कोरोना संक्रमण बहरूपिया बन कर विभिन्न देशों में फिर से फैल रहा है, किंतु भारत में समय पर टीकाकरण से भय और खतरा कम हो चुके हैं। संपादकीय ‘खतरा टला नहीं है’ इसकी तस्दीक करता है। चैनलों, समाचार पत्रों और डब्ल्यूएचओ भी चौथी लहर की आशंका जता रहे हैं, जिससे डरने के बजाय सुरक्षा कवच में रहें और टीकाकरण और बूस्टर डोज में लापरवाही न करें। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आवाजाही में सावधानी और सतर्कता बरतना होगी, तभी हम सुरक्षित रह सकेंगे।
बीएल शर्मा ‘अकिंचन’, तराना, उज्जैन

महंगाई का सिलसिला

चुनाव के बाद बाजार ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है। पहले व्यावसायिक सिलेंडर के दाम 105 रुपए बढ़ाए जा चुके हैं। अब घरेलू सिलेंडर का दाम पचास रुपए बढ़ गया है। दूध की कीमत दो रुपए प्रति लीटर बढ़ी है। पेट्रोल और डीजल की कीमतें रोज बढ़ रही हैं। विपक्ष महंगाई पर हमलावर है और सत्ता पक्ष के पास बचाव के अपने तर्क हैं, लेकिन जनता यह सोचने को मजबूर है कि चुनाव के दिनों में यह महंगाई कहां गई थी। आने वाले समय में परिवहन महंगा होने से महंगाई और बढ़ेगी तथा सरकार रूस-यूक्रेन युद्ध को भी ढाल बनाएगी। क्या देश की जनता की मजबूरी है सरकार और बाजार की जुगलबंदी को बस देखते रहना। क्या सरकार उत्पाद शुल्क कम करके जनता को राहत देगी?
वीरेंद्र कुमार जाटव, देवली, दिल्ली</p>

जागरूकता की जरूरत

विश्व में जल के महत्त्व को जानने और जल संरक्षण के विषय में समय रहते सचेत होने के मकसद से 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया जाता है। आज भारत और विश्व के सामने पीने के पानी की समस्या उत्पन्न हो गई है। धरातल पर तीन चौथाई पानी होने के बाद भी पीने योग्य पानी सीमित मात्रा में उपलब्ध है। दुनिया औद्योगीकरण की राह पर चल रही है, पर आज जल मिल पाना कठिन हो रहा है। विश्व भर में स्वच्छ जल की अनुपलब्धता के चलते जल जनित रोग महामारी का रूप ले रहे हैं।

प्राकृतिक संसाधन सीमत मात्रा में ही उपलब्ध हैं। पीने योग्य पानी तो बहुत सीमित मात्रा में है। अगर हम वर्तमान में नहीं जागरूक हो पाए तो भविष्य में बहुत बड़ी जल समस्या उत्पन्न हो जाएगी। आंकड़े बताते हैं कि विश्व के डेढ़ अरब लोगों को पीने का शुद्ध पानी नहीं मिल पा रहा है। प्राकृतिक संसाधनों को दूषित नहीं होना चाहिए और पानी को व्यर्थ बहाने से भी बचाना चाहिए। जल संरक्षण के लिए कई गैर-सरकारी संस्थाओं और सरकार द्वारा जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं, लेकिन व्यावहारिक रूप से अनुसरण बहुत कम किया जा रहा है। वर्तमान समय में बड़े स्तर पर सामाजिक जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है।
उदय कुमार, गया, बिहार</p>

परिवारवाद से दूरी

प्रधानमंत्री का पार्टी नेताओं के स्वजनों को चुनावों में न उतारने का संकेत राजनीति में परिवारवाद पर अवश्य लगाम लगाएगा। एक तरह से प्रधानमंत्री का संकेत वाजिब है, क्योंकि जब भाजपा स्वयं परिवारवाद से दूर रहने का उपदेश देती है या परिवारवाद का विरोध करती है, तब प्रधानमंत्री का संदेश एकदम सही है। इसका पार्टी स्तर पर पालन होना चाहिए। इससे पार्टी की अन्य प्रतिभाओं को निष्पक्ष रूप से राजनीति में अवसर मिलेगा और वे बेहतर देश सेवा कर सकेंगें। परिवारवाद की राजनीति से देश देख रहा है कतिपय राजनीतिक दलों का हश्र। परिवारवाद से इतर भाजपा का कदम पार्टी के हित में कारगर साबित भी होगा। इससे परिवारवाद और भाई-भतीजावाद पर भी लगाम लगेगी।

राजनीतिक दलों में ही नहीं, अन्य क्षेत्रों में भी प्रतिभाओं की देश में कमी नहीं है। अगर सभी क्षेत्रों में प्रतिभाओं को निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से सेवा का मौका मिले, तो हमारा देश कुशलता का धनी बन और तेजी से नई ऊंचाइयां छू सकता है। इस पर भी सरकार को ध्यान देना चाहिए, क्योंकि देश में विभिन्न कर्मचारी चयन प्रक्रियाओं की पारदर्शिता पर भी सवाल उठने लगे है।
शकुंतला महेश नेनावा, इंदौर</p>