश्मे से ही देखा जाता रहा, लेकिन उस बुराई को नजरअंदाज करने के नतीजे समाज में अब परिलक्षित हो रहे हैं।
हमारी संस्कृति में कहा गया है कि पाप तीन प्रकार के होते हैं। एक वे जिनका प्रभाव केवल पापी व्यक्ति पर पड़ता है, दूसरे वे, जिनका प्रभाव उस व्यक्ति के पूरे कुनबे पर पड़ता है और तीसरे और सबसे निकृष्ट पाप वे होते हैं, जिनसे हमारा समूचा समाज दूषित हो जाता है। दयनीय रूप से आज हमारे पापों से हमारा संपूर्ण समाज दूषित हो रहा है।
प्रभावशाली बुद्धिजीवी तबका इस मसले पर आज भी चुप्पी साधकर बैठा है और इसी चुप्पी में अपनी भलाई समझ रहा है, पर यह स्थिति ठीक नहीं है। बढ़ते हुए सामाजिक प्रदूषण का जहर देर-सबेर सबको प्रभावित करेगा और भविष्य में इस प्रदूषण से बचना मुश्किल हो जाएगा। जागरूक समाज की पहचान यह है कि भविष्य में आने वाले खतरे का अनुमान पहले से ही करके सावधान हो जाया जाए।
सामाजिक संवेदना और सहिष्णुता मनुष्य के प्राकृतिक गुण हैं, उसके आभूषण हैं। सामाजिक जीवन में निर्लिप्त या निर्विकार होकर नहीं रहा जा सकता। संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि श्रेष्ठ समाज के निर्माण के लिए यह अनिवार्य है कि हम सर्वश्रेष्ठ गुण, चरित्र और आचरण अपनाएं। संवेदनशील और श्रेष्ठ व्यवहार का प्रदर्शन करें।
इशरत अली कादरी, खानूगांव, भोपाल।
महंगाई का दंश
इस महीने की शुरुआत में पेश बजट में मध्यम वर्ग को ध्यान में रखकर बजट का स्वरूप तैयार किया गया, जिसकी प्रशंसा में कसीदे कढ़े गए। इस संदर्भ में हर व्यक्ति और वर्ग की अपनी अलग राय है! फरवरी के पहले हफ्ते में आम आदमी को बजट में करों में छूट का उद्घोष हुआ तो दूसरे हफ्ते भारतीय रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों में 0.25 फीसद का इजाफा कर दिया, जिसका असर सभी प्रकार के ऋणों पर पड़ेगा।
यह सही बात है कि हर देश कोरोना और रूस-यूक्रेन युद्ध का दंश झेल रहा है, पर ऐसे दौर में महंगाई पर काबू की व्यवस्था की कोशिश हो रही थी, तो अचानक ऋण की दरों में वृद्धि के फैसले से ब्याज का एक बड़ा हिस्सा आम आदमी के बजट को हिला नहीं देगा? पिछले साल के सितंबर से ही ऋणों के फीसद में लगातार बढ़ोतरी जारी है, जो अब तक पुराने ऋणों के फीसद से लगभग आज की स्थिति में दस फीसद बढ़ चुका है।
अगर सही आकलन निकाला जाए तो सितंबर 2022 से साल भर में जितनी रकम की अदायगी बारह महीनों में होती, अब तेरह महीनों की रकम बारह महीनों के बराबर होगी! क्या आम आदमी की सालाना आय उस तुलना में बढ़ पाई है या महंगाई घट पाई है? जवाब है नहीं। तब यह कैसे मान लिया जाए कि केवल ऋण की दरों में वृद्धि कर महंगाई पर काबू पाया जाएगा।
मृदुल कुमार शर्मा, वैशाली, गाजियाबाद।
पद बनाम छवि
न्यायाधीशों को सेवानिवृत्ति के बाद संवैधानिक पद पर बैठाने के चलन की कड़ी में अब सर्वोच्च न्यायालय से हाल ही में सेवानिवृत्त हुए न्यायाधीश अब्दुल नजीर को अब आंध्रप्रदेश का राज्यपाल बनाया गया है। अब सेवानिवृत्ति से पहले कुछ न्यायाधीशों के फैसलों को उनकी इस तरह की नियुक्तियों के संदर्भ में देखा जा रहा है। इतिहास के पन्नों को पलट कर देखा जाए तो इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को राज्यपाल नियुक्त किया गया है।
किसी भी न्यायाधीश को सेवानिवृत्ति के बाद किसी राजनीतिक दल से जुड़ने से बचना चाहिए, जिससे उनका निष्पक्ष न्याय निष्पक्ष दिखाई भी पड़े, क्योंकि सेवानिवृत्ति के बाद न्यायाधीशों का किसी राजनीतिक दल से जुड़ना और उस दल की कृपा से संसद के किसी भी सदन का सदस्य बनना या सेवानिवृत्ति के बाद सरकार द्वारा तत्काल कोई अन्य लाभ के पद पर बैठाने की परंपरा के कारण शीर्ष पद पर रहने के दौरान जो फैसले उन्होंने निष्पक्ष रूप से दिए थे, वे भी संदेह के घेरे में आ जाते हैं। साथ ही इससे न्यायपालिका की निष्पक्षता पर भी प्रश्नचिह्न लगते हैं। इसलिए न्यायाधीशों को सेवानिवृत्ति के बाद किसी अन्य पद का मोह छोड़ ही देना चाहिए।
आकाश सिंह, इलाहाबाद विवि।
तकनीक का विस्तार
इंटरनेट पर और तकनीक की दुनिया में चैट-जीपीटी की चर्चा काफी तेजी से हो रही है। इसके बारे में कहा जा रहा है कि यह गूगल सर्च को भी टक्कर दे सकता है। दरअसल, चैट-जीपीटी ने अपनी शुरुआत के बाद से जबरदस्त लोकप्रियता हासिल की है। इसके दो माह बाद ही इसके उपयोगकर्ताओं की संख्या दस करोड़ पहुंच गई। उपयोगकर्ताओं के मामले में इंस्टाग्राम और टिकटाक को भी पीछे छोड़ दिया है। चैट-जीपीटी कृत्रिम बुद्धिमता (एआइ) से लैस है। यह सबसे तेजी से बढ़ने वाला उपभोक्ता साधन बन गया है। यूबीएस के विश्लेषकों ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि आने वाले दिनों में इसके उपयोगकर्ताओं में और इजाफा देखने को मिलेगा।
इंटरनेट इतिहास के बीस वर्षों में पहली बार किसी ऐप में इतनी तेजी बढ़ोतरी देखी गई है। सेंसर टावर के मुताबिक, दस करोड़ लोगों तक पहुंचने में टिकटाक को वैश्विक शुरुआत के बाद नौ महीने और इंस्टाग्राम को ढाई साल का समय लगा था। ओपन-एआइ कंपनी द्वारा तैयार किए गए इस चैटबाट से जो भी सवाल किया जाता है, उसका यह लगभग सटीक उत्तर देता है। हालांकि अकादमिक और शिक्षा जगत के विशेषज्ञों ने इस बात पर चिंता जताई है। सबसे बड़ी चिंता है कि चैट-जीपीटी से ली जानकारियों को सच कैसे माना जा सकता है!
सदन जी, पटना, बिहार।